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Cash case at judge’s house : जांच समिति की रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ कदाचार साबित, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव

Cash case at judge’s house

  • जज के घर कैश मामला : 64 पेज की रिपोर्ट में कहा-स्टोर रूम पर जज और उसके परिवार की ही कंट्रोल था
  • जस्टिस वर्मा का व्यवहार बेहद बुरा, स्टोर रूम से भारी मात्रा में अधजली नकदी मिली थी
  • तीन जजों की समिति ने 55 गवाहों से पूछताछ की, 10 दिन तक जांच की
  • जस्टिस वर्मा के अधिकारिक आवास का भी किया दौरा

Cash case at judge’s house : नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से जले नोटों की बरामदगी की जांच कर रही समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर ‘गुप्त या सक्रिय नियंत्रण’ था, जहां से बड़ी मात्रा में अधजली नकदी मिली थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे न्यायमूर्ति वर्मा के कदाचार का पता चलता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें (न्यायाधीश को) हटाया जाना चाहिए। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय समिति ने 10 दिनों तक मामले की पड़ताल की, 55 गवाहों से पूछताछ की और न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास पर 14 मार्च को रात करीब 11.35 बजे लगी आग के परिप्रेक्ष्य में घटनास्थल का दौरा भी किया। न्यायमूर्ति वर्मा उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश थे और उनका तबादला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कर दिया गया था।

महाभियोग चलाने की सिफारिश

रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की है। जांच समिति ने 64-पृष्ठ की अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘इस प्रकार समिति का मानना ​​है कि नकदी राशि राष्ट्रीय राजधानी के 30 तुगलक क्रीसेंट स्थिति आवास के भंडार कक्ष में पाया गया था, जो आधिकारिक तौर पर न्यायमूर्ति वर्मा के कब्जे में था। इतना ही नहीं, भंडार कक्ष पर न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था।’

आरोपों में पर्याप्त तथ्य

रिपोर्ट के अनुसार, ‘सशक्त अनुमानात्मक साक्ष्य के माध्यम से यह स्थापित होता है कि जले हुए नोट 15 मार्च 2025 को तड़के 30 तुगलक क्रीसेंट स्थित आवास के भंडार कक्ष से निकाले गए थे।’ रिकॉर्ड पर मौजूद प्रत्यक्ष और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, यह समिति दृढ़ता से इस बात पर सहमत है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश के 22 मार्च के पत्र में वर्णित आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं और कदाचार साबित पाया गया है। यह कदाचार इतना गंभीर है कि न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने की कार्यवाही शुरू करने की आवश्यकता है…।’

कोई भी कमी जनता के विश्वास को खत्म करेगी

न्यायिक कार्यालय का अस्तित्व आम नागरिकों के विश्वास पर आधारित है और इस विश्वास की गुणवत्ता न्यायाधीश द्वारा न केवल न्यायालय के अंदर बल्कि न्यायालय के बाहर प्रदर्शित व्यवहार और आचरण से जुड़ा होता है। न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश करते हुए समिति ने कहा है, ‘इस संबंध में कोई भी कमी जनता के विश्वास को खत्म कर सकती है, जिसे सख्ती से देखा जाना चाहिए।’ तीन-सदस्यीय समिति में न्यायमूर्ति नागू के अलावा हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन भी शामिल थे।

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