Jatela Dham
- स्वामी नितानंद जी महाराज की तपोस्थली, 14 एकड़ में फैला आश्रम
- आश्रम में लगे सैंकड़ों पेड़ दे रहे प्रणदायिनी शुद्ध ऑक्सीजन
- धाम ने प्रदेश में एक लाख से अधिक त्रिवेणी लगाने का लक्ष्य रखा
- रोहतक, झज्जर, चरखी दादरी समेत कई जिलों में लगाए जा चुके हजारों पौधे
- लोग आश्रम में आकर खुद को कर रहे सेहतमंद और मानसिक रूप से मजबूत
- दमा, सांस, नजला, शूगर और त्वचा संबंधी बीमारियों से सैकड़ों लोग पा चुके मुक्ति
- कैंसर जैसी घातक बीमारियों का भी होता है आयुर्वेद तरीके से इलाज
- आश्रम में योग भी करवाए जाते हैं, महीने में 3 से 7 दिन तक लगती हैं कक्षाएं
Jatela Dham : हरियाणा के झज्जर में दूबलधन माजरा के पास स्थित स्वामी नितानंद महाराज की तपोस्थली जटेला धाम प्रकृति की ‘गोद’ में बसा एक सुंदर आश्रम है। यह चार गांवों से घिरा हुआ है। इनमें माजरा, बिगोवा, बास और सिवाना शामिल हैं। बता दें कि बिगोवा गांव को पहले महमदपुर के नाम से जाना जाता था। आश्रम का शांत वातारण, भरपूर पेड़ पौधे, खानपान और लोगों की अटूट श्रद्धा बाहर से आने वाले लोगों का मन मोह लेती है। आश्रम में लगे हजारों की संख्या में पेड़ शुद्ध प्राणदायिनी ऑक्सीजन से लोगों के साथ-साथ आसपास के गांवों के पर्यावरण को भी शुद्ध हवा से निहाल कर रहे हैं। यहां आकर भक्तजन और अन्य लोगों का तनाव खुद ही दूर हो जाता है। ऐसा सकारात्मक माहौल और प्रकृति का सुंदर नजारा शायद ही कहीं देखने को मिलता है। ऐसे माहौल में आधी बीमारियां तो बिना किसी दवा के ही ठीक हो जाती हैं। स्वामी नितानंद जी महाराज के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा भी लोगों को एक दूसरे जोड़े हुए हैं। माना जाता है कि स्वामी नितानंद जी आज भी यहां मौजूद हैं। जो लोगों के दु:ख हरते हैं। आश्रम में हर रोज सैकड़ों लोग आते हैं। हर रविवार को आश्रम के संचालक गद्दीनशीन संत महंत राजेंद्र दास जी अपने प्रवचनों से संगत को निहाल करते हैं। इसके उपरांत प्रसाद वितरित किया जाता है और भंडारे में लोग प्रसाद ग्रहण कर आंनदित हो जाते हैं। आश्रम में हर रविवार को दवाइयों का भंडारा लगता है। इसमें भी हर सप्ताह सैकड़ों लोग आते हैं। इसके अलावा, आश्रम में योग कक्षाएं भी चलती हैं। इसके लिए पहले से बुकिंग करवानी पड़ती है।
आश्रम में हजारों पेड़
जटेला धाम लोगों को जागरूक करने का काम कर रहा है। यह स्थान झज्जर से करीब 20 से 25 किलोमीटर दूर है। करीब 14 एकड़ में फैले इस आश्रम में खिलखिलाकर लहलहाते पेड़ लोगों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हैं। ताकि आने वाली पीढ़ी भी खुश रह सके। यहां सबसे ज्यादा बरगद और पीपल पेड़ हैं। इसके अलावा कैर, बेरी, कीकर, नीम, तुलसी समेत कई प्रजाति के पौधे और पेड़ भी आश्रम की शोभा बढ़ा रहे हैं। कई जगह त्रिवेणी अपनी छटा बिखेर रही है तो औषधीय पौधे आश्रम को महका रहे हैं। इनके पत्तों से दवाएं तैयार होती हैं। इसके अलावा जाल के करीब 25 से 27 पेड़ भी यहां मौजूद हैं। बताया जा रहा है कि ये पेड़ खुद से ही उगे हैं। किसी के द्वारा लगाए गए नहीं हैं।
ग्रामीण देते हैं सेवाएंआश्रम में आसपास गांवों के लोग, भक्त और कुछ कर्मचारी अपनी सेवाएं देते हैं। करीब 35 से 40 लोग हर समय आश्रम में पेड़, पौधों और बाहर से आने वाले लोगों की सेवाओं में लगे रहते हैं। कुछ लोग बाहर से भी आकर दो दिन, चार दिन या एक सप्ताह तक श्रमदान करते हैं। ये सभी लोग पेड़ पौधों की देखभाल करते हैं। साफ सफाई का काम देखते हैं। बाहर आने वाले भक्तों के रहने और खाने का इंतजाम करते हैं। आश्रम को संभालने के लिए गांव के लोगों की कमेटी भी बनी हुई है जो सभी प्रकार के आयोजनों का काम देखती है। यहां पेड़ पौधों को बचाने के लिए ग्रामीण और भक्त जीन जान लगा देते हैं। हर साल नए पौधे रोपे जाते है और लोगों को भी पौधे लगाने के लिए जागरूक किया जाता है।
