Polution
- -10 जिलों में पराली जलाने की घटनाओं पर नजर रखेंगे
- -राजधानी और एनसीआर में 48 घंटे में तेजी से बढ़ा प्रदूषण
- अंबाला, फतेहाबाद, हिसार, जींद, कैथल, करनाल, कुरूक्षेत्र, सिरसा, सोनीपत और यमुनानगर में सख्ती
Polution : रोहतक। मानसून सीजन बीतने के बाद प्रदेश में धान की कटाई प्रारंभ हो जाती है। किसान पराली न जलाएं। इसके लिए केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने अंबाला, फतेहाबाद, हिसार, जींद, कैथल, करनाल, कुरूक्षेत्र, सिरसा, सोनीपत और यमुनानगर जिले के किसानों की निगरानी के लिए उड़नदस्ते तैनात कर दिए हैं। इन जिलों का एक्यूआई बीते 48 घंटे में काफी बढ़ा है। जब प्रदेश से 30 सितंबर को मानसून की विदाई हो रही थी तो अंबाला का एक्यूआई 65 था जो बुधवार को बढ़कर 99,हिसार को 89 से 123, जींद का 72 से 105, कैथल का 58 से 134, करनाल का 54 से 68, रोहतक का 56 से 85, सिरसा का 58 से 96 हो चुका था। आने वाले दिनों में पॉल्यूशन में काफी बढ़ोतरी होने की आशंका है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे निर्देश
प्रभावशीलता पर चिंता जताने के कुछ ही दिनों बाद ही उड़नदस्ते तैनात किए गए हैं। सीएक्यूएम ने कहा कि हरियाणा सरकार ने 2024 के खरीफ सीजन के दौरान धान की पराली जलाने को खत्म करने के लिए व्यापक कार्य योजना बनाई है। उड़नदस्ते अगले दो महीनों के लिए इन जिलों में चिन्हित हॉट स्पॉट पर निगरानी रखेंगे। ये दस्ते जमीनी स्तर पर स्थिति का आकलन करेंगे और आयोग और सीपीसीबी को रोजाना रिपोर्ट देंगे। जिसमें उनके संबंधित जिलों में पराली जलाने को रोकने के लिए किए गए उपायों का विवरण दिया जाएगा।
हवा की गति होगी कम, बढ़ेगा प्रदूषण
आने वाले दिनों में नियमित रूप से तापमान कम होने से हवा की गति में भी कमी आएगी। जिससे प्रदूषण की चादर तन जाएगी। बीच-बीच में हवा की गति जब भी 15-20 किलोमीटर के बीच रहेगी, तब थोड़ी बहुत राहत पॉल्यूशन से मिलेगी। इसके अलावा जब भी पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होने पर बरसात हुई तो 24 से 48 घंटे तक एक्यूआई में थोड़ा बहुत सुधार आएगा। वरना पाॅल्यूशन लोगों का सांस लेना मुश्किल कर देगा। ध्यान रहे कि इस बार दिवाली एक नवंबर की है। साल 2023 में त्योहार 12 नवंबर को था। दीपावली के अगले ही दिन रोहतक का एक्यूआई 383 दर्ज किया गया था।
वाहन-कारखाने ज्यादा जिम्मेदार
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग की प्रो. राजेश धनखड़ कहती हैं कि जब तक उद्योगों और वाहनों का पॉल्यूशन कम नहीं हाेगा तब-तक समस्या का समाधान नहीं होगा। किसान प्रदूषण को लेकर सरकार बेवजह किसानों को टारगेट कर रही है। पॉल्यूशन पराली की बजाय व्हीकल और कारखानों द्वारा फैलाया जा रहा है। किसान अब पराली को जलाने की बजाय, उसे चारे के रूप में प्रयोग करते हैं। पॉल्यूशन को लेकर किसानों का दोष देना हकीकत से आंखें बंद कर लेना है। दिसंबर-जनवरी में तो किसान फसलों के अवशेष नहीं जलाते हैं। फिर भी एक्यूआई का लेवल कम क्यों नहीं होता है। ऐसा प्रो. धनखड़ ने कहा है।
ये कारक बढ़ाते हैं प्रदूषण
प्रो. राजेश धनखड़ ने कहा कि प्रदूषण कौन बढ़ाने में काैन-कौन से कारक जिम्मेदवार हैं। ये अब किसी छुपा नहीं है। लेकिन एक्यूआई बढ़ते ही इसका ठीकरा किसानों पर फोड़ने में सरकार देर नहीं करती। जबकि प्रदूषण को बढ़ाने में किसान का हिस्सा 10-15 प्रतिशत ही है। पॉल्यूशन सबसे ज्यादा कल-कारखाने और अंधाधुंध सड़कों पर दौड़ते वाहनों से बढ़ता है। वाहन दो तरह से एक्यूआई बढ़ाते हैं। एक तो उनमें जलने वाले फ्यूल से पाॅल्यूशन बढ़ता है, दूसरा पहियों से खतरनाक धूल कण आबोहवा में घुल मिल जाते हैं।
यह है पैमाना
एयर क्वालिटी इंडेक्स शून्य से लेकर 50 तक अच्छा माना जाता है। 50 से लेकर 100 तक संतोषजनक, 101 से लेकर 200 मध्यम श्रेणी, 201 से 300 तक खराब माना जाता है। 301 से 400 तक अति खतरनाक स्थिति मानी जाती है।
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