Mahakumbh
- महाकुंभ के औपचारिक शुभारंभ होने के बाद मेला क्षेत्र में सबसे पहले जूना अखाड़े के संतों ने किया छावनी प्रवेश
- अब संगम की रेती पर 45 दिन माघ के महीने में कड़ाके की ठंड में तप करने के लिए कुटिया बनाने का कार्य शुरू
- 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा प्रयागराज महाकुंभ
Mahakumbh : प्रयागराज। महाकुंभ 2025 का औपचारिक शुभारंभ होने के बाद हाल में मेला क्षेत्र में सबसे पहले जूना अखाड़े के संतों ने छावनी प्रवेश किया और अब संगम की रेती पर 45 दिन माघ के महीने में कड़ाके की ठंड में तप करने के लिए कुटिया बनाने का कार्य शुरू कर दिया है। चौदह वर्ष से अनोखी तपस्या करने वाले हठयोगी महन्त श्री राधेपुरी उर्ध्वबाहु जी पहुंचे हैं।
मध्य प्रदेश के आगर जनपद में स्थित आनन्द धाम आश्रम आमला के रहने वाले श्री पंच दस नाम जूना अखाड़ा के महन्त श्री राधेपुरी उर्ध्व बाहु जी महाराज ने बताया कि वर्ष 2011 से विश्व कल्याण एवं समाज कल्याण के लिए गुरू जी का आशीर्वाद से यह कठिन तप शुरू किया। मैं दाहिना हाथ उठाए हुए हैं। वह दाहिने हाथ से कोई कार्य नहीं करते हैं। इस समय हाथ के नाखून बड़े होकर सूख चुके है। हाथ में ब्लड का संचार इस समय बंद हो चुका है, जिससे हड्डियां भी अब सूखने लगी हैं। हम संत तपस्या जन कल्याण के लिए करते हैं, विश्व में शांति रहे और विश्व में कोई आपदा न आने पाए, इसके लिए गुरु महाराज से यही कामना करते रहते हैं। इससे पूर्व में भी दूसरा अन्य हठयोग कर चुके हैं।
हठयोग सबसे कठिन तपस्या: रविन्द्र पुरी महाराज
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र पुरी महाराज ने कोई ज्ञान मार्ग से ईश्वर को प्राप्त करता है, कोई भक्ति मार्ग और कोई हठयोग के माध्यम से तपस्या करते हैं। संतों के हठ योग के अलग—अलग आसन होते हैं। कोई खड़े रहते हैं, कोई हाथ ऊपर उठाए रहता है। उनका मानना है कि उनका उसी में आनंद है और उनकी श्रद्धा है, वह उसी रास्ते से ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं। एक संत शम्भू पुरी जी महाराज हैं, वह तीन वर्ष तक दोनों पैरों पर खड़े रहे और उनके दोनों पैर का बाद में ऑपरेशन कराना पड़ा, हालांकि पुन: स्वस्थ होने के बाद, वे पुन: उसी आसन पर अपनी तपस्या करने लगे। इसी तरह एक संत हैं जो चौदह वर्ष से एक हाथ को ऊपर उठाए हुए हैं और ईश्वर की प्रार्थना में लगे हुए हैं।
महाकुंभ के मुरीद हुए विदेशी संत
प्रयागराज महाकुंभ के आयोजन के पहले महाकुंभनगर में देश के कोने कोने से आए साधुओं के अलावा विदेश से भी साधु संतों के आने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। अखाड़ों की धर्म ध्वजा, नगर प्रवेश और कुंभ छावनी प्रवेश यात्रा की परंपरा में विदेशी साधु-संत भी महाकुंभ पहुंचे हैं। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा में शामिल होने आए विदेशी संतों को महाकुंभ रास आ रहा है। जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर सोम गिरि उर्फ पायलट बाबा की जापानी शिष्या योग माता एवं महामंडलेश्वर केको कई जापानी साध्वी के साथ छावनी प्रवेश में शामिल हुईं। उनका कहना है कि एयर कनेक्टिविटी से लेकर ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था अच्छी है। नेपाल से आईं महिला संत और जूना अखाड़े की महामंडलेश्वर हेमानंद गिरि का कहना है कि संतों का सौभाग्य है कि जिस प्रदेश में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, वहां के मुख्यमंत्री भी एक संत हैं।
https://vartahr.com/mahakumbh-urdhva…and-for-14-years