लोगों को कर रहे जागरूक
जटेला धाम लोगों को सामाजिक सेवाओं के लिए भी जागरुक कर रहा है। प्रदेश के कई जिलों में आश्रम की ओर महंत राजेंद्र दास जी के नेत्त्व में पौधरोपण अभियान चलाया गया है। इस अभियान के तहत रोहतक, झज्जर, सोनीपत, पानीपत और पंचकूला में त्रिवेणी लगाई हैं। प्रदेश में एक लाख से अधिक त्रिवेणी लगाने का लक्ष्य रखा गया है। पौधे मुफ्त में बांटे जाते हैं, ताकि लोग पर्यावरण के प्रति जागरुक हों और अधिक से अधिक संख्या में पौधे लगाएं। प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाए जाएंगे तो पर्यावरण शुद्ध होगा और लोगों को असंख्य बीमारियों से मुक्ति मिलेगी। जानकारी के अनुसार जटेला धाम की ओर से पिछले साल 7000 त्रिवेणी लगाई गई हैं, इनमें झज्जर में 2000, रोहतक में 1500, चरखी दादरी में 2000, गुरुग्राम में 500, कुरुक्षेत्र में 500 और 2000 अन्य पौधे लगाए गए हैं। और करीब 5000 त्रिवेणी जटेला धाम में लगाई गई हैं। इस बार गुरु पूर्णिमा पर भी 2000 से अधिक पौधे लगाए गए हैं।
खीर का विशेष महत्व
आश्रम के संचालक गद्दीनशीन संत महंत राजेंद्र दास जी के अनुसार आश्रम में शरद पूर्णिमा को आरोग्य दिवस के रूप में मनाकर जटेला धाम ने समाज को सकारात्मक संदेश दिया है। इस दिन आश्रम में आरोग्य खीर तैयार होती है। इस खीर के खाने मात्र और स्वामी नितानंद जी महाराज के आशीर्वाद से असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। इसके कई प्रमाण भी मिले हैं। विशेष औषधियों से चन्द्रमा की किरणों के बीच तैयार होने वाली आरोग्य खीर में चन्द्रमा की शीतल किरणों से कई औषधीय गुण आ जाते हैं। महन्त राजेंद्र दास ने कहा कि आरोग्य खीर खाने से दमा, नजला और जुकाम जैसी बीमारियों का पूर्णतया इलाज हो जाता है। आश्रम में सैकड़ों कैंसर के मरीज भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर चुके हैं। इसके अलावा शूगर, त्वचा, जुकाम, नजला और दमा से पीड़ित लोग ठीक हो चुके हैं।
रसोई के लिए करना पड़ता है इंतजार
जटेला धाम में हर साल स्वामी जी की रसोई (भंडारा) लगता है। बताया जाता है कि जो यहां रसोई देता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं। आश्रम में रसोई देने की परंपरा इतनी प्रगाढ़ है कि कई-कई वर्षों तक रसोई देने के लिए इंतजार करना पड़ता है। क्विदंतियों के अनुसार स्वामी नितानन्द जी महाराज अपने गुरु संत गुमानी दास जी महाराज की आज्ञा के अनुसार जटेला की पावन धरा में तप करने आए थे। यहां एक तालाब भी है। जिसके किनारे जाल के पेड़ के नीचे बैठकर स्वामी नितानंद जी महाराज ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। इसके बाद यहीं से अंतरध्यान हो गए।
लोगों के दु:ख हर रहा जटेला धाम
निस्वार्थ भाव से किए गए कार्य निश्चित तौर पर आत्मिक संतुष्टि का अहसास कराते हैं। जटेला धाम समाज व राष्ट्र की सेवा करने में जिले में ही नहीं प्रदेश में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और समाज को सकारात्मक संदेश देने का काम कर रहा है। आश्रम हमेशा से असहाय रोगियों की सेवा में जुटा है और जुटा रहेगा ऐसा संदेश और विश्वास महंत राजेंद्र दास जी जताते हैं। जटेला धाम प्रकृति की गोद में बसा संत भक्ति की विरासत स्थल है। यह स्वामी नितानंद महाराज की तपोस्थली है जो लोगों के दु:ख हरने का काम कर रही है। जनश्रुति के अनुसार यहां जो भी सच्चे मन से अपनी फरियाद लेकर जाता स्वामी जी की दया से उसकी सभी मन्नतें पूर्ण होती हैं।
-जय जटेला धाम, जय स्वामी नितानंद महाराज