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Yamunanager : तीर्थस्थल श्रीकपालमोचन, प्राचीन इतिहास का समावेश

श्रीकपालमोचन तीर्थस्थल यमुनगर।श्रीकपालमोचन तीर्थस्थल यमुनगर।

Yamunanager

  • उत्तर भारत की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित ऐतिहासिक तीर्थ स्थल
  • पांच दिवसीय श्रीकपालमोचन मेले का आयोजन 11 से 15 नवंबर तक
  • पापों से मुक्ति दिलाने वाला है कपालमोचन तीर्थ स्थल
  • मेला स्थल पर श्रद्धालुओं के लिए किए जा रहे हैं व्यापक प्रबंध

Yamunanager : यमुनानगर। उत्तर भारत की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित ऐतिहासिक एवं धार्मिक तीर्थ स्थल कपालमोचन सभी पापों से मुक्ति दिलाने वाला है। बताया जाता है कि कपालमोचन तीर्थ स्थल पर बने तीन पवित्र सरोवरों ऋणमोचन सरोवर, कपालमोचन सरोवर व सूरजकुंड सरोवर में स्नान करने से जहां पापो से मुक्ति मिलती है, वहीं मनुष्य जन्म-जन्म के चक्कर से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होता है। यही वजह है कि तीर्थ स्थल पर हर वर्ष कार्तिक पुर्णिमा के अवसर पर देश भर से लाखों श्रृद्धालु पहुंचकर पवित्र सरोवरों में स्नान करके मोक्ष की कामना करते हैं। इस बार कपाल मोचन मेले का आयोजन 11 से 15 नवंबर तक किया जाएगा।

प्राचीन इतिहास समेटे है तीर्थ स्थल

कपाल मोचन तीर्थ स्वयं में प्राचीन इतिहास समेटे हुए है। पुराणों के अनुसार कपाल मोचन तीर्थ तीनों लोकों के पाप से मुक्ति दिलाने वाला स्थल है। इसके पवित्र सरोवरों में स्रान करने से ब्रहम हत्या जैसे महापाप का निवारण होता है। आदि काल में कार्तिक पूर्णिमा की अर्धरात्रि के समय ही भगवान शिव की ब्रहम कपाली इसी कपाल मोचन सरोवर में स्रान करने से दूर हुई थी।

ऋषि मुनियों की तीर्थ स्थली रहा है तीर्थ स्थल

बताया जाता है कि सिंधु वन में स्थित यह स्थान ऋषि मुनियों की यज्ञस्थली रहा है। प्राचीनकाल से ही इस भू-भाग पर पांच तीर्थ कपालेश्वर महादेव(कलेसर)तथा चंडेश्वर महादेव (काला अम्ब) स्थित है, इनके मध्य 360 यज्ञ कुंड हैं। इनमें कपालेश्वर तीर्थ प्रमुख एवं केंद्र बिन्दु हैं।

सरस्वती का उद्गम स्थल

राजा परीक्षित के शासन काल में कलयुग के आगमन पर ऋषि मुनियों ने एक महायज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ में आहुति डालने के लिए ब्रह्मा, विष्णु एवं भगवान शिव को बुलाया गया। यज्ञ में प्रथम आहुति डालने के लिए प्रजापति ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव में सबसे बड़ा होने का दावा जताया गया। तब कलयुग ने आपत्ति करते हुए कहा कि मेरा आगमन हो चुका है और आहूति मेरे हाथ से डाली जाएगी। इस पर शिव नाराज होकर आदि बद्री चले गए इसलिए कोई आहुति नहीं डाल सके। इस यज्ञ के सार से एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम सरस्वती रखा गया। उसने ब्रह्मा जी की बुद्घि को मलिन कर दिया। अपनी पुत्री के प्रति उनकी कुदृष्टि हो गई। सरस्वती को इसका आभास होने पर वह अपनी सुरक्षा के लिए शिवालिक की पहाड़ियों में आदि बद्री के स्थान पर तपस्या लीन भगवान शिव की शरण में चली गई। ब्रह्मा जी भी सरस्वती को ढूंढ़ते ठीक शिव की तपस्या स्थली पर पहुंच गए और उन्होंने सरस्वती को उन्हें सौंपने का आग्रह किया। परन्तु भगवान शिव के कहने पर सरस्वती आकाश की ओर चली गई तो ब्रह्मा जी का पांचवां मुख ऊपर की ओर प्रकट हो गया। इस पर भगवान शिव ने क्रोध में आकर ब्रह्मा जी के पांचवें मुख को काट दिया। इस प्रकार ब्रह्मा जी पंचानन के स्थान पर चतुरानन हो गए और भगवान शिव पर ब्रह्म कपाली का दोष लग गया तथा सरस्वती इसी स्थान से नदी के रूप में परिवर्तित हो गई।

सरस्वती का उद्गम स्थल

ब्रह्म कपाली दोष होता है दूरभगवान शिव ने ब्रह्म कपाली का दोष दूर करने के लिए माता पार्वती के साथ चार धाम तथा 84 तीर्थो का भ्रमण किया, परन्तु दोष दूर नहीं हुआ। अन्तत: शिव पार्वती भ्रमण करते-करते कपाल मोचन के पास प्राचीन भ्रदपुरी (वर्तमान में भवानीपुर) में राशि के समय एक ब्राह्मण की गऊशाला में आ गए । रात्रि में भगवान शिव तो समाधिलीन हो गए, परन्तु पार्वती माता को चिन्ता के कारण नींद नहीं आई और उन्होंने मध्य रात्रि को एक गाय बछड़े के बीच हुई वार्तालाप को सुना। बछड़े ने गाय को ब्रह्म कपाली दोष दूर करने का उपाय बताया। शिव ने गाय के बछड़े से पूछा कि तुम्हें इस तीर्थ का कैसे पता लगा। तब बछड़े ने भगवान शिव को अपने पूर्व जन्म में मनुष्य होने तथा इसी स्थान पर तप कर रहे दुर्वाशा ऋषि का मजाक उड़ाने पर दिए गए श्राप से पशु बनने तथा अन्तत: शिव-पार्वती जी के इस स्थान पर आगमन पर एवं उनके दर्शन से श्रापमुक्त होने की कथा विस्तार से सुनाई। ऐसी मान्यता है कि शिव भगवान के दर्शन के पश्चात गऊ बछड़ा दोनों मुक्ति पाकर बैकुंठ धाम चले गए।

 

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