Kalbherav
- मान्यता- इस दिन बाल स्वरूप में होते हैं भैरवनाथ
- कालभैरव अष्टमी आज शिवालयों सहित देवी मंदिरों में पूजे जाएंगे शिव के पांचवें अवतार
- रतनपुर महामाया मंदिर के समीप स्थित भैरव बाबा मंदिर की अनोखी परंपरा
Kalbherav : रायपुर। शिव के पांचवें अवतार कालभैरव की जयंती शनिवार को मनाई जा रही है। उज्जैन के काल भैरव मंदिर से लेकर अधिकतर देवी मंदिरों में स्थापित काल भैरव मंदिर में मदिरा का भोग लगाया जाता है। भैरव जयंती के दिन विशेष रूप से आयोजन होते हैं और इस दिन मदिरा अधिकतर मंदिरों में अनिवार्य रूप से अर्पित की जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में एक ऐसा भी मंदिर है जहां भैरव अष्टमी के दिन मदिरा नहीं चढ़ाई जाती। यह परंपरा रतनपुर महामाया मंदिर के समीप स्थित भैरव बाबा मंदिर की है। रतनपुर महामाया मंदिर में आने वाले भक्त भैरव बाबा के दरबार में भी अनिवार्य रूप से हाजिरी लगाते हैं, क्योंकि इसके बिना दर्शन अधूरा माना जाता है। मंदिर के पंडित जागेश्वर अवस्थी के अनुसार, भैरव जयंती के दिन भैरव बाबा का जन्म हुआ था। इस दिन वे बाल स्वरूप में होते हैं। बाल स्वरूप में होने के कारण उन्हें मदिरा का भोग नहीं लगाते हैं। इसके अतिरिक्त वर्ष के शेष 364 दिन भक्त भैरव बाबा को मदिरा का भोग अर्पित कर सकते हैं। यह संभवत: प्रदेश का एकलौता मंदिर है, जहां यह परंपरा है।
151 कन्याओं का पूजन, रामलीला भी
रतनपुर के काल भैरव मंदिर में बड़े पैमाने पर भैरव अष्टमी में आयोजन हो रहे हैं। 21 नवंबर से प्रारंभ हुआ यह उत्सव 29 नवंबर तक चलेगा। इस दौरान रामलीला का भी आयोजन मंदिर प्रबंधन द्वारा किया गया है। महायज्ञ के साथ ही 151 कन्याओं का पूजन और महाभंडारा भी रखा गया है। मंदिर के पुजारी के अनुसार, शुक्रवार को प्रात:काल रुद्राभिषेक के बाद श्रृंगार होगा। सात्विक स्वरूप में रात्रि में विशेष पूजन होगा।
इसलिए चढ़ाई जाती है शराब
हिंदू पंचांग के अनुसार काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि मनाते हैं। मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव तामसिक प्रवृति के देवता माने जाते हैं, इसलिए उन्हें मदिरा यानी शराब का भोग लगाया जाता है। असल में काल भैरव के मंदिर में शराब चढ़ाना संकल्प और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। काल भैरव युद्ध के मैदान में ही रहते हैं। आसुरी प्रवृत्तियों से युद्ध करते हैं, इस कारण इन्हें तामसिक चीजें अर्पित की जाती हैं।
देवी मंदिरों में विराजित हैं काल भैरव
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान शिव ने देवी मां की रक्षा के लिए काल भैरव अवतार लिया था। जब महादेव ने यह अवतार लिया, तब उन्होंने भय (भै) बढ़ाने वाली रव यानी आवाज उत्पन्न की थी, इसीलिए महादेव के इस स्वरूप को भैरव कहा जाता है। शिव का यह अवतार हमेशा देवी मां की रक्षा में तैनात रहता है। शिवजी ने इन्हें कोतवाल नियुक्त किया है, इसीलिए हर देवी मंदिर में काल भैरव भी होते हैं। यही वजह है कि देवी मंदिरों में आज कालभैरव की पूजा भी की जाएगी।
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