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Health News : ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर शुगर व बीपी की दवाइयों की भारी कमी

Health News

  • आईसीएमआर और डब्ल्यूएचओ के सर्वेक्षण में बड़ा खुलासा
  • देश के 7 राज्यों के 19 जिलों में सबसे ज्यादा दिक्कतें
  • सीएचसी स्तर पर डॉक्टर की 82.2 और सर्जनों की 83.2 फीसदी कमी
  • एक तिहाई स्वास्थ्य केंद्रों पर मेटफार्मिंग और एम्लोडिपिन दवा नहीं मिली

Health News : नई दिल्ली। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं में डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के लिए दवाओं की गंभीर कमी है। इन ग्रामीण हेल्थकेयर फेसेलिटी में बल्ड प्रेशर और डायबिटीज की दवा कम पाई गई है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से अन्य संस्थानों के साथ मिलकर किए गए संयुक्त सर्वेक्षण में खुलासा किया गया कि 7 राज्यों के 19 जिलों में उप-केंद्रों से लेकर उप-जिला अस्पतालों तक ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में मधुमेह और उच्च रक्तचाप की दवाओं की भारी कमी है। एक सब सेंटर प्राइमरी हेल्थ केयर का सबसे बेसिक लेवल है, यहां पर बुनियादी स्तर का इलाज मिल जाता है, इसे मातृ, शिशु और सामुदायिक स्वास्थ्य जरूरतों के लिए अहम माना जाता है। वहीं, भारत में डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के केस बढ़ते जा रहे हैं। स्टडी के मुताबिक, लांसेट की साल 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 101 मिलियन लोग यानी देश की आबादी का 11.4% हिस्सा डायबिटीज के साथ जी रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, भारत में बल्ड प्रेशर के करीब 220 मिलियन मरीज हैं।

सीएचसी स्तर पर विशेषज्ञों की भी कमी

अध्ययन में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) स्तर पर विशेषज्ञों की कमी मिली है। ये निष्कर्ष 2020-21 की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट के समान हैं, जिसमें सीएचसी-स्तर पर चिकित्सकों (82.2 प्रतिशत) और सर्जनों (83.2.9 प्रतिशत) की कमी को दिखाया गया था। ‘इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर)’ में प्रकाशित अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि जन स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), जिला अस्पतालों और सरकारी मेडिकल कॉलेज में मधुमेह और उच्च रक्तचाप के उपचार के प्रबंधन बेहतर हैं। इस सर्वे में दो फेज में डाटा इकट्ठा किया गया। 415 हेल्थ फेसेलिटी को कवर किया गया। जिनमें से 75.7 प्रतिशत पब्लिक और 24 प्रतिशत निजी थे।

नहीं मिला दवाओं का स्टॉक

रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे में सूचना दी गई कि ज्यादातर पब्लिक हेल्थ फेसेलिटी में डायबिटीज और बल्ड प्रेशर के लिए जरूरी दवाओं का स्टॉक खत्म था. अध्ययन में कहा गया है, मूल्यांकन किए गए 105 सब-सेंटर अस्पतालों में लगभग एक तिहाई 35.2 प्रतिशत ने टैबलेट मेटफॉर्मिन के स्टॉकआउट की सूचना दी और लगभग आधे से भी कम 44.8 प्रतिशत ने टैबलेट एम्लोडिपिन के स्टॉकआउट की सूचना दी. दवाओं के स्टॉकआउट की औसत पीरियड एक से सात महीने तक थी। हालांकि ये दवाएं सरकारी मेडिकल कॉलेजों में उपलब्ध थीं। प्राइमरी हेल्थ सेंटर(पीएचसी) में दवा उपलब्धता स्कोर सिर्फ 66 प्रतिशत था, जोकि 100 प्रतिशत होना चाहिए था।

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