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Haryana politic : भूपेंद्र हुड्डा ने एक तीर से साधे निशाने, एसआरबि गुट किया परासत, अभय का सपना तोड़ा, ओबीसी वोट पर भी नजर

Bymayank

Oct 2, 2025

Haryana politic :

  • कुमारी सैलजा व रणदीप सुरजेवाला ने हुड्डा को कांग्रेस में कमजोर करने के लिए अपना हर पैंतरा, फिर भी नहीं बनी बात
  • चौ. बिरेंद्र सिंह व बृजेंद्र बाप-बेटे की हालत अब शोले फिल्म में गब्बर के डाॅयलोक ‘अब तेरा क्या होगा कालिया’ वाली हुई 
  • अभय चौटाला का भी जाट वोट बैंक को फिर से पाने का सपना भी रह गया अधूरा, हुड्डा को कमजोर करने के लिए प्रदेशाध्यक्ष बनने पर अभय चौटाला ने राव नरेंद्र पर फोड़ा था सीएलयू बम
  • दो दशक से हरियाणा कांग्रेस पर मजबूत पकड़ बनाए हुए हैं भूपेंद्र सिंह हुड्डा

Haryana politic । हरियाणा में एक कहावत है सौ सुनार की और एक लुहार की। विधानसभा चुनाव के बाद भूपेंद्र हुड्डा को कांग्रेस में कमजोर करने के लिए एसआरवी ने शाम, दाम दंड व भेद हर प्रकार का तरीका अपनाया। विशेष रणनीति के तहत सैलजा व रणदीप सार्वजनिक मंचों पर खुद तो भूपेंद्र हुड्डा के खिलाफ खुद चुप रहकर अपने समर्थक नेताओं से खुलकर हमला करवाया। जिनमें सबसे बड़े नाम चौ. वीरेंद्र सिंह, शमशेर गोगी, संपत्त सिंह, कुलदीप शर्मा जैसे नेताओं का नाम भी शामिल है। अपने पर सैलजा समर्थक नेताओं के हमले पर भूपेंद्र हुड्डा खुद का नाम नेता प्रतिपक्ष व अपने साथी रहे राव नरेंद्र को प्रदेशाध्यक्ष बनवाकर ऐसा जख्म दिया। जिसे कुमारी सैलजा-रणदीप सुरजेवाला व उनसे जुड़े नेताओं से कभी नहीं भूला पाएंगे। तभी तो कहते है सौ सुनार की और एक लुहार की। बड़े-बड़े सपने देखकर कांग्रेस में आए बाप-बेटे चौ. बिरेंद्र सिंह व बृजेंद्र सिंह पर तो अब शोले फिल्म में गब्बर का यह डॉयलोक फिट बैठता है कि अब तुम्मारा क्या होगा कालिया। नेता प्रतिपक्ष व प्रदेशाध्यक्ष के पद अपने खेमे में लेकर हुड्डा ने एक तीर से तीन निशाने साधे है। पहला एसआरबि गुट को अपनी पॉवर दिखाई। दूसरा हुड्डा के साथ जाने से कमजोर पड़ी इनेलो को फिर से अपने साथ लाने का अभय चौटाला का सपना तोड़ा और तीसरा राव नरेंद्र को आगे कर भाजपा के ओबीसी वोट बैंक को साधने का प्रयास।

देर आए पर दुरूस्त आए

यह दोनों पद अपने खेमे में लाने के लिए भूपेंद्र हुड्डा को करीब एक साल का समय तो लगा, पर कुमारी सैलजा व उनसे जुड़े नेताओं के मंसूबों पर एक बार फिर एक ही वार में पानी फेर दिया। यह अलग बात है भूपेंद्र हुड्डा के कांग्रेस में कमजोर होने से अपने लिए अवसर तलाश रहे अभय चौटाला ने राव नरेंद्र पर सीएलयू बम फोड़कर हुड्डा को फिर से घेरने का प्रयास किया। बावजूद इसके हुड्डा नेता प्रतिपक्ष का पद पाने में सफल रहे। जो कुमारी सैलजा व रणदीप के साथ अभय चौटाला के लिए भी बड़ा झटका है। अभय चौटाला को उम्मीद थी कि कांग्रेस में भूपेंद्र हुड्डा के कमजोर होने से ही देवीलाल व ओमप्रकाश चौटाला का परंपरागत जाट वोट बैंक फिर से इनेलो के साथ जुड़ सकता है। हुड्डा की नेता प्रतिपक्ष पर ताजपोशी के बाद फिलहाल अभय के इस सपने पर पानी फेर दिया है।

2005 में बदली थी हुड्डा की किस्मत

हरियाणा कांग्रेस में भूपेंद्र हुड्डा की मजबूत पकड़ को जानने के लिए हमें फ्लैश बैक में जाना होगा। बिजली बिल माफी को लेकर ओमप्रकाश चौटाला के राज में कंडेला कांड देशभर में सुर्खियां बना था। पुलिस की फायरिंग में कई लोगों की जान गई थी। 2005 के विधानसभा चुनाव से पहले भूपेंद्र हुड्डा ने किसानों के साथ कंडेला से दिल्ली त पैदल यात्रा की। 2005 के चुनाव में भजनलाल के नेतृत्व में जीतने के बाद कांग्रेस ने भजनलाल की अनदेखी कर भूपेंद्र हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाया था। इसके बाद भूपेंद्र हुड्डा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा तथा 10 साल प्रदेश की सत्ता में रहते हुए खुद को न केवल कांग्रेस, बल्कि खुद को एक बड़े जाट नेता के रूप स्थापित किया।

विरोधियों को कभी नहीं होने दिया कामयाब

2014 के चुनाव से पहले अपने लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बने चौ. बिरेंद्र सिंह को पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और भाजपा पहली बार अपने दम पर प्रदेश में सरकार बनाने में सफल हुई। जिसके बाद सैलजा, रणदीप व किरण चौधरी ने भूपेंद्र हुड्डा को कांग्रेस में कमजोर करने के लिए कोई मौका नहीं छोड़ा। हुड्डा पर मनमानी का आरोप लगा किरण 2024 के चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ श्रुति के साथ भाजपा में चली गई और विरेंद्र सिंह ने पहले अपने भाजपा के सांसद बेटे बृजेंद्र को कांग्रेस में भेजा और चुनाव से पहले दिल्ली में अपनी पूर्व विधायक पत्नी प्रेमलता के साथ कांग्रेस में वापसी की। 2024 के चुनाव में जