mushroom
- रेवाड़ी के गांव घासेड़ा की दीपिका महिलाओं को बना रही आत्मनिर्भर
- गांव में कई महिलाओं को दिया रोजगार, बढ़िया से चला रही अपना घर
- गुजरात में खेती देखकर सीखी और चार साल सेे आर्गेनिक मशरूम उगा रही
mushroom: अब महिलाएं भी खेती किसानी में हाथ आजमा रही हैं और अत्मनिर्भर बन रही हैं। महिलाएं पुरुषों से ज्यादा बेहतर तरीके से आधाुनिक खेती करने का माद्दा रखती हैं। आत्मनिर्भर बनने के लिए यह जरूरी भी है। ऐसा की काम कर रही हैं रेवाड़ी के गांव घासेड़ा की बेटी दीपिका यादव। दीपिका गांव में चार साल सेे आर्गेनिक मशरूम की खेती कर रही हैं और अब वे लाखों रुपये कमा रही हैं यानी दीपिका अपने गांव की ‘लखपति दीदी’ बन गई हैं। वह घर संभालने के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनकर परिवार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बढ़िया कमाई भी कर रही हैं।
mushroom : गांव घासेड़ा में दीपिका के प्लांट में काम करती महिलाएं।
गांव की महिलाओं को दे रहीं रोजगार
दीपिका गांव की अन्य महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं और उन्हें आतमनिर्भर बना रही हैं। घासेड़ा निवासी दीपिका अपनी मेहनत से स्वयं ही ‘लखपति दीदी’ बन चुकी हैं। दीपिका आइसोलेटेड तरीके से मशरूम की खेती कर लाखों रुपये कमा रही हैं। उन्होंने गांव की जरूरतमंद महिलाओं को रोजगार दिया है।
हर माह चार टन मशरूम उगा रहीं
दीपिका 4 वर्ष से मशरूम की आर्गेनिक तरीके से खेती कर रही हैं। उनके प्लांट से माह में करीब 4 टन मशरूम पैदा हो हो रही। इसे वह दिल्ली और गुरुग्राम सहित कई मंडि़यों में सप्लाई करती हैं। कारोबार की सफलता के बाद दीपिका नए प्लांट लगाने की भी तैयारी कर रही है, जिससे और अधिक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
गुजरात से सीखा आइडिया
दीपिका 4 साल पहले गुजरात घूमने गई थी, जहां उन्होंने आइसोलेटेड तरीके से हो रही मशरूम की खेती को देखा और वहीं से आइडिया लेकर इसे अपने गांव में शुरू किया। दीपिका ने गांव में छोटे स्तर पर मशरूम की खेती करना शुरू किया। अब दीपिका एक साल में 48 से 50 टन मशरूम की पैदावार कर रही हैं, जिसे रेवाड़ी सहित गुरुग्राम और दिल्ली की सब्जी मंडियों में सप्लाई कर लाखों का मुनाफा कमाया जा रहा है।
10 लोगाें को दिया रोजगार
दीपिका के प्लांट में दस लोग काम करते हैं। इनमें 7 महिलाएं हैं। प्लांट से हर महीने 4 टन मशरूम पैछा होती है। बाजार में इसकी कीमत करीब 4.50 लाख रुपये है। खर्चा काटकर दीपिका को इसमें 90,000 से 1 लाख रुपये तक का मुनाफा मिलता है। एक साल में करीब 48 टन मशरूम पैदा होती है। इस तरह वह 12 लाख रुपये सालाना कमा रही हैं।
ऐसे होता है काम
महिलाएं प्लांट में तैयार हुए मशरूम को तोड़ना और फिर पैकिंग करके गाडि़यों में लोड करने तक का कार्य कर रही हैं। 16 डिग्री तापमान में कंटेनर के अंदर मशरूम की पैकिंग करके बिक्री के लिए सब्जी मंडियों में भेजा जाता है।
क्या कहती है दीपिका
दीपिका ने बताया कि उनके पति ओमपाल यादव सरकारी नौकरी में हैं। जब उनकी गुजरात में पोस्टिंग थी तो वह पति के साथ कुछ समय के लिए गुजरात गई थी जहां उन्होंने आइसोलेटेड तरीके से तैयार होती मशरूम को देखा और उसकी पूरी जानकारी ली। गुजरात से आकर उन्होंने अपने गांव में मशरूम की खेती शुरू कर दी। गुजरात के प्लांट की तरह 16 डिग्री के तापमान को बरकरार करते हुए आइसोलेटेड रूम बनाया। उसमें मशरूम की खेती शुरू की।
जगमग योजना से मिला लाभ
दीपिका ने बताया कि प्लांट लगाने में सरकार की जगमग योजना काफी कारगर साबित हुई। उसे हार्टिकल्चर विभाग से डा. प्रेम यादव और डा.मंदीप यादव का काफी सहयोग मिला। खेती में मदद के लिए उनको कुछ लोगों की जरूरत थी तो उन्होंने गांव की महिलाओं को रोजगार देकर टीम में शामिल कर लिया।
आर्गेनिक मशरूम सेहत का खजाना
मंडियों में मिलने वाली अधिकांश सब्जियां यूरिया या डीएपी खाद्य का प्रयोग कर उगाई जाती हैं, जिसका नुकसान इंसान की सेहत पर पड़ता है, लेकिन जो मशरूम उनके प्लांट में तैयार किया जा रहा है, वह पूर्ण रूप से ऑर्गेनिक है, जिसको खाने से लोगों का स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहेगा और उसे मुनाफा भी अच्छा मिलेगा।