India
- भारत युद्ध रोकने में कर सकता है ‘मध्यस्थता’!
- विदेश मामलों के विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री के शनिवार से शुरू हो रहे अमेरिका दौरे को लेकर दी प्रतिक्रिया
India : नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक स्तर पर बने हुए चिंताजनक हालातों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार से अमेरिका की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर रहेंगे। उनकी इस यात्रा पर दुनियाभर की निगाहें टिकी हुई हैं। क्योंकि अमेरिका सहित दुनिया के ज्यादातर देश इस वक्त भारत को रूस और यूक्रेन के बीच शांति स्थापित करने में सक्षम एक ‘निष्पक्ष और भरोसेमंद मध्यस्थ’ देश के रूप में देख रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह है भारत के रूस से लेकर पश्चिमी देशों के साथ बने हुए मजबूत संबंध और उसकी स्वीकार्यता। ऐसे में डेलावेयर में होने वाले क्वाड सम्मेलन और इससे इतर होने वाली भारत और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों की द्विपक्षीय मुलाकात में बहुत संभव है कि राष्ट्रपति जो.बाइडन प्रधानमंत्री मोदी से यूक्रेन युद्ध के बीच शांति स्थापित करने के लिए मध्यस्थता करने की वकालत करें। जिसे भारत द्वारा स्वीकार किया जा सकता है। यह जानकारी विदेश मामलों के विशेषज्ञों ने हरिभूमि से बातचीत में दी है।
निष्पक्ष रवैये ने बनाया भरोसेमंद मध्यस्थ
भारत के विदेश मामलों के प्रमुख विचार समूह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) में अमेरिका से जुड़े मामलों के फेलो विवेक मिश्रा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा मुख्य रूप से क्वाड सम्मेलन (इसके केंद्र में हिंद-प्रशांत की चुनौती है) और द्विपक्षीय सहयोग में शामिल जरूरी विषयों पर चर्चा से जुड़ी हुई है। लेकिन वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय भूभाग के अलग-अलग हिस्सों में जारी लड़ाइयों और खासकर यूक्रेन युद्ध के समाधान का मुद्दा क्वाड सम्मेलन से लेकर दोनों नेताओं की आपसी वार्ता के विषयों के केंद्र में रहेगा। इसी ने भारत की मध्यस्थता को प्रमुख रूप से रेखांकित कर दिया है। वहीं, आज जो हालात हैं उनमें भारत की मध्यस्थता की संभावनाएं हैं। लेकिन वर्तमान में इसकी गुंजाइश कम नजर आती है। क्योंकि रूस-यूक्रेन दोनों अड़े हुए हैं और भारत ने भी इसके लिए अभी तक कोई शांति प्रस्ताव नहीं दिया है। इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति भारत के पीएम को यह बोल सकते हैं कि शांति स्थापित करने के लिए दोनों देशों को बातचीत की मेज पर लेकर आएं। उसके साथ रूस और पश्चिमी देशों के बहुत अच्छे संबंध हैं। रूस ने भी जिन तीन देशों के नाम मध्यस्थता के लिए प्रस्तावित किए हैं। इनमें चीन, ब्राजील और भारत शामिल हैं। लेकिन ब्राजील और चीन को पश्चिमी देश अपने विरोधी खेमे का मानते हैं। भारत के साथ ऐसा नहीं है।
कम होगा बांग्लादेश का खतरा
विवेक ने कहा कि दोनों शीर्ष नेताओं की बातचीत में भारत, बांग्लादेश को लेकर अपना पक्ष अमेरिका के सामने रख सकता है। इसमें खासतौर पर वहां बनी हुई अल्पसंख्यकों की चिंताजनक स्थिति शामिल है। अमेरिका का बांग्लादेश की वर्तमान सरकार में काफी दखल है। इसलिए अगर भारत अपनी बात उसके सामने रखेगा तो अमेरिका की तरफ से मदद मिल सकती है। एक प्रकार से कूटनीतिक रूप से बांग्लादेश की सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को जरूरी संदेश तो दिया जा सकता है। इसमें अमेरिका एक सहायक की भूमिका निभा सकता है।
लंबे संघर्ष के बाद जीता दुनिया का भरोसा
रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (इडसा) में फेलो डॉ.स्वस्ति राव ने कहा कि दोनों देशों के प्रमुख नेताओं की बातचीत में एक बड़ा मुद्दा यूक्रेन युद्ध का रहेगा। लेकिन तत्काल रूप से भारत मध्यस्थता नहीं करेगा। क्योंकि अभी लड़ाई फैल चुकी है। लेकिन जब भी इसकी आवश्यकता पड़ेगी तो दुनिया को एक निष्पक्ष और भरोसेमंद आवाज की जरूरत पड़ेगी। भारत में ये दोनों खूबियां हैं। इसलिए वह आसानी दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता कर सकता है। अपनी इस छवि तक पहुंचने में भारत ने हालांकि लंबा संघर्ष किया है। यह भारत ही है जिसके पीएम रूस, यूक्रेन के बाद अब अमेरिका की यात्रा कर रहे हैं। भारत की असली ताकत यही है।
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