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inferior : कमतर समझे जाने वालों की काबिलियत ने दिल जीत लिया

ये हुनरमंद चमका रहे नाम।ये हुनरमंद चमका रहे नाम।

inferior

  • तन से दिव्यांग, लेकिन मन से मजबूत बनकर कर रहे जहां रोशन
  • लोगों ने बताया मानसिक विकलांग, याद कर डाले संस्कृत के सैकड़ों श्लोक
इनका दुनिया मान रही लोहा।
इनका दुनिया मान रही लोहा।
inferior : कहते हैं कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। अगर मन में ठान लिया तो कुछ मायने नहीं रखता। ऐसा ही दिव्यांगों के साथ है। दुनिया ने उन्हें अपने अपने नजरिए से देखा। किसी ने कहा, कमजोर, किसी ने कहा किसी काम का नहीं। लेकिन मेहनत, लगन और जीने की लगन से ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया कि दुनिया दांतों तले ऊंगलियां दबा लेती है। ऐसी कहानियां इसलिए भी सामने आनी चाहिए, ताकि लोगों को प्रेरणा मिल सके।

रायपुर। रायपुर के बीटीआई ग्राउंड पर दिव्य कला मेला का आयोजन किया जा रहा है। दिव्यांगों का हुनर देखकर हर कोई आश्चर्यचकित है। मेले में 5 से 10 हजार की साड़ी भी उपलब्ध हैं, जिसे देखकर कोई नहीं कह सकता कि इसे दिव्यांगों ने अपने हाथों और पैरों की मदद से तैयार किया है। पेशेवर बुनकरों की तरह दिव्यांगों ने अपनी कला का प्रदर्शन दिखाया है। समझ पर सवाल था, श्लोक रट लिए। कोलकाता से आए सुदर्शन रक्षित ने कपड़ों में चित्रकारी और मुंहजबानी मंत्रों काे याद कर अपनी अलग पहचान बनाई है। सुदर्शन की मां ने बताया कि बेटा बचपन से मानसिक रूप से कमजोर है। उम्र होने के बाद भी बातचीत में बचपना है, लेकिन सभी बातों को अच्छी तरह समझता है। याद करने की क्षमता सामान्य व्यक्ति से भी अधिक है। सुदर्शन को रामायण, महाभारत के साथ संस्कृत के अनेक मंत्र पूरी तरह से याद हैं। मां ने बताया कि सुदर्शन को आज भी एक बार सुनते ही सब याद हो जाता है। बचपन से संस्कृत के मंत्र सुनकर बड़ा हुआ है। बातचीत में व्यक्ति को मानसिक रूप से कमजोर लगता है, लेकिन दिमाग काफी तेज है। कोलकाता में इसके लिए रविंद्र अवार्ड भी मिला है।

राष्ट्रीय मंच पर छोड़ी नृत्य की छाप

राजनांदगांव से आई प्रति जांगड़े ने पारंपरिक नृत्य में छाप प्रदेश के साथ देशभर के राष्ट्रीय मंच पर छोड़ी है। उन्होंने बताया कि बचपन से कद कम होने के कारण कुछ नया करने का साहस नहीं जुटा पाती थी। आत्मविश्वास नहीं था कि कहीं शारीरिक रूप से सामान्य न होने के कारण लोग मजाक न बना दें, लेकिन स्कूल में जब पहली बार प्रस्तुति दी और लोगों ने पूरे सम्मान के साथ तालियां बजाईं, उस दिन आत्मविश्वास बढ़ गया। दिव्यांगों के नृत्य समूह से जुड़कर राष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुति दी। पारंपरिक नृत्य ने पहचान दी। आत्मनिर्भर भारत की थीम की प्रस्तुति को खूब सराहा गया है।

पति ने भी छोड़ा, लेकिन डटी रही जिंदगी की जंग में

शादी के कुछ साल बाद ही पति शराब पीने लगा जिसके बाद रोज रोज की लड़ाई से परेशान होकर उसने घर छोड़ दिया, जिसके बाद से वह ट्रस्ट में रहें कर अपने 3 क्लास की पढ़ाई कर रहें 8 साल के बेटे को हॉस्टल में रख कर शिक्षा दिला रही हैं, ताकि आने वाले समय में अपने बेटे को अच्छी शिक्षा दिलाने के साथ ही उसे एक पुलिस अफसर बना सके, अपने जीवन के इस संघर्ष को हरिभूमि से साझा करते हुए रीता आखें भी नम हो गई, इस दौरान उसने एक अच्छी बात और कहीं खुशी खुद में खोजनी पड़ती हैं।

दिल्ली और मुंबई में बिक रहे कपड़े

कोलकाता के सुदर्शन मेले में आकर्षक पेटिंग वाले कपड़े लेकर आए हैं। उनकी मां ने बातचीत में बताया कि बचपन से अक्सर ज्यादा समय पेंटिंग करता था। कभी सोचा नहीं था कि पेंटिंग भविष्य में आय का साधन बन जाएगी। आज सुदर्शन की पेटिंग किए हुए कपड़े दिल्ली, मुंबई समेत कई शहरों के बड़े मॉल में भी बिक रहे हैं। वह अपनी इच्छा के अनुसार ही पेंटिंग करता है। समय के साथ अब वह समझ चुका है कि पेंटिंग उसका कॅरियर बन चुका है। हर व्यक्ति में एक अलग प्रतिभा होती है। सुदर्शन मानसिक रूप से कमजोर होने के बाद भी अपनी क्षमता और प्रतिभा को जान चुका है।

अब 25 हजार लोगों को रोजगार

डोंगरगढ़ के दिव्यांग ऋषि कुमार 25 साल से चूड़ी, डेकोरेशन सामग्री के अलावा ऊन के कपड़े तैयार कर रहे हैं। बातचीत में बताया कि वर्तमान समय में दिव्यांग के लिए आर्थिक लाभ देने वाली कई योजनाएं हैं। 20 से 25 साल पहले दिव्यांगों को रोजगार मिल पाना मुश्किल था। जब होममेड वस्तुएं सीखने डोंगरगढ़ पहुंचा, उस समय मेरे जैसे और भी दिव्यांग शामिल थे। पहले दूसरों के लिए काम करते थे, जिसके बाद खुद के लिए काम करना शुरू किया। व्यापार शुरू करने राष्ट्रीय दिव्यांग संस्था से जुड़कर दिव्यांगों को सरकार की योजना से जोड़ने का प्रयास किया। आज छत्तीसगढ़ के 25 हजार से अधिक दिव्यांग साथ मिलकर होममेड वस्तुएं बनाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।

कद ढाई फीट, हौसला बुलंदी पर

ढाई फीट की डांसर रीता तराई मूलतः ओडिशा की भुवनेश्वर की रहने वाली है और आज उन्होंने राजधानी रायपुर के बीटीआई ग्राउंड में चल रहे दिव्य कला मेला में अपने प्रस्तुति दी। हरिभूमि से खास बातचीत में रीता कहती हैं कि वे अपने इस कला से अपना जीवन यापन करती हैं और साल भर पूरे देश में लगने वाले ऐसे शासकीय आयोजनों में वे अपनी डांस प्रस्तुति देती है। जिससे वह अब अपने परिवार को पाल रही हैं। रीता 10 वीं तक पढ़ी है आगे की पढ़ाई आपने ने क्यों नहीं की ? इस सवाल के जवाब में वे कहती है कि परिवार की परिस्थिति इतनी अच्छी नहीं थी इसलिए वे आगे पढ़ाई नहीं कर पाई, लेकिन वे अपने बेटे अच्छी शिक्षा दिलाना चाहती है और अभी ओडिशा के भुवनेश्वर में इंडियन चैरेटी फाउंडेशन ट्रस्ट में रहती है।

2.5 फीट हाईट होने का मलाल नहीं

हाइट छोटी पर नाम बड़ा।
हाइट छोटी पर नाम बड़ा।

रीता की 2.5 फीट हाइट को लेकर जब उससे सवाल किया गया तब वह कहती हैं की उसे भी स्कूल के पढ़ाई के वक्त अन्य लोगों से खुद को अलग तो पाती थी, लेकिन उसने इस सच्चाई को अपनाया, जिसमें उसका साथ उसके आस पास के लोगों ने दिया, उसको कभी एहसास ही होने नहीं दिया कि वह ओरो से अलग, और आज जब भी वह कहीं जाती हैं तब लोग उसके साथ फोटो लेने आते हैं तब वह खुश होती हैं।

हाथों से निःशक्त फिर भी भाई को बांध दी राखी

बहन का भाई के लिए प्यार।
बहन का भाई के लिए प्यार।

 

राजिम। रक्षा बंधन भाई और बहन के प्रेम का पर्व कहलाता है। यह भाई बहन के पवित्र रिश्ते,प्यार का एक ऐसा त्योहार है जिसमे हर स्थति, परिस्थिति में भाई बहन इस दिन मिलते हैं और धूम धाम से इस पर्व को मनाते हैं। बहन का भाई के प्रति ऐसा स्नेह और समर्पण कुलेश्वरी में है जो अपनी हाथों की दिव्यांगता को चुनौती देते हुए भाई की कलाई को सुना नहीं रहने देती उसे पैरों के सहारे से हर साल राखी बांधती है। आज हम इस पर्व में एक ऐसी बहन को दिखाते है जब वह अपने भाई को राखी बांधती है तो भाई की आंखे भर आती हैं, गरियाबंद जिले के राजिम से लगे ग्राम रावन गांव में एक ऐसी बहन है जो मुह से अपने भाई के कलाई पर राखी बांधती है,और हर साल रक्षा बंधन पर्व का बेसब्री से इंतजार करती है । रावन गांव की रहने वाली कुलेश्वरी साहू के दोनों हाथ नही है, सिर्फ कंधे से लगा 2 से 3 इंच का उंगली है,इसी उँगली और मुह के सहारे वह अपने भाई के कलाई पर राखी बांधती है, हाथ नही पर भाई के लिए अटूट प्यार है, भाई के हाथ मे राखी बांधना इतना आसान नही है यह देख कर भाई ही नहीं इस दृश्य को देखने वाले हर मौजूदा लोगों की आंखें भर आती हैं।

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