Gukesh
- शतरंज महासंघ अध्यक्ष महासंघ अध्यक्ष नितिन नारंग ने उपलब्धि पर दी बधाई
- मेंटल कंडीशनिंग के लिए पैडी अप्टन जैसे पेशेवर कोच की भूमिका
- कोच ग्रेज़गॉर्ज गाजेव्स्की ने उनकी प्रतिभा को निखारा
- विश्वनाथन आनंद ने उनके प्रतिभा को निखारने में अहम भूमिका निभाई
Gukesh : चंडीगढ़। अंतरराष्ट्रीय शतरंज के क्षेत्र में भारत की गौरवपूर्ण उपलब्धि अर्थात ग्रैंड मास्टर डी. गुकेश ने 2024 विश्व शतरंज चैंपियनशिप में अद्भुत प्रदर्शन कर चैंपियन चीन के डिंग लिरेन को पराजित कर खिताब नाम किया है। गुकेश ने 18 साल, आठ महीने और 14 दिन की उम्र में यह खिताब जीतकर शतरंज के इतिहास में सबसे कम उम्र के विजेता बने हैं । महासंघ अध्यक्ष नितिन नारंग ने इस उपलब्धि पर पूरी टीम को बधाई दी है। गुकेश ने विश्व शतरंज के दिग्गज गैरी कास्पारोव के चार दशकों का पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया हैं, जिन्होंने 1985 ईस्वी में 22 वर्ष, छह महीने और 27 दिन की उम्र में यह खिताब जीता था।
शतरंज महासंघ अध्यक्ष ने दी पूरी टीम को बधाई
अखिल भारतीय शतरंज महासंघ के अध्यक्ष नितिन नारंग ने इस उपलब्धि पर बधाई देते हुए कहा, “गुकेश की यह जीत न केवल उनके करियर का मील का पत्थर है, बल्कि शतरंज के इतिहास में भारत का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करती है। पूरे टूर्नामेंट में उन्होंने जिस एकाग्रता और धैर्य का परिचय दिया है, वह वाकई प्रेरणादायक है। नारंग ने कहा “शतरंज के बादशाह” विश्वनाथन आनंद के बाद गुकेश को “क्राउन प्रिंस ऑफ चेस” कहना गलत नहीं होगा । आज गुकेश ने खुद को शतरंज का वह अभिमन्यु साबित किया है जिसने सही समय पर सही चाल चलते हुए अपने प्रतिद्वंदी के किलेबंदी को भेद दिया । सही मायने में आज गुकेश को उनके दस सालों के कड़े मेहनत का फल मिला, हर चैम्पियन के पीछे एक असाधारण टीम काम कर रही होती है।
अथक मेहनत की
महज संयोग नहीं है कि भारतीय क्रिकेट और हॉकी टीम के साथ काम कर चुके हैं पैडी अप्टन जैसे धुरंधर पेशेवर कोच ने गुकेश के मेंटल कंडीशनिंग के लिए अथक मेहनत की। उनके कोच ग्रेज़गॉर्ज गाजेव्स्की थे, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को निखारा, उन्हें खेल जीतने की अदम्य भावना से प्रेरित किया, कम समय में प्रभावी खेल खेलने का कौशल सुधारने में मदद की, और सबसे महत्वपूर्ण, कठिन समय में धैर्य बनाए रखना सिखाया। उनकी पूरी टीम राडोस्लाव वोज्ताशेक, पेंटाला हरिकृष्णा, विंसेंट केमर, जान-क्रिस्टोफ़ डूडा और जान क्लिम्कोव्स्की ने अद्मय उत्साह और टीम स्पिरिट का परिचय देते हुए उनके साथ लगी रही और गुकेश को भारत के पक्ष में बाजी पलटने में मदद दी। गुकेश को विश्वनाथन आनंद जैसे द्रोणाचार्य मिले जिन्होंने उनके प्रतिभा को निखारा। ओलंपियाड में विश्व के करीब 180 देशों ने भाग लिया था। मगर शतरंज ओलंपियाड के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा था जब एक देश ने इस तरह का दबदबा कायम किया हो ।
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