Kurukshetra
- डॉ. सुनिति तंवर बोलीं, प्रसव प्रक्रिया नारी जीवन का महत्वपूर्ण चरण
- गर्भावस्था ईश्वर का उपहार, सिजेरियन मामलों ने बढ़ाई परेशानी
Kurukshetra : कुरुक्षेत्र। गर्भावस्था ईश्वर का उपहार है मगर बढ़ते सिजेरियन मामलों ने इस उपहार को अभिशाप में बदल दिया है। हर महिला और उसका परिवार बिना किसी जटिलता के आसान, प्राकृतिक और सुरक्षित प्रसव की इच्छा रखता है। महिलाएं खान-पान का भी विशेष ध्यान रखती है। लेकिन लाखों प्रयास के बावजूद प्राकृतिक प्रसव दूर की कौड़ी नजर आता है मगर श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान के प्रसूति विभाग की चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. सुनिति तंवर के अनुसार आयुर्वेद में मात्रा बस्ति का वर्णन आता है अगर गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व बस्ति दी जाती है, तो सिजेरियन से लगभग बचा जा सकता है।
युर्वेद में प्रसव प्रक्रिया
डॉ. सुनीति तंवर ने बताया कि आयुर्वेद में प्रसव प्रक्रिया को नारी जीवन का एक महत्वपूर्ण और स्वाभाविक चरण माना जाता है। जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के संतुलन से सुगम और सुखद बनाया जा सकता है इसलिए आयुर्वेद में प्रसवपूर्व देखभाल पर विशेष जोर दिया जाता है जिसमें आहार-विहार और चिकित्सा की आयुर्वेदिक मासिक प्रसवपूर्व देखभाल को अपनाकर आसान प्रसव और स्वस्थ संतान के दोहरे लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
बस्ति गर्भावस्था के 8वें महीने शुरू करें
आयुर्वेद के अनुसार मात्रा बस्ति गर्भावस्था के 8वें महीने में विशेषज्ञ डॉक्टर की देखरेख में की जाती है। यह बस्ति प्रक्रिया चिकित्सा निदेर्शों के अनुसार ही की जानी चाहिए। जिससे गर्भवती महिला को तेल से बनी बस्ति दी जाती है, प्रसव के दौरान शारीरिक और मानसिक संतुलन के लिए आयुर्वेदिक दृष्टिकोण को अपनाना महिलाओं को सुख प्रसव का अनुभव करने में मदद करता है।
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