Temple
- रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया गया
- साध्वी मानेश्वरी देवी की कलाई पर राखी बांधकर व तिलक कर पूजा-अर्चना की
Temple : रोहतक। माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री व परमश्रद्धेया साध्वी मानेश्वरी देवी के पावन सानिध्य में सोमवार को आपसी प्रेम, भाईचारे , भाई-बहन के अटूट प्यार और रिश्ते का प्रतीक पर्व रक्षाबंधन धूमधाम और हर्षोल्लास से मना। भक्तों ने श्रद्धा और उत्साह से परमश्रद्धेया साध्वी मानेश्वरी देवी की कलाई पर राखी बांधकर व तिलक कर पूजा-अर्चना की और सुख-समृद्धि, दीर्घायु के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया। धार्मिक मान्यताओं की बात करें, तो यमुना ने अपने भाई यमराज के कलाई में रक्षासूत्र बांधा था जिसके बाद उन्हें यमराज ने अमरता का वरदान दिया था। तत्पश्चात प्रसाद वितरित हुआ। यह जानकारी सचिव गुलशन भाटिया ने दी।
साध्वी मानेश्वरी देवी जी ने बताया रक्षाबंधन का महत्व
साध्वी मानेश्वरी देवी ने बताया कि रक्षा बंधन की कहानी सुनाते हुए बताया कि यह रक्षाबंधन का त्यौहार शुरु कब से हुआ इस विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। इतिहास बताता है कि चित्तौड़ की रानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल शासक हुमायूं को राखी भेज कर अपना भाई बनाया और इसी राखी की इज्जत के कारण हुमायूं ने गुजरात के राजा से युद्ध कर रानी कर्मवती की रक्षा की। इसके अलावा हमारी धार्मिक पुस्तकों में भी रक्षाबंधन मनाने की कुछ मान्यताओं का जिक्र है। उन्होंने कहा कि महाभारत में इस त्यौहार की मान्यता का वर्णन है। द्रोपदी ने एक बार त्रेतायुग में भगवान श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग जाने पर अपनी साड़ी से टुकड़ा फाडक़र उनकी उंगली पर बांधा था। उसी चीर बांधने के कारण श्री कृष्ण ने चीरहरण के समय द्रौपदी की रक्षा की थी।
ऐसे आता है पर्व का जिक्र
पुराणों में इस त्यौहार का जिक्र उस समय हुआ है जब देवासुर संग्राम हुआ था। विष्णु पुराण में इसका वर्णन अध्याय नवम में किया गया है। पुराण में लिखा है कि देवाताओं और असुरों का संग्राम 12 वर्षों तक चला था। इस संग्राम में देवताओं की हार हुई और असुरों की जीत। असुरों ने देवताओं के राजा इंद्र को हराकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया। देवता परास्त होकर जब ब्रह्मा जी के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि हे देवता गण आप दुष्टों का संहार करने वाले भगवान विष्णु के पास जाइये। वे ही संसार की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के कारण हैं। वहां जाने से आपका कल्याण होगा। तब देवता गण के साथ लोक पितामह श्री ब्रह्मा जी स्वयं क्षीर सागर के तट पर गए और वहां पहुंचकर उन्होंने भगवान विष्णु की स्तुति की। स्तुति के पश्चात भगवान विष्णु प्रकट हुए और देवताओं को मदद का आश्वासन दिया। इसके बाद देवताओं ने अपने गुरु बृहस्पति से विचार विमर्श किया और रक्षा विधान के लिए कहा। तब सावन की पूर्णिमा को प्रात:काल रक्षा का विधान सम्पन्न किया गया।
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