Suprem court
- सुप्रीम कोर्ट ने विवाद को सुलझाने के निर्देश दिए
- पंजाब में अध्िकृत भूमि को गैर अधिसूचित करना मनमाना कृत्य
- ऐसे मामलों को निर्णय केवल कानून के आधार पर नहीं कर सकते
- जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
Suprem court : नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों को दशकों पुराने सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद को सुलझाने में केंद्र के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह ‘मनमाना कृत्य’ है कि नहर के निर्माण के लिए पहले से ही अधिग्रहित भूमि को पंजाब में गैर-अधिसूचित कर दिया गया। न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों का निर्णय केवल कानून के आधार पर नहीं किया जा सकता। जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें व्यापक प्रभाव वाले अन्य कारकों पर भी विचार करना होगा। केंद्र द्वारा हाल में दाखिल हलफनामे का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि केंद्र ने इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए पहले ही प्रभावी कदम उठाए हैं। ‘मामले में हम दोनों राज्यों को सौहार्दपूर्ण समाधान पर पहुंचने में भारत संघ के साथ सहयोग करने का निर्देश देते हैं। यदि दोनों पक्षों के बीच यह मुद्दा सौहार्दपूर्ण ढंग से हल नहीं होता है तो हम इस मामले पर 13 अगस्त को सुनवाई करेंगे।’
हमने मध्यस्थता के लिए प्रयास किए
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देश के अनुसार सरकार ने बैठकें आयोजित कर पक्षों के बीच मध्यस्थता का प्रयास किया। भाटी ने कहा, ‘हमने मध्यस्थता के लिए प्रयास किए हैं, लेकिन राज्यों को अपनी बात पर अमल करना होगा।’ एसवाईएल नहर की परिकल्पना रावी और ब्यास नदियों से पानी के प्रभावी आवंटन के लिए की गई थी। इस परियोजना में 214 किलोमीटर लंबी नहर बनाने की परिकल्पना की गई थी, जिसमें से 122 किलोमीटर नहर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनाई जानी थी। हरियाणा ने अपने क्षेत्र में यह परियोजना पूरी कर ली।
पंजाब ने ठंडे बस्ते में डाला
पंजाब ने 1982 में निर्माण कार्य शुरू किया था, लेकिन बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। दोनों राज्यों के बीच विवाद दशकों से जारी है। उच्चतम न्यायालय ने 15 जनवरी, 2002 को हरियाणा द्वारा 1996 में दायर एक वाद में उसके पक्ष में फैसला सुनाया था और पंजाब सरकार को एसवाईएल नहर के अपने हिस्से का निर्माण करने का निर्देश दिया था। हरियाणा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि यह मुद्दा अदालत द्वारा पारित आदेश के क्रियान्वयन से संबंधित है।