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Haryana News : जमीन के उपजाऊपन के लिए घातक साबित हो रहा रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग

Haryana News

  • अत्यधिक एवं असंतुलित उर्वरक और कृषि रसायन कर रहे धरती की उपजाऊ क्षमता कम
  • उन्नत संशोधित एवं संकर किस्मों वाले क्षेत्रों में तेजी से कम हो रहे पोषक तत्व
  • मिट्टी व पानी की जांच करवाकर वैज्ञानिक सलाह से उपजाऊ क्षमता बनाए रखना संभव

हिसार। अत्यधिक एवं असंतुलित उर्वरकों के साथ-साथ कृषि रसायनों के प्रयोग से भूमि की उपजाऊ क्षमता कम होती जा रही है और फसल उत्पादन घटने लगा है। यही नहीं, जिन क्षेत्रों में अधिक उपज वाली उन्नत संशोधित एवं संकर किस्में उगाई जा रही है, उन क्षेत्रों की मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी बहुत तेजी से होती जा रही है, जो चिंता का विषय है। ऐसे में यदि समय पर किसान खेत की मिट्टी पानी की जांच करवाकर कृषि विशेषज्ञों की सलाह से काम करें तो भूमि की उपजाऊ क्षमता बनाए रखी जा सकती है। हिसार स्थित चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने पाया है कि फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग जमीन के उपजाऊपन के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। यदि किसान वर्ग भरपूर फसल उत्पादन के लिए खेत की मिट्टी में उपलब्ध तत्वों की मात्रा एवं मृदा स्वास्थ्य जानने के लिए मिट्टी की जांच आवश्यक रूप से करवाए तो भूमि के स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहेगा। उनका मानना है कि सभी वनस्पतियों एवं प्राणियों का जीवन मृदा पर ही टिका है, इसलिए यह जरूरी है कि हम प्रकृति की अनमोल धरोहर का उपयोग सही ढंग से करें ताकि इसका उपजाऊपन लंबे समय तक बना रह सके। वैज्ञानिकों के अनुसार आज के समय में कृषि भी एक व्यापार बन गया है। ऐसे में भूमि की फसल पैदा करने की शक्ति का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

ये आवश्यक तत्व चाहिए पौधों को

एचएयू वैज्ञानिकों के अनुसार पौधों को सामान्य वृद्धि एवं विकास के लिए 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जिनमें कार्बन, हाईड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉसफोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, जस्ता, मैगनीज, तांबा, बोरोन, मोलिब्डेनम, क्लोरिन व निकिल शामिल है। यहां पोषक तत्वों का अभिप्राय उस तत्व से है जिसकी कमी से पौधा अपना जीवन चक्र पूरा न कर सकें, उस पोषक तत्व की कमी केवल उसी तत्व के प्रयोग से पूरी होती हो व पौधे के पोषण में उसका सीधा योगदान हो। इनमें से किसी भी एक पोषक तत्व की कमी होने पर पौधा सबसे पहले उस तत्व की कमी को दर्शाता है।

इसलिए पड़ती मिट्टी जांच की जरूरत

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश का कहना है मिट्टी जांच करवाने के कई कारण हो सकते हैं और जांच के बाद हमें बहुत कुछ पता चल सकता है। आमतौर पर पौधे द्वारा मिट्टी से ग्रहण किए जाने वाले तत्वों की उपलब्ध मात्रा जानने, किसी भी फसल के लिए खाद एवं उर्वरक की सिफारिश करने पोषक तत्वों के समुचित प्रबंधन एवं उर्वरकों के सही पयोग के लिए जांच जरूरी है क्योंकि कोई भी एक पोषक तत्व दूसरे का विकल्प नहीं हो सकता। इसके अलावा अम्लीय, लवणीय व क्षारीय भूमि में समस्या का स्तर जानने व उसमें सुधार करने, मिट्टी सुधारक जैसे चूना व जिप्सम आदि की मात्रा का निर्धारण करने, अम्लीय, क्षारीय व लवणीय भूमि में फसलों एवं उनकी प्रजातियों की सिफारिश करने, जो अम्लीयता, क्षारीयता व लवणीयता को सहन करने की क्षमत रखती हो। इसके अलावा यदि कोई किसान बाग लगाने का इच्छुक है तो उसे मिट्टी की जांच अवश्य करवानी चाहिए।

मिट्टी जांच के लिए कब लें नमूना

कृषि व मृदा विशेषज्ञ समय-समय पर मिट्टी व पानी जांच के लिए किसानों को सलाह देते रहते हैं। फिर भी मिट्टी जांच के लिए मिट्टी का नमूना फसल की बिजाई या रोपाई से पहले लेना चाहिए। इसके लिए किसान को पहले संबंधित कृषि विशेषज्ञों से सलाह करके ही नमूना लेना चाहिए क्योंकि इन्हीं जांच के परिणामों के आधार पर खाद, उर्वरक, फसल व किस्मों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

प्रदेश में कहां पर हो रही मिट्टी जांच

एचएयू के विशेषज्ञ बताते हैं कि हरियाणा में मिट्टी जांच की सुविधा कई स्थानों पर उपलब्ध है। विशेषतौर पर हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की प्रयोगशालाएं जो कि हिसार, रोहतक, बावल व उचानी में यह सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की विभिन्न प्रयोगशालाओं में भी मिट्टी की जांच होती है।

एचएयू में लगता मात्र 10 रुपये शुल्क

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में मिट्टी की जांच मात्र 10 रुपये में की जाती है। इसके लिए किसानों को समय-समय पर बताया भी जाता है कि वे मिट्टी व पानी की जांच करवाते रहें। आमतौर पर तीन साल में एक बाद यह जांच जरूरी है।

किसानों के हितों के लिए लगातार प्रयासरत विश्वविद्यालय : डॉ. दिनेश

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश का कहना है कि कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय लगातार किसान हितों के लिए प्रयासरत है। इसके लिए किसानों को समय-समय पर नई-नई जानकारियां दी जाती है ताकि वे नई तकनीकों बारे अपडेट रहें। इसके तहत विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों फिल्ड में जाकर व विभिन्न माध्यमों से किसानों तक जानकारी पहुंचाते हैं ताकि वे आर्थिक रूप से सक्षम बन सकें। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जो भी नई किस्म विकसित करते हैं, उसमें विशेष रूप से उल्लेख करते हैं कि यह किस्म किस क्षेत्र के लिए उपयोगी है।

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