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Navratri : मां कात्यायनी की पूजा अर्चना करके सपरिवार मांगी दीर्घायु की दुआएं

Navratri

  • -माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में चैत्र नवरात्र पर हुई पूजा
  • -ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री के सानिध्य में मां जगदंबे के छठे स्वरूप मां कात्यायनी से लिया आशीर्वाद
  • -भक्तों ने मां की अखंड ज्योत की आरती करके और चुनरी चढ़ाकर लंबी दीर्घायु की दुआएं मांगी

Navratri : रोहतक। माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री जी के सानिध्य में चैत्र नवरात्र में वीरवार को चैत्र मास, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मां जगदंबे के छठे स्वरूप मां कात्यायनी की भक्तों ने सपरिवार पहुंचकर मां की अखंड ज्योत की आरती करके और चुनरी चढ़ाकर लंबी दीर्घायु की दुआएं मांगी। इनके पूजन से दीर्घायु की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदि शक्ति मां दुर्गा ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है। कार्यक्रम में गद्दीनशीन मानेश्वरी जी के प्रवचन हुए, दुर्गा स्तुति का पाठ और पंडित अशोक द्वारा आरती और प्रसाद वितरित हुआ। यह जानकारी सचिव गुलशन भाटिया ने दी।

मां कात्यायानी की पूजा से मन चाहे वर की प्राप्ति होती

साध्वी मानेश्वरी ने भक्तों को मां का गुणगान करते हुए कहा कि मां कात्यायनी की पूजा करने से भगवान बृहस्पति प्रसन्न होकर विवाह का योग बनाते हैं और शादी में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। उन्होंने कहा कि इनकी पूजा से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। मां कात्यायनी ने ही अत्याचारी राक्षस महिषाषुर का वध कर तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्त कराया था।
उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं देवी की पूजा की थी। लिहाजा विवाह में आ रही बाधा दूर करने के लिए देवी की पूजा फलदायी मानी जाती है। उन्होंने कहा कि प्रवचन सुनना ही धर्म नहीं बल्कि उसे जीवन में प्रयोग रूप देना धर्म है। सत्संगति यदि आचरण में नहीं है तो इसे विसंगति कहा जाएगा। सुनकर जो आचरण में आ जाए, वह सत्संग है। मां कात्यानी का स्वरूप अत्यंत चमकीला, तेजस्वी है और इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है, वहीं बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है।

मनुष्य को जीवन में धर्म अवश्य करना चाहिए

साध्वी मानेश्वरी देवी ने बताया कि हम और आप काल रूपी सर्प के मुख में बैठे हैं। यह काल रूपी सर्प कभी भी हमको डस सकता है। हमारी आयु दिन प्र्रतिदिन घटती जाती है। जिस प्रकार से टूूटे घड़े में से पानी की बूंदें एक-एक करके निकलती जाती है। इसलिए मनुष्य को जीवन में धर्म करना चाहिए। धर्म करने से पुण्य बल बढ़ जाता है। पुण्य बल बढ़ जाने से हमे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

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