Rohtak News
- -साध्वी मानेश्वरी देवी बोलीं, पानी राहगीरों की इम्युनिटी बूस्ट करता है
- -निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित
- -इस दिन का व्रत रखने से पूरे साल की सभी एकादशियों का फल मिलता है
- – यह दिन भक्ति, आत्मसंयम और तप का प्रतीक है
Rohtak News : रोहतक। माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री के सानिध्य में शुक्रवार को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि अर्थात निर्जला एकादशी पर राहगीरों को गर्मी से राहत दिलाने के लिए मीठे पानी की छबील का आयोजन किया गया। साध्वी मानेश्वरी देवी ने कहा कि हर साल इन दिनों में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है। पानी राहगीरों की इम्युनिटी बूस्ट करने का कार्य करता है। इसलिए लोगों को राहत देने के लिए छबील लगाकर सैंकड़ों राहगीरों को शर्बत पिलाया गया। इस अवसर पर सत्संग, कीर्तन व प्रवचन हुए। पंडित अशोक शर्मा भगवान विष्णु जी व माता लक्ष्मी जी की मंत्रउच्चारण संग पूजा अर्चना करके आरती की और प्रसाद वितरित किया । यह जानकारी सचिव गुलशन भाटिया ने दी।
यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है
गद्दीनशीन व ज्योतिषाचार्य साध्वी मानेश्वरी देवी ने प्रवचन देते हुए बताया कि निर्जला एकादशी, ‘निर्जला’ शब्द का मतलब है बिना जल के, यानी इस व्रत में ना खाना खाया जाता है और ना पानी पीया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन का व्रत रखने से पूरे साल की सभी एकादशियों का फल मिल जाता है। यह दिन भक्ति, आत्मसंयम और तप का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि निर्जला एकादशी व्रत का पारण श्रद्धा भक्ति और विधिनुसार करने से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और वह व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करते हैं । उस पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा सदैव रहती है और मृत्यु उपरांत बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है ।
निर्जला एकादशी व्रत करने से 24 एकादशियों का फल प्राप्त होता है
साध्वी ने कहा कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत महाभारत के पात्र भीमसेन से संबंधित है। भीमसेन, जो भोजन का बहुत शौकीन था, वह सभी एकादशी व्रत रखना चाहते थे, लेकिन अपनी भूख को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे। तब उन्होंने ऋषि व्यास से सलाह मांगी तो ऋषि ने उन्हें निर्जला एकादशी का पालन करने की सलाह दी, जिसमें उन्हें पूरे दिन उपवास करना था। इस व्रत को करने से भीमसेन ने सभी 24 एकादशियों का फल प्राप्त किया।