Janadash
- महाराष्ट्र व झारखंड के चुनावों में भाजपा को विपक्ष से लोहा लेने में होगी आसानी
- फरवरी में दिल्ली में चुनाव, भाजपा केजरीवाल से भी लेगी टक्कर
- हुड्डा ने वर्तमान विधायकों को टिकट दिलाई, यहां भाजपा कई सीटें कांग्रेस से छीन ले गई
- कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का प्रचार तो खूब किया पर इसे वोट में बदलने में असफल रही
Janadash : नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक भाजपा के लिए बहुत मायने रखती है। कुछ महीने पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने दम पर बहुमत लाने में असफल रही थी जिसके बाद से ही कायस लगाए जा रहे थे कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी हार सकती है। कांग्रेस ने हरियाणा में लोकसभा की पांच सीटें तो जीती ही थी साथ ही वोट प्रतिशत में भी भाजपा को पीछे धकेल दिया था। ऐसे हालातों में भाजपा के लिए ये जीत उत्साहित करने वाली तो है ही साथ ही जल्द ही होने वाले महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव के रण में भी विपक्षी दलों से लोहा लेने में मददगार साबित होने वाली है। फरवरी में दिल्ली में विधानसभा चुनाव है। पड़ोसी राज्य हरियाणा में बह रही राजनैतिक हवा अब दिल्ली चुनावों में भी भाजपा की नैंया पार लगा सकती है, ऐसा राजनैतिक जानकार कहने लगे हैं।
कांग्रेस सत्ता लाने में नाकाम रही
हरियाणा में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में ताबड़ तोड़ रोड शो करते हुए कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाने की जी जान से कोशिश की, लेकिन उनकी भागदौड़ कांग्रेस को सत्ता में लाने में नाकाम रही। उधर, भाजपा के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़ी रैलियां की। अमित शाह ने कई जनसभाएं कर जनता को भाजपा की सरकार बनाने के वोट करने की अपील की। जेपी नड्डा और राजनाथ सिंह भी कई हलकों में गये। दरअसल भाजपा की रणनीति ने कांग्रेस को सत्ता की दौड़ से बाहर कर दिया। यह कहना बिलकुल ठीक रहेगा की टिकट वितरण के दौरान ही भाजपा ने आधी बाजी जीत ली थी और कांग्रेस आधी जंग हार चुकी थी।
हुड्डा का गुमान टूटा
कांग्रेस ने अपने सभी वर्तमान विधायकों को रिपीट करने का फैसला लेते हुए टिकट थमा दी, नतीजा ये हुआ कि कई हार गए, क्योंकि उनको लेकर लोगों में नाराजगी थी। यह कहना गलत नहीं होगा कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा इस गुमान में थे कि जिसे टिकट दिला दूंगा वो सौ प्रतिशत जीतेगा। हुड्डा इसमें असफल रहे और कांग्रेस का गढ़ मानी जा रही कई सीटें भाजपा जीत ले गयी। भाजपा ने टिकट बांटते समय जातीय समीकरणों को बखूबी साधा। जीटी रोड बैल्ट, अहीरवाल में भाजपा शुरू से ही मजबूत मानी जा रही थी। यहां बेहतर उम्मीदवारों को टिकट दिया गया। जेजेपी का वोट शेयर भी भाजपा झटकने में कामयाब रही। कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का प्रचार तो खूब किया पर इसे वोट में बदलने में असफल रही।
महौल नहीं बना पाई कांग्रेस
कांग्रेस चुनावी माहौल को भांप नहीं पाई। भाजपा का वोटर चुप्पी साधे हुए था और कांग्रेस के पक्ष में जुटे लोग बढ़-चढ़कर दावे करने में जुटे थे। जानकारों का कहना है कि गांवों में भाजपा के नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए नहीं घुसने देने की कई घटनाओं ने गैर किसान बिरादरी में भाजपा के प्रति सहानुभूति पैदा की। अग्निवीर योजना को लेकर भाजपा के प्रति भले ही युवाओं में नाराजगी थी पर बिना खर्ची बिना पर्ची के नौकरी देने का भाजपा का नारा हरियाणा के युवाओं को ज्यादा पसंद आया। भाजपा विकास के नारे को जोर शोर से बुलंद करती रही। कांग्रेस की सात गारंटियां चर्चा में तो रही पर लोगों के बीच माहौल नहीं बना पायी। कांग्रेस इस बात को नहीं भांप पायी कि शहर और कस्बों में भाजपा बढ़त में है। कांग्रेस नेता ग्रामीण इलाकों में अपनी बढ़त से उत्साहित थे पर यहां दो-तीन बार के कांग्रेस विधायकों को लेकर लोगों में गुस्सा था। कांग्रेस ने अपने विधायकों की छंटनी करने की जरूरत ही नहीं समझी और ज्यादातर को टिकट थमा दी।
कांग्रेस की कई सीटें छीनीं
इनमें कई ऐसे थे किसी भी एंगल से जीत पाने की स्थिति में नहीं थे। खरखौदा, गोहाना, सोनीपत, बहादुर गढ़, राई और गन्नौर जैसी सीटें भी कांग्रेस गंवा बैठी। जाट बहुल और हुड्डा का गढ़ माने जानी वाली इन सीटों की हार से साफ है कि भूपेन्द्र सिंह हुड्डा जमीनी स्तर पर हालात परख नहीं पाये। कांग्रेस हाईकमान ने एकतरफा होकर हुड्डा के इशारे भर से टिकट बांट दी और दावेदारों का आंकलन करने की जरूरत ही नहीं समझी। दूसरी तरफ भाजपा ने कांग्रेस के हाथ से कई ऐसी सीटें भी छीन ली जिनको लेकर कांग्रेस निश्चित थी।
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