kurukshetra
- त्योहारों के बाद दूषित हो गई मारकंडा नदी
- दीपावली,गोवर्धन पूजा, भैयादूज के बाद पूजा, हवन सामाग्री, फल, वस्त्र आदि फेंकने से गंदगी बढ़ी
kurukshetra : मुलाना। मारकंडा नदी की वजह से क्षेत्र की पहचान है। नदी के यहां से गुजरने के कारण इस क्षेत्र की गिनती पवित्र स्थानों में होती है। यहां से गुजरने वाली यह नदी क्षेत्र में बसने वाले लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक है।यहां प्राचीन समय से मारकंडा ऋषि का मंदिर बना हुआ है। जिसमें चांदन के रविवार को श्रद्धालु मत्था टेकने पहुंचते है। आस्था की प्रतीक यह नदी अब दूषित होकर रह गई है। लगातार दूषित होती मारकंडा नदी का सोमवार को हरिभूमि की टीम ने स्थिति का गहराई से आंकलन किया। जानकारी जुटाने पर पाया गया कि पिछले करीब दो दशकों से नदी में जल प्रदूषण बढ़ा है। कई रिहायशी स्थानों का गंदा पानी मारकंडा नदी में गिराया जाता है। जिस कारण नदी का पानी उपयोग के योग्य नहीं रहा। एक समय था जब हिमाचल प्रदेश से निकलने वाली इस नदी के पवित्र जल को लोग ग्रहण करते थे लेकिन नदी के दूषित होने के बाद अब ऐसा नही रहा। बता दें कि केवल रिहायशी गंदे पानी ही नहीं बल्कि हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु लोग भी नदी को दूषित कर रहे हैं। बीते सप्ताह दीपावली,गोवर्धन पूजा, भैयादूज जैसे बडे त्यौहार मनाए गए। श्रद्धालुओं द्वारा अपने घरों, अपने संस्थानों पर पूजा अर्चना ,धार्मिक अनुष्ठान किए। जिस के बाद काफी संख्या में श्रद्धालुओं द्वारा मारकंडा नदी में पूजा व हवन करने के बाद का सारा सामान बहाने के लिए नदी में डाला गया।जिसके कारण पूजा में इस्तेमाल हुई सामग्री के नदी में ढेर देखने को मिल रहे हैं। यह कहें कि नदियों को दूषित करने में श्रद्धालु भी दोषी है तो कतई गलत न होगा।
यह पहला मामला नहीं
बताना लाजमी है कि मारकंडा नदी दूषित किए जाने का यह पहला मामला नहीं है। दशकों से नदी को दूषित किया जा रहा है। नदी के दूषित होने पर पिछले वर्षों में शिक्षण संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने आने वाले विद्यार्थीयों ने नदी में सफाई अभियान भी चलाया था। बीते अगस्त के महीने में प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने भी दूषित होती नदी की निरीक्षण किया था।
नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा
मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि कोई भी नदियों के पानी में गंदगी प्रवाहित न करें। लेकिन लोगों ने पारंपरिक मान्यताओं को नकार दिया और परिणाम यह हुआ कि जिन नदियों को कभी इतना पवित्र माना जाता था कि उनमें स्नान मात्र से ही जन्मों के पाप धुल जाने की मान्यताएं प्रबल थीं, उन्हीं नदियों का पानी इतना प्रदूषित हो गया कि उनका पानी पीने लायक भी नहीं बचा। नदियों को दूषित करने के सीधा दोषी मनुष्य ही है। यदि नदियों में गंदगी बहाने का क्रम ऐसे ही जारी रहा तो न ही नदियां बचेंगी और न ही नदियों का अस्तित्व और जो कुदरत से हानि देखने को मिलती है। त्यौहार के दौरान व चांदन के रविवार को नदी के तट पर होने वाले कुछ समारोहों और अनुष्ठानों ने भी पानी की पवित्रता से कम खिलवाड़ नहीं किया है क्योंकि श्रद्धालु पूजा सामग्री या पूजा में प्रयुक्त होने वाली मूर्तियों को नदी में यह सोच कर प्रवाहित कर देते हैं कि उन्हें पानी में प्रवाहित करने से पाप नहीं लगेगा। ऐसा करते समय वह यह भूल जाते हैं कि इस सामग्री को तैयार करने में प्रयुक्त किए गए रसायन या कुछ खास तत्व पानी का दम घोंटने का काम करते हैं और पानी की जहरीला बनाते है।
कभी नदी में सिक्के डालने की थी परंपरा
प्राचीनकाल में नदियों पर बने पुल से गुजरने वाले यात्री नदियों के प्रति अपनी श्रद्वा व्यक्त करने के लिए नदी के जल में कुछ सिक्के डाल दिया करते थे। यह वह दौर था जब सिक्के तांबे या चांदी के बने होते थे । तांबे और चांदी में पानी को शुद्ध करने का स्वाभाविक गुण रहता है। उस के बाद जब इस प्रकार के सिक्के चलन से बाहर हुए तो लोगों ने समय के प्रचलन के अनुसार सिक्के नदियों में डालने शुरू किए , लेकिन अब धार्मिक अनुष्ठान का अवशेष नदी में डाला जा रहा है जो कि चिंतनीय है।
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