- Childhood Obesity
- -दोनों तरह स्कूलों में लड़कियों की तुलना में लड़कों में मोटापा ज्यादा
- -अध्ययन ने छोटे बच्चों और किशोरों में मोटापे से होने वाली बीमारियों को लेकर चिंता बढ़ाई
- -मोटापा आगे चलकर मधुमेह और दिल की बीमारियों को बढ़ा सकता
Childhood Obesity : दिल्ली के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे मोटापे का शिकार हो रहे हैं। उनका मोटापा सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से 5 गुना अधिक है। यह खुलासा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक अध्ययन में हुआ है। अध्ययन में बताया गया कि दोनों तरह स्कूलों में लड़कियों की तुलना में लड़कों में मोटापा ज्यादा है। इस अध्ययन ने छोटे बच्चों और किशोरों में मोटापे से होने वाली बीमारियों को लेकर चिंता पैदा कर दी है। अध्ययन के हवाले से बताया कि दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले 6-19 वर्ष के 3,888 बच्चों को अध्ययन में शामिल किया गया, जिसमें 1,985 सरकारी और 1,903 बच्चे निजी स्कूलों के थे। इसमें औसतन 13.4 प्रतिशत छात्र सामान्य रूप से मोटे पाए गए, जबकि 9.2 प्रतिशत छात्रों में पेट की चर्बी अधिक पाई गई। ये आंकड़े निजी स्कूलों के थे। वहीं, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का मोटापा निजी स्कूल के मुकाबले कम है।
2006 से अब तक 5 गुना अधिक बढ़ गए
इससे पहले 2006 में भी इसी तरह का एक अध्ययन किया गया था, जिसमें मोटे बच्चों की संख्या काफी कम बताई गई थी, लेकिन अब बढ़ गई है। वर्ष 2006 में औसत मोटापा 5 प्रतिशत था, जो करीब 20 साल बाद बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया है। मोटापा बढ़ने के साथ-साथ बच्चों में ब्लड प्रेशर और डिसलिपिडेमिया के लक्षण भी दिख रहे हैं। चिंता जताई गई है कि मोटापा आगे चलकर मधुमेह और दिल की बीमारियों को बढ़ा सकता है।
मोटापा बढ़ने के कारण
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा वित्त पोषित इस अध्ययन में एम्स के एंडोक्राइनोलॉजी, कार्डियक बायोकेमिस्ट्री और बायोस्टैटिस्टिक्स विभागों के शोधकर्ता शामिल थे। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों द्वारा पैकेट स्नैक्स, शारीरिक खेल-कूद कम करना, मोबाइल और टीवी पर अधिक समय बिताना और बाहर का फास्ट फूड मोटापा बढ़ा रहा है। वहीं, विशेषज्ञों ने सरकारी स्कूलों के मिड डे मील में ज्यादा प्रोटीन और फाइबर को शामिल करने का सुझाव दिया है।
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