• Tue. Apr 22nd, 2025

Suprem court

  • सुप्रीम कोर्ट की नसीहत, समयसीमा तय की
  • राज्यपालों को अब एक माह में पारित करने होंगे बिल
  • तमिलनाडु के राज्यपाल को फटकार लगाई
  • शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु सरकार को दी बड़ी राहत
  • राज्यपाल की ओर से रोके गए 10 विधेयकों को मंजूरी

Suprem court : नई दिल्ली। द्रमुक नीत तमिलनाडु सरकार को मंगलवार को तब बड़ी जीत हासिल हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल आरएन रवि द्वारा रोके गए और राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे गए 10 विधेयकों को मंजूरी दे दी। साथ ही राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राज्यपालों के लिए समयसीमा भी तय कर दी। कोर्ट ने इस दौरान दो टूक शब्दों में कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक को रोक नहीं सकते हैं। वे ‘पूर्ण वीटो’ या ‘आंशिक वीटो’ (पॉकेट वीटो) का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। संविधान के अनच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं होता है। उन्हें मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करना होता है। जनता विधायकों को चुनती है। लंबे समय तक बिल नहीं रोकें। न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने तमिलनाडु के राज्यपाल को फटकार लगाते हुए कहा, ‘दस विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखने का राज्यपाल का कदम गैरकानूनी और मनमाना है, इसलिए इसे खारिज किया जाता है।’ पीठ ने कहा, ‘(संबंधित) 10 विधेयकों को उस तारीख से स्वीकृत माना जाएगा जिस दिन इन्हें राज्यपाल के समक्ष पुन: प्रस्तुत किया गया था।’

एक माह की समय सीमा तय की

न्यायालय ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल द्वारा कार्य निर्वहन किए जाने को लेकर कोई स्पष्ट समयसीमा निर्धारित नहीं है। ‘कोई निश्चित समयसीमा न होने के बावजूद, अनुच्छेद 200 को इस तरह से नहीं पढ़ा जा सकता कि यह राज्यपाल को उन विधेयकों पर कार्रवाई नहीं करने की अनुमति देता है, जिन्हें उनके सम्मुख संस्तुति के लिए प्रस्तुत किया है।’ समयसीमा तय करते हुए पीठ ने कहा कि किसी विधेयक पर मंजूरी रोककर उसे मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रखने की अधिकतम अवधि एक माह होगी। यदि राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के बिना सहमति को रोकने का फैसला किया है तो विधेयकों को तीन महीने के अंदर विधानसभा को लौटाया जाना चाहिए। राज्य विधानसभा द्वारा विधेयक को पुन: पारित किए जाने के बाद उसे पेश किए जाने पर राज्यपाल को एक महीने की अवधि में विधेयकों को मंजूरी देनी होगी। पीठ ने आगाह किया कि समयसीमा का पालन नहीं होने पर अदालतों में न्यायिक समीक्षा होगी।

जनता की इच्छा को न दबाएं

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को ध्यान रखना चाहिए कि वे राज्य विधानसभा के सामने बाधाएं खड़ी करके जनता की इच्छा को न दबाएं। राज्य विधानसभा के सदस्य लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाते हैं। वे जनता की भलाई के लिए बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को राज्य की विधानसभा को मदद और सलाह देनी चाहिए थी। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास केवल तीन विकल्प हैं- विधेयकों को मंजूरी देना, स्वीकृति रोकना और राष्ट्रपति के समक्ष विचार के लिए सुरक्षित रखना।

मनमानी नहीं करें

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को राज्य विधानसभा के फैसलों का सम्मान करना चाहिए। उन्हें जनता की चुनी हुई सरकार के कामकाज में बाधा नहीं डालनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्यपाल को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए। उन्हें अपनी मनमानी नहीं करनी चाहिए।

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