Sansad
- -सदन में दो बार हुआ मतदान, पक्ष में 269 और विरोध में पड़े 169 मत
- -केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को सदन में पेश करने के बाद इसे जेपीसी के पास भेजने का रखा प्रस्ताव।
Sansad : नई दिल्ली। विपक्ष के जोरदार हंगामे के बीच केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में बहुप्रतीक्षित एक देश, एक चुनाव से जुड़ा संविधान (129 वां संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया। इस दौरान विपक्ष की मत विभाजन की मांग के साथ दो बार (इलेक्ट्रॉनिक और कागज की पर्चियों पर लिखकर) सदन में मतदान हुआ। विधेयक के पक्ष में 269, विरोध में 198 मत पड़े (कुल मतदान का आंकड़ा-467) और उसके बाद विधेयक को बहुमत से स्वीकार कर लिया गया। साथ ही कानून मंत्री ने विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने का प्रस्ताव भी रखा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि नए संसद भवन में यह पहला मौका है जब किसी विधेयक को सदन में पेश करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का प्रयोग करते हुए मतदान हो रहा है। मेघवाल ने सदन में संविधान संशोधन के अलावा केंद्रशासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक 2024 भी पेश किया। जिसका संबंध एनसीटी कानून 1963, 1991 और जेएंडके पुनर्गठन बिल 2019 में बदलाव किया जा सके। विधेयक प्रस्तुत करने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने कार्रवाई को एक घंटे के लिए दोपहर करीब दो बजे से लेकर तीन बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।
गृह मंत्री बोले, जेपीसी को भेजने के पक्ष में पीएम
लोकसभा में विपक्ष के हंगामे के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी दिलाते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कि इसे विस्तृत चर्चा के लिए जेपीसी के पास भेजने के लिए कहा था। वहीं, लोकसभा अध्यक्ष ने नियम-72 के बाहर जाने वाला नहीं कहा है। अगर कानून मंत्री इसे जेपीसी को भेजने के लिए तैयार हैं तो इसे पेश करने पर सदन में हो रही चर्चा समाप्त हो सकती है। विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों को लेकर अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि विधेयक से संबंधित प्रस्ताव पर पहले ही उच्चस्तरीय समिति विचार कर चुकी है। संविधान के तहत देश की संसद को आम चुनाव के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कराने के लिए कानून बनाने का अधिकार है। इसलिए यह विधेयक पूरी तरह से संविधान सम्मत है। इससे देश के संघीय ढांचे पर कोई वार नहीं किया जा रहा है।
सरकार पूरी कर रही 41 साल से लंबित मांग
कानून मंत्री ने सदन में विधेयक को पेश करते हुए कहा कि पिछले 41 साल से यह मामला लंबित था। जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। वर्ष 1983 में निर्वाचन आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में एक देश, एक चुनाव कराने के लिए कहा था। 19 जून 2019 को प्रधानमंत्री ने मामले पर सर्वदलीय बैठक बुलाकर सभी दलों से इस पर चर्चा की थी। इसके बाद गुजरात के केवड़िया में लोकसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता में पीठासीन अधिकारियों का एक सम्मेलन हुआ था। जिसके समापन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने एक देश, एक चुनाव पर अपना पक्ष रखा था। मेघवाल ने कहा कि देश का संघीय ढांचा अविनाशी है। उसे कोई नहीं बदल सकता है। विपक्ष राजनीतिक उद्देश्य से इसका विरोध कर रहा है। उन्होंने स्वीडन और जर्मनी का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां पहले से एक देश, एक चुनाव हो रहा है।
विपक्ष की आपत्तियां
कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की तरफ से मैं इस विधेयक का विरोध करता हूं। क्योंकि यह संविधान की सातवीं सूची में उल्लेखित मूलभूत ढांचे पर हमला करता है। इसमें संशोधन इस सदन के अधिकार क्षेत्र से परे है। भारत राज्यों का संघ है। ऐसे में अत्यधिक केंद्रीकरण की कोशिश संवैधानिक तंत्र यानी संविधान के खिलाफ है। इसलिए इस विधेयक को जल्द से जल्द वापस लिया जाना चाहिए। पार्टी के लोकसभा में उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि यह कानून नागरिकों के वोट देने के संवैधानिक अधिकार का विरोध करता है। इसके बाद राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सिफारिश पर चलेंगे। जबकि चुनाव आयोग की सीमाएं अनुच्छेद 324 में निहित हैं। अब इस विधेयक के जरिए आयोग को बेतहाशा शक्ति प्रदान की जा रही है। उन्होंने कहा कि इसके जरिए सरकार प्रधानमंत्री के प्रचार से भारत के चुनाव छीनेंगे तो हम ऐसा नहीं होने देंगे। विधेयक को जेपीसी को भेजा जाए।
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