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Gurugram

  • अधिकारियों की मिलीभगत से एडीसी ने जारी किया पिछड़ा वर्ग-ए जाति प्रमाण पत्र
  • मल्होत्रा खत्री जाति से हैं जो सामान्य वर्ग है, एडीसी पिछड़ा वर्ग-ए जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत नहीं
  • हाईकोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए सरकार, मेयर व अन्य को नोटिस थमाया

Gurugram : गुरुग्राम। गुरुग्राम नगर निगम की मेयर राज रानी मल्होत्रा ने चुनाव लड़ने के लिए फर्जी प्रमाण पत्रों का सहारा लिया है। मल्होत्रा पर सामान्य श्रेणी होने के बावजूद पिछड़ा वर्ग-ए की जाति प्रमाण पत्र पर चुनाव लड़ने का आरोप है। खास बात यह है कि मल्होत्रा को पिछड़ा वर्ग-ए जाति प्रमाण 16 फरवरी को रविवार के दिन एडीसी ने जारी किया था। नियमों के अनुसार एडीसी ऐसे प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत नहीं हैं। इस मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने गंभीर रुख अपनाते हुए हरियाणा सरकार, राज रानी मल्होत्रा और अन्य प्रतिवादी पक्ष नोटिस जारी किया है। यह मामला एक जनहित याचिका के माध्यम से सामने आया है, जिसे यशपाल प्रजापति और अन्य ने दाखिल किया है। याचिका में मांग की गई है कि भाजपा की राज रानी मल्होत्रा और कांग्रेस प्रत्याशी सीमा पाहूजा को जारी की गई पिछड़ा वर्ग-ए की जाति प्रमाण पत्र को अवैध घोषित कर रद किया जाए, क्योंकि इन्हें कथित रूप से फर्जी और अवैध तरीके से जारी किया गया है।

यह बोले वकील

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील मुकेश वर्मा ने बेंच को बताया कि गुरुग्राम नगर निगम का मेयर का पद पिछड़ा वर्ग-ए के लिए आरक्षित था। दोनों ही उम्मीदवारों ने बीसी-ए श्रेणी के अंतर्गत मेयर पद के लिए नामांकन दाखिल किया था, जबकि वे वास्तव में खत्री जाति से हैं जो सामाजिक रूप से उन्नत सामान्य वर्ग में आती है, न कि हरियाणा सरकार द्वारा अधिसूचित बीसी-ए श्रेणी की सुनार या अन्य किसी पिछड़े वर्ग से। उन्होंने दावा किया कि यह प्रमाण पत्र सरकारी मशीनरी की मिलीभगत से, बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए और सक्षम प्राधिकारी द्वारा जाति की पुष्टि किए बिना जारी किए गए।

याचिका में यह

याचिका में यह भी कहा गया है कि हरियाणा नगर निगम (संशोधन) अधिनियम 2023 के तहत राज्य के बीसी-ए वर्ग के नागरिकों को स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व देने का वैधानिक अधिकार मिला है। लेकिन जब ऐसे लोग, जो इस वर्ग के नहीं हैं, फर्जी प्रमाण पत्रों के जरिए चुनाव लड़ते हैं और पद हासिल करते हैं, तो इससे वास्तविक बीसी-ए वर्ग के लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को यह भी बताया कि जैसे ही उन्हें इस फर्जीवाड़े की जानकारी मिली, उन्होंने प्रमाणों सहित संबंधित अधिकारियों को शिकायत सौंपीं और मांग की कि दोनों प्रत्याशियों के फर्जी प्रमाण पत्र रद्द कर उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाए। लेकिन अब तक सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है और दोनों को मिले लाभ अब तक वापस नहीं लिए गए हैं। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागु और जस्टिस कमरजीत सिंह की बेंच ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को गंभीरता से लेते हुए हरियाणा सरकार को नोटिस जारी कर उसका जवाब मांगा है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 22 मई की तारीख तय की है।

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