Mahila
- संसद विधानसभा में पहुंचने के बाद भी क्यों नहीं उठा पा रही आवाज
- ओहदों पर मौजूद होने के बावजूद भी महिला अपराधों के खिलाफ आवाज नहीं उठा पा रही
- ऐस क्या मजबूरी है कि महिलाएं कई मामलों में सक्षम होने के बावजूद ऐसे मामलों में खुद को अक्षम महसूस कर रही
Mahila : देश में आधी आबादी यानी महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। सरकारें भले ही महिलाओं के आत्मनिर्भर, मजबूत और सशक्तीकरण की बातें करती हों, लेकिन हालात कुछ और ही बयां करते हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद भी सरकारें अपराधों के सामने खुद को बौना ही पाती हैं। सिर्फ कानून बदलने से ही महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो जाती। इसके लिए और अधिक प्रयास किए जाने की जरूरत है। हाल ही के दिनों की बात करें तो कोलकाता में महिला जूनियर डॉक्टर की दुष्कर्म के बाद दर्दनाक हत्या, बिहार के मुजफ्फरपुर में एक किशाेरी की अपहरण के बाद गैंगरेप और फिर हत्या, सोनीपत, जींद और यूपी के कन्नौज में 15 साल की लड़की से बलात्कार के प्रयास के आरोप में सपा के एक नेता को गिरफ्तार किया जाना। जैसे मामलों ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। ऐसे मामलों को लेकर पूरा देश गुस्से में हैं और अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और फांसी की सजा दिए जाने की मांग कर रहा है। कुछ दिनों पहले मणिपुर में महिलाओं और नग्न कर गांव में घुमाया जाना जैसे तमाम मामले हैं जो सरकार और प्रशासन की चुप्पी पर सवाल उठाते हैं। ऐसे मामले सामने आने पर राज्य सरकारों, केंद्र सरकार और प्रशासन का मौन धारण करना भी सवाल उठाता है। महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, न घर में, न कार्यालय में, न गांवों और न ही शहरों में ऐसे में महिलाओं को मजबूती कैसे मिलेगी। वे आत्मनिर्भर कैसे बनेंगी। उनका सशक्तीकरण कैसे होगा। ऐसे तमाम सवाल हैं जो आज भी सुरसा की तरह मुंह बाए खड़े हैं। इस समय महिलाएं संसद, विधानसभा और प्रशासन में बड़े ओहदों पर मौजूद हैं। इसके बावजूद भी खुद महिलाएं भी महिला अपराधों के खिलाफ ठीक से आवाज नहीं उठा पा रही हैं। ऐसी क्या मजबूरी है कि महिलाएं कई मामलों में सक्षम होने के बावजूद ऐसे मामलों में खुद को अक्षम महसूस करती हैं।
कोलकाता मामला
कोलकाता में एक महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई दर्दनाक घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। यह घटना महिला सुरक्षा और लोगों के विश्वास पर गहरा प्रश्नचिह्न लगाती है। इस घटना के विरोध में देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं और न्याय की मांग की जा रही है। इस मामले पर राजनीति भी देखी जा रही है। महिला सुरक्षा की मांग और इस पर हो राजनीति के बीच एक बात गौर करने वाली है। ऐसा सिर्फ इसी मामले में नहीं, बल्कि महिलाओं से जुड़े दूसरे मामलों में भी देखने को मिल रहा है। एक चुप्पी जिसके पीछे कई सवाल अपने आप खड़े हो जाते हैं। बता दें कि 9 अगस्त को आजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के सेमिनार हॉल में ट्रेनी डॉक्टर की अर्धनग्न लाश मिली थी। डॉक्टर के प्राइवेट पार्ट, आंखों और मुंह से खून बह रहा था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म के बाद हत्या की बात सामने आई थी।
