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Interview : गीतों में मनोरंजन के साथ सभ्यता का भी ख्याल जरूरी : सुधाकर शर्मा

सुधाकर शर्मा।सुधाकर शर्मा।

Interview

  • -गीत समाज की वास्तविकता को उजागर करते हैं
  • -गीतकारों की कला साहित्य के विकास में न केवल एक महत्वपूर्ण कड़ी होती है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी गहरा प्रभाव डालती है

 

सुशील सैनी
वरिष्ठ पत्रकार

Interview : एक कार्यक्रम के दौरान सुधाकर शर्मा।
Interview : एक कार्यक्रम के दौरान सुधाकर शर्मा।

Interview : रोहतक। कवि और गीतकारों का कला व साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है। गीतकार शब्दों के चयन और उनकी अभिव्यक्ति के माध्यम से भाषा की सुंदरता और विविधता को दर्शाते हैं। उनकी कविताएं और गीत नई शब्दावली, मुहावरे और लयबद्धता से भाषा को समृद्ध बनाते हैं। यही नहीं, वे संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक विषयों को अपनी काव्यात्मक रचनाओं में शामिल करते हैं, जिससे सांस्कृतिक धरोहर को संजोया और संप्रेषित किया जाता है। उनके गीत समाज की वास्तविकता, मुद्दों और चिंताओं को उजागर करते हैं, जिससे साहित्य को समाज के विचारशील और आलोचनात्मक पहलू दिखाने का अवसर मिलता है। कह सकते हैं कि गीतकारों की कला साहित्य के विकास में न केवल एक महत्वपूर्ण कड़ी होती है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में भी गहरा प्रभाव डालती है।
ऐसे ही विख्यात गीतकार सुधाकर शर्मा पिछले दिनों रोहतक स्िथत स्टेट फिल्म यूनिवर्सिटी (सुपवा) में आए तो उनसे विशेष मुलाकात हुई। यहां आने के बारे में सुधाकर ने बताया िक सुपवा के वीसी गजेंद्र चौहान से पुरानी पहचान रही है। उन्होंने सुपवा में दस दिनों के लिए गेस्ट लेक्चरर के रूप में बुलाया। इसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूं कि इस बहाने अपने प्रदेश के लोगों से भी िमल पाया। सुधाकर शर्मा से उनके मुंबई तक के सफर और एक सफल गीतकार के रूप में अपनी पहचान कायम करने को लेकर विस्तृत चर्चा हुई। बता दें िक गीतकार सुधाकर शर्मा का जन्म हरियाणा के पलवल जिले के गांव मांदकौल में 23 जनवरी, 1955 को हुआ। इनके पिता हरिश्चन्द्र कौशिक एक शिक्षक थे और माता शिव देवी गृहिणी थी। गीत लेखन की विधा इन्हें विरासत में मिली। वे बताते हैं कि उनके दादा तीन भाई थे और तीनों ही गाने-बजाने में रुचि रखते थे। उनकी संगत पाकर इनमें भी गीत लिखने का जज्बा पनपा। ये शौकिया तौर पर गीत लिखने लगे और इन्हें स्कूल- कॉलेज के कार्यकर्मों में गुनगुनाते थे। एक सफल गीतकार बनने की मंशा पाले ये कॉलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़कर 1974 में मुंबई कूच कर गए। बॉलीवुड में करीब 7-8 साल तक इन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा। इन्हें प्रख्यात गीतकार हसरत जयपुरी का सानिध्य िमला और उनसे गीत लेखन के गुर सीखे। सुधाकर शर्मा गीतकार शैलेन्द्र को अपना आदर्श मानते हैं। उन्होंने बताया कि सैकड़ों गीत लिखने पर भी कोई खास पहचान नहीं बन पाई थी। बस एक हिट का इंतजार था। आखिर एक दिन किस्मत जागी और फिल्म ‘प्यार किया तो डरना क्या’ का टाइटल सांग लिखने को मिला। 1988 में प्रदर्शित यह फिल्म सौभाग्य से गोल्डन जुबली सािबत हुई और इसमें मेेरा लिखा गीत ‘ओढ़ ली चुनरिया मैंने तेरे नाम की…’ बेहद लोकप्रिय हुआ। बस यहीं से मेरी गाड़ी दौड़ पड़ी। संगीतकार हिमेश रेशमिया और गीतकार सुधाकर शर्मा की जोड़ी को दर्जनों फिल्मों में दोहराया गया। सुधाकर अब तक करीब सात सौ फिल्मों के लिए पांच हजार से भी ज्यादा गीत लिख चुके हैं।

‘मिस्टर चुनरिया’ नाम मिला

फिल्म जगत में सुधाकर शर्मा को ‘मिस्टर चुनरिया’ के नाम से भी जाना जाता है। इसकी वजह पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘प्यार किया तो डरना क्या’ में मेरा लिखा शीर्षक गीत ‘ओढ़ ली चुनरिया’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। यह फिल्म भी सुपरहिट रही। बस, इसके बाद निर्माता अपनी हर फिल्म में मुझसे एक गीत ‘चुनरिया’ शब्द पर भी लिखने को कहने लगे। इस तरह ‘चुनरिया’ शब्द पर लिखे मेरे गीतों की संख्या अब तक कुल 187 हो चुकी है। यह अपने आप में एक रिकाॅर्ड है। इसी कारण बॉलीवुड में मुझे ‘मिस्टर चुनरिया’ के नाम से भी जानते हैं। सुधाकर शर्मा की अाने वाली फिल्म ‘सरफरोश-टू’ है, िजसमें इन्होंने गीत लिखे हैं। इस िफल्म के रिलीज होने का बेसब्री से इंतजार है।

सर्वाधिक लोकप्रिय गीत

हिन्दी फिल्मों में सुधाकर शर्मा के लिखे सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों की बात करें तो ओढ़ ली चुनरिया…तथा तुम पर हम हैं अटके यारा…(प्यार िकया तो डरना क्या), आ मेरी लाइफ बना दे…तथा तेरे बिन ना लगेगा दिल तेरी चुनरी बन्नो लाखों की (कहीं प्यार ना हो जाए), तूने जिंदगी में आके जिंदगी बदल दी (हमराज़) चांदी की डाल पर सोने का मोर… तथा तेरी चुनरिया दिल ले गई.. (हैलो ब्रदर), तेरा पल्लू सरका जाए रे.. तथा ओ मेरे राजा लौट के आजा हुई खता…(दुल्हन हम ले जायेंगे), लाल चुनरिया वाली पे दिल आया रे…(जोड़ी नंबर वन), चुनरी लहराई रे…(ये है जलवा) के नाम िलए जा सकते हैं।
48वें फिल्म फेयर अवार्ड-2003 में सुधाकर शर्मा के लिखे फिल्म हमराज के दो गीत नोमिनेिटड हुए। इनमें ‘तूने जिंदगी में आके..’और ‘सनम मेरे हमराज..’ को सर्वश्रेष्ठ गीतकार की कैटेगरी में शािमल किया गया। वहीं, 2021 में सर्वश्रेष्ठ गीतकार श्रेणी का ‘लीजेंड दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ भी मिला। इन्हें विभिन्न कार्यकर्मों में सैकड़ों अवॉर्ड से नवाजा जा चुका है।

राजस्थानी फिल्मों में भी गीत लिखे

सुधाकर शर्मा ने 32 राजस्थानी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे हैं। इनमें लाछा गूजरी, देव नारायण, जय हो म्हारा लाल, प्रीत न जाण रीत, दंगल, बीरो भात भरण न आयो, भोमली, मायड़ थारी चिड़कली आदि फिल्मों के नाम प्रमुख हैं।

निर्देशन में भी आजमाया हाथ

सुधाकर शर्मा ने गीत लेखन के अलावा फिल्मों के निर्देशन में भी हाथ आजमाया। इन्होंने पांच फिल्में निर्देशित की। इनमें गोरी, इंसाफ का सूरज, सावन, विचार और लागी छूटे ना के नाम शामिल हैं। हालांकि, इनमें एकमात्र ‘गोरी’ फिल्म ही रिलीज हो पाई है। सुधाकर शर्मा का कहना है िक आजकल की फिल्मों में गीत-संगीत पहले की अपेक्षा हाशिए पर जाता प्रतीत होने लगा है, इस बारे में सुधाकर शर्मा कहते हैं कि गीतकार को कहानी में सिचुएशन के हिसाब से और फिल्म निर्माता की पसंद पर लिखना होता है। आजकल जैसी फिल्में बन रही हैं, वैसे ही गीत भी लिखे जा रहे हैं। िफर भी गीतकार का ये दाियत्व बनता है िक लेखन में हमारी संस्कृति का जुड़ाव अवश्य रहे, तभी वह सार्थक कहलाएगा।

https://vartahr.com/interview-along-…-sudhakar-sharma/

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