Rohtak
- खुशहाली की मंगल कामनाएं की और चांद देखकर व्रत खोला
- संकट मोचन मंदिर में हुई कथा
रोहतक। करवा चौथ का व्रत हिंदु धर्म में अति महत्वपूर्ण के साथ-साथ सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास है । वे इस व्रत का बेसब्री से इंतजार करती हैं । माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री जी की कृपा से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक करवा चौथ का पर्व रविवार को सुहागिनों ने भगवान शिव, मां पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय, चंद्रमा और चतुर्थी माता की पूजा-अर्चना, श्रद्धा और भक्ति से मनाया। यह जानकारी सचिव गुलशन भाटिया ने दी।
सज धजकर आए सुहागिने
सुहागिने मंदिर में थाली में सिंदूर, श्रृंगार का सामान, जल व दूध का लोटा, फल, मिट्टी या आटे का दीया, छलनी, नारियल, मिट्टी का करवा और करवा कथा की पुस्तक लेकर व सज-धज कर आई । सुहागिनों ने मंदिर में पति परमेश्वर की लंबी दीर्घायु, खुशहाली और उज्जवल भविष्य की मंगल कामनाएं की और वहीं कुंवारी लड़कियों ने भी अच्छा वर प्राप्त हेतु व्रत रखा । सुहागिन महिलाओं ने सुखी विवाहित जीवन के लिए निर्जला उपवास रखकर मंगल कामनाएं की और रात को चाँद देखकर पूजा-अर्चना की । सुहागिनों ने रात को चंद्रदर्शन और उन्हें अर्घ्य देने के बाद व्रत खोला। इस दिन चंद्रमा की पूजा सौभाग्य, पुत्र, धन-धान्य,पति की रक्षा और आर्थिक परेशानियां से मुक्ति पाने हेतु होती है। चांद के दीदार होने पर मंदिर में आतिशबाजी की गई।
परमश्रद्धेया साध्वी मानेश्वरी देवी बोली
हिंदु परंपरा के अनुसार विवाहित महिलाओं के लिए यह पर्व अति महत्वपूर्ण है। इस व्रत से एक साथ पूरे शिव परिवार की पूजा का फल मिलता है।
साध्वी मानेश्वरी देवी ने सुनाई सुहागिनों को करवाचौथ की कथा
गद्दीनशीन साध्वी मानेश्वरी देवी ने भक्तों को करवा चौथ की कथा सुनाते हुए बताया कि प्राचीन काल में शाक प्रस्थपुर में एक धर्म परायण ब्राह्मण वेद धर्मा रहते थे, जिनके सात पुत्र तथा वीरवती नाम की पुत्री थी। बड़ी होने पर वीरवती का विवाह कर दिया गया और उसने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा। उसे चंद्रोदय के पहले ही भूख सताने लगी तो भाईयों ने पीपल के पेड़ की आड़ से रोशनी दिखा दी, जिसे वीरवती ने चंद्रोदय समझकर अद्र्ध देकर भोजन कर लिया। भोजन करते ही उसका पति मर गया तो वह विलाप करने लगी।
दैवयोग से कहीं जाते हुए इंद्राणी ने उसका रोना सुना तो वहां पहुंच कर वीरवती से कारण पूछा, फिर उन्होंने कहा कि तुमने चंद्रोदय के पहले ही व्रत तोड़ा है, जिसके कारण पति की मृत्यु हो गई है। अब यदि तुम 12 महीनों तक प्रत्येक चौथ को विधि-विधान से पूजन करो और करवा चौथ के दिन शिव परिवार के साथ चंद्रमा का पूजन करो तो तुम्हारे पति जी उठेंगे। उसने इंद्राणी के कहे अनुसार करवा चौथ व्रत किया तो पुन: सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिंदू महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।
साध्वी मानेश्वरी देवी ने बताया कि इसकी शुरुआत सावित्री के पतिव्रता धर्म से हुई । पौराणिक कथा के अनुसार जब मृत्यु के देवता यमराज सावित्री के पति को अपने साथ ले जाने के लिए आए तो, सावित्री ने उन्हें रोक दिया और अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से अपने पति को वापस पा लिया । इसी कथा से प्रेरित होकर महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं ।
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