• Mon. Oct 27th, 2025

Health : पीठ के निचले हिस्से का दर्द कम करे और रीढ़ को मजबूत बनाती है कटि बस्ती

Health

  • आयुर्वेद में बड़े गजब की थेरेपी है कटि बस्ती, नसें भी होती हैं मजबूत
  • पीठ के नीचले हिस्से की सूजन को कम करने में भी बेहद कारगर
  • कटि बस्ती थेरेपी को कम से कम 7 और अधिक से अधिक 21 दिन तक करें
  • थेरेपी के लेने के बाद हल्की यानी जेंटल मसाज करें, ठंडी चीजों से परहेज करें

आयुर्वेद में हर बीमारी का उपचार संभव है, लेकिन इसके लिए कुछ नियम और कायदों का पालन करना बेहद जरूरी है। आयुर्वेद में जड़-बूटियों के द्वारा इलाज किया जाता है। हालांकि यह इलाज आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में ही किया जाना चाहिए। शरीर दर्द होने पर कई तरह की थेरेपी और दिव्य औषधियों का प्रयोग किया जाता है। इनमें एक बेहद ही महत्वपूर्ण थेरेपी है कटि बस्ती। इस थेरेपी का प्रयोग पीठ के नीचे के हिस्से में दर्द को ठीक करने और रीढ़ को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है। इस थेरेपी के बारे में पूरी जानकारी लेने के लिए हमने रोहतक के आयुर्वेदिक चिकित्सक एवं प्रसिद्ध वैद्य डॉ. जितेंद्र राणा से बात की। उन्होंने कटि बस्ती के बारे में कई अहम जानकारियां दी। पेश है अहम रिपोर्ट।


वात दोष को ठीक करने में कारगर

आयुर्वेद में किसी भी थेरेपी के लिए जड़ी-बूटियों और तेल का उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद में कई तरह की थेरेपी होती हैं, जो वात, पित्त या कफ को संतुलित करने में मदद करती हैं। कटि बस्ती वात दोष को ठीक करने में कारगर मानी जाती है। इसमें गर्म तेल को पीठ के निचले हिस्से में उड़द के आटे से बने सांचे में रखा जाता है। फिर इस तेल को पूरे घेरे तक ले जाया जाता है। यह आयुर्वेद की पुरानी तकनीक है।

क्या है कटि बस्ती थेरेपी

कटि बस्ती एक प्रभावकारी आयुर्वेदिक थेरेपी है। इसमें कटि का मतलब, ‘पीठ का निचला हिस्सा’ और बस्ती का मतलब, ‘किसी चीज को अंदर रखना’ होता है। यानी इसमें पीठ के निचले हिस्से में उड़द से बने आटे के घेरे के अंदर गर्म तेल रखा जाता है। इसमें आटे से एक बड़ी सी रिंग बनाई जाती है, फिर इसमें औषधीय तेल डाला जाता है। इसमें शरीर में गर्मी पैदा होती है और दर्द से राहत मिलती है। यह थेरेपी लेने से शरीर और मन शांत होता है। इससे शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है। पीठ के निचले हिस्से के दर्द में आराम मिलता है। रीढ़ की हड्डी मजबूत बनती है।

यह होती है प्रक्रिया

-कटि बस्ती थेरेपी लेने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले पेट के बल लिटाया जाता है।
-फिर सिर को तौलिये के रोल से सहारा दिया जाता है।
-पीठ के निचले हिस्से पर आटे से मोटी रिंग बनाई जाती है, ताकि तेल बाहर न निकले।
-फिर औषधीय तेल को गर्म किया जाता है।
-आयुर्वेदिक चिकित्सक तेल का चयन व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति के अनुसार करते हैं।
-इस तेल को आटे के सांचे में डाला जाता है।
-फिर धीरे-धीरे तेल को घिरे हुए पूरे क्षेत्र तक ले जाया जाता है।
-इस प्रक्रिया को करने में लगभग 40 से 45 मिनट लग जाते हैं।

यह होते हैं फायदे

-कटि बस्ती थेरेपी लेने से पीठ के निचले हिस्से में होने वाले दर्द से राहत मिलती है।
-अगर आपको पीठ या कमर में दर्द हो, तो इस थेरेपी को लेना फायदेमंद हो सकता है।
-कटि बस्ती थेरेपी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है। इससे दर्द में भी आराम मिलता है।
-इस थेरेपी को लेने से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है।
-पीठ के निचले हिस्से में रक्त प्रवाह अच्छी तरह से होने लगता है।
-अगर पीठ के निचले हिस्से या रीढ़ की हड्डी पर सूजन है, तो कटि बस्ती थेरेपी सूजन से भी राहत देती है।
-कटि बस्ती थेरेपी लेने से हड्डियां और मांसपेशियां मजबूत बनती हैं।
-माइग्रेन, सर्वाइकल, गठिया, फ्रोजन शोल्डर जैसी समस्याएं होने पर भी कटि बस्ती थेरेपी ली जा सकती है।
-इस थेरेपी को लेने से तनाव और चिंता दूर होती है। रात को नींद अच्छी आती है।
-मांसपेशियों का ऐंठन कम होने लगता है।
-वात दोष को दूर करने के लिए इस थेरेपी को काफी कारगर माना गया है।

ये हो सकते हैं नुकसान

-बुखार आना
-ज्यादा पसीना आना
-कई बार सूजन बढ़ना
(इससे घबराने की जरूरत नहीं है, सिर्फ सावधनी बरतनी होगी।)

सावधानियां

-हमेशा आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर ही इसे करवाना चाहिए।
-तेज ज्यादा गर्म नहीं होना चाहिए। इससे त्वचा जल सकती है।
-कटि बस्ती थेरेपी लेने के समय हिलने-डुलने से बचना चाहिए।
-आटे को अच्छी तरह से चिपकाकर रखें, जिससे तेल का रिसाव न हो।

इन तेलों का कर सकते हैं प्रयोग

-धनवंतरम तेलम
-महानारायण तेलम
-क्षीरबला तेलम
-महाविषगर्भ तेलम
-महामास तेलम
-तिल का तेल

तेल के प्रयोग से ये होगा

तेलीय बस्ती से स्नायुंडल मजबूत होता है। यह तेल त्वचा के सूक्ष्म छिद्रों के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश करके जोड़ों और हड्डियों के सिरों में चिकनाई उपलब्ध करवाता है। इसे देसी भाषा में जोड़ों का ग्रीस कहा जाता है। इस ग्रीसिंग से जोड़ों शिरों में घर्षण कम होकर दर्द में राहत मिलती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *