Paraolympics
- बैडमिंटन में चरखी दादरी के नितेश ने स्वर्ण पदक कब्जाया
- हादसे में नितेश का पैर छीना, लेकिन हिम्मत नहीं हारी
- चक्का फेंक में बहादुरगढ़ के योगेश कथुनिया ने सिल्वर जीता
- कथुिनया बोले मैं अब पदक का रंग बदलने का प्रयास करूंगा
Paraolympics : । पैरालंपिक में हरियाणा के दो खिलाड़याें ने सोमवार को इतिहास रचते हुए सोना और चांदी पर कब्जा जमाया। चरखी दादरी के नितेश कुमार ने पुरुष एकल एसएल3 बैडमिंटन फाइनल में कड़े मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हराकर पहली बार स्वर्ण पदक जीता। वहीं बहदुरगढ़ के 27 वर्षीय खिलाड़ी योगेश कथुनिया ने पुरुषों के एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर के सत्र के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ रजत पदक जीता।
ऐसे छाए नितेश
हरियाणा के 29 साल के नितेश ने अपने मजबूत डिफेंस और सही शॉट चयन की मदद से तोक्यो पैरालंपिक के रजत पदक विजेता बेथेल को एक घंटे और 20 मिनट चले मुकाबले में 21-14 18-21 23-21 से हराया।
क्या है एसएल3
एसएल3 वर्ग के खिलाड़ियों के शरीर के निचले हिस्से में अधिक गंभीर विकार होता है और वह आधी चौड़ाई वाले कोर्ट पर खेलते हैं। जब नितेश 15 वर्ष के थे तब उन्होंने 2009 में विशाखापत्तनम में एक रेल दुर्घटना में अपना बायां पैर खो दिया था लेकिन वह इस सदमे से उबर गए और पैरा बैडमिंटन को अपनाया। नितेश की जीत के साथ एसएल3 वर्ग का स्वर्ण पदक भारत के पास बरकरार रहा।
कथुनिया बोले अगली बार पदक का रंग बदलूंगा
पैरालंपिक खेलों में लगातार दूसरी बार रजत पदक जीतने वाले बहादुरगढ़ के चक्का फेंक खिलाड़ी योगेश कथुनिया अपने प्रदर्शन से बहुत खुश नहीं है, क्योंकि उन्हें लगता है कि वह कई प्रमुख टूर्नामेंटों में दूसरे स्थान की बाधा को पार नहीं कर पा रहे हैं। 27 वर्षीय खिलाड़ी ने पेरिस पैरालंपिक में पुरुषों के एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में 42.22 मीटर के सत्र के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ रजत पदक जीता। कथुनिया अपने प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने अगले बड़े टूर्नामेंट में अपने पदक का रंग बेहतर करने का वादा किया।
क्या है एफ 56
एफ 56 वर्ग में भाग लेने वाले खिलाड़ी बैठ कर प्रतिस्पर्धा करते है। इस वर्ग में ऐसे खिलाड़ी होते है जिनके शरीर के निचले हिस्से में विकार होता है और मांसपेशियां कमजोर होती हैं।
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