बंगाल, बिहार जैसी घटना पर नाउम्मीद क्यों
इस समय देश में महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ाने की बात हो रही है और यह बहुत अच्छी बात भी है। संसद में महिला आरक्षण बिल पास हो गया और आने वाले वक्त में महिलाओं की भागीदारी और भी बढ़ेगी। यह फैसला भी काफी देर से हुआ, लेकिन ठीक है। ऐसे में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी तो महिला सांसद, विधायक महिलाओं से जुड़े मामलों को बढ़चढ़ कर उठाएंगी। यह उम्मीद की जाती है, लेकिन बंगाल और बिहार जैसी घटना पर यह उम्मीद नाउम्मीद में क्यों बदल जाती है।
यूपी के कन्नौज का मामला
यूपी के कन्नौज में 15 साल की लड़की से बलात्कार के प्रयास के आरोप में समाजवादी पार्टी के एक नेता को गिरफ्तार किया गया। इस मामले पर समाजवादी पार्टी की एक महिला नेता ने कहा कि कौन सी नौकरी थी जो 15 साल की बच्ची रात में मांगने गई थी। अब इस बयान को सुनकर कोई क्या मतलब निकालेगा। इससे ऐसा लगता है कि पीड़ित को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। अब आते हैं उस मुद्दे की ओर जो मामले को और गंभीर बनाता है।
मुजफ्फरपुर का मामला
बिहार के मुजफ्फरपुर में 9वीं क्लास की छात्रा की गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई। आरोपियों ने उसके साथ पूरी दरिंदगी की। उसके ब्रेस्ट तक काट दिए। निजी अंगों पर भी चाकू से प्रहार किया। किशोरी का शव अर्धनग्न हालत में अगले दिन पोखर में मिला। मुंह पर कपड़ा बंधा था। अगल-बगल मांस के चिथड़े और खून के धब्बे पड़े थे। पीड़ित के परिवार का कहना है कि 5 लोग घर से बेटी को उठाकर ले गए। छात्रा की मां ने थाने में लिखित शिकायत की है। प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है, जिसमें गांव के ही संजय राय (41) समेत पांच को आरोपित भी बनाया गया। ग्रामीणों ने पुलिस प्रशासन और सरकार के खिलाफ नारेजाबी की, प्रदर्शन कर न्याय मांगा, लेकिन कई दिन बीतने के बाद भी इस मामले में पुलिस और प्रशासन खाली हाथ और मौन है।
क्यों नहीं दिखाती तेवर
सिर्फ विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष की ओर से भी ऐसा देखने में आया है। जो तेवर और जो अंदाज अलग-अलग राजनीतिक दलों की महिला नेताओं का विरोधियों से जुड़े मामले पर देखने को मिलता है, वही तेवर अपनी ओर क्यों नहीं दिखता। क्या यह जरूरी नहीं, खासकर महिलाओं से जुड़े मामले में महिला नेता अपनी आवाज और बुलंद करें। यदि आवाज बुलंद होगी तो दूसरी बेटियों, महिलाओं को भी इससे ताकत मिलेगी।
महिला सुरक्षा के लिए और कदम उठाने होंगे
देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए गंभीरता से कदम उठाने होंगे। तभी महिलाओं के खिलाफ अपराध रुकेंगे। वरना नारी यू ही प्रताड़ना का शिकार होती रहेगी और समाज में भेड़ की खाल में छुपे भेड़िये, दरिंदे यू ही महिलाओं की अस्मिता के साथ खिलावाड़ करते रहेंगे। ऐसे मामलों में राज्य सरकार, महिला आयोग, प्रशासन और पुलिस की जवाबदेही तय करनी होगी। कानूनों का कठोरता के साथ पालन करना होगा, तभी हम महिला अपराधों पर अंकुश लगाने में कामयाब होंगे। वरना देश की आधी आबादी यूं ही अपराध झेलती रहेगी और सिसकती रहेगी। महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए मिलकर संगठित प्रयास किए जाने की जरूरत है। तभी यह अपराध का दंश खत्म होगा।
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