Sirsa News
- गद्दी को लेकर डेरा जगमालवाली में भड़का विवाद
- संत बहादुर चंद मूल रूप से चौटाला गांव के रहने वाले थे
- उनका जन्म 10 दिसंबर 1944 को हुआ, गांव से ही प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की
Sirsa News : डेरा जगमालवाली के गद्दीनशीन संत बहादुर चंद वकील महाराज का गुरुवार सुबह निधन हो गया। वे एक साल से बीमार थे। उनका दिल्ली के मैक्स अस्पताल में इलाज चल रहा था। बाद दोपहर उनके पार्थिव शरीर को संगत के अंतिम दर्शन के लिए डेरे में लाया गया। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को डेरा जगमालवाली में किया गया। इसके बाद संत बहादुर चंद वकील के निधन के बाद ही गद्दी को लेकर डेरा जगमालवाली में विवाद शुरू हो गया है। डेरा संगत दो धड़ों में बंट गई। पुलिस प्रशासन की ओर से मौके पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। डेरा प्रमुख के निधन के बाद डेरा में 3 व 4 अगस्त को होने वाला वार्षिक समागम डेरा संगत की ओर से रद कर दिया गया है।
पहली बार समागम रद
डेरे के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब डेरा में कोई भी वार्षिक समागम नहीं होगा। संत बहादुर चंद मूल रूप से चौटाला गांव के रहने वाले थे। उनका जन्म 10 दिसंबर 1944 को हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव के ही स्कूल से की। इसके बाद उन्होंने हिसार के दयानंद कॉलेज से आगे की पढ़ाई की। यहां ये आर्य समाज प्रचारणी सभा के अध्यक्ष बने। इसके बाद उन्होंने चंडीगढ़ के लॉ कॉलेज से लॉ की डिग्री पूरी की। 1968 में वे डेरा जगमालवाली में आ कर रहने लग गए।
करीबी विरेंद्र सिंह के गद्दी पर दावा करने पर विवाद
डेरे की गद्दी को लेकर आज उस वक्त विवाद खड़ा हो गया जब संत वकील साहब के करीबी विरेंद्र सिंह ने गद्दी पर अपना दावा पेश कर दिया। जिसके बाद डेरे के श्रद्धालु भडक़ गए और आपस में मारपीट करने लगे। जिसके बाद पुलिस ने हस्तक्षेप कर स्थिति को संभाला और कुछ लोगों को अपने साथ ले गई। इस बीच डेरा भक्त अमर सिंह ने पत्रकारों से बातचीत में वीरेंद्र सिंह पर कई आरोप लगाए और कहा कि उनका दावा गलत और झूठा है। उन्होंने कहा कि पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।
पुलिस को दी शिकायत
सतनाम सिंह पुत्र विरेंद्र सिंह ने कालांवाली थाना में इस संबंध में शिकायत दी है। शिकायत में कहा गया है कि साध-संगत संत के पार्थिव देह की दर्शन कर रही थी। इतने में विरेंद्र सिंह, नंद लाल ग्रोवर, शमशेर सिंह लहरी, बलकार सिंह आए और साध-संगत के साथ गलत किया और गालियां निकालने लगे। विरेंद्र सिंह के भाई बलकार सिंह ने उसे जान से मारने के लिए पिस्तौल से दो फायर भी किए। संगत के शोर मचाया तो वे वहां से फरार हो गए। उसने आरोप लगाया है कि विरेंद्र, बलकार, शमशेर लहरी व नंद लाल ने संगत को धोखे में रखकर डेरे की वसीयत अपने नाम करवा ली है।
डेढ़ साल पहले सौंप दी थी गद्दी: विरेंद्र
गद्दी को लेकर उपजे विवाद पर विरेंद्र सिंह ने कहा कि संत वकील साहिब ने डेढ़ साल पहले ही उनके नाम वसीयत कर उन्हें गद्दी सौंप दी थी। कुछ लोग डेरा को बदनाम करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को यह हमज नहीं हो रहा है जिस कारण उन पर आरोप लगाए जा रहे हैं।
60 साल पहले बना था मस्ताना बलूचिस्तानी आश्रम
- आश्रम की स्थापना करीब 60 साल पहले हुई थी। तब बाबा सज्जन सिंह रुहल जोकि गांव जगमालवाली के निवासी थे, ने संत गुरबख्श सिंह मैनेजर साहिब को अपनी कई एकड़ जमीन दान में दी और डेरा बनाने का अनुरोध किया। जिस पर संत गुरुबख्श सिंह मैनेजर साहिब ने मस्ताना शाह बलूचिस्तानी आश्रम की स्थापना की।
- मैनेजर साहिब ने अपनी देख रेख में एक 100 बाई 100 फीट का सचखण्ड हाल बनवाया जोकि कारीगरी का एक अदभुत व बेजोड़ नमूना है क्योकि इस सचखण्ड हाल की यह खासियत है कि यह बिना पिल्लरों के बना हुआ है। वर्तमान में डेरे की गद्दी संत बहादुर चंद वकील साहिब के पास थी।
- मैनेजर साहिब के मृत्यु के बाद 1998 में संत बहादुर चंद को डेरे की गद्दी सौंपी गई थी।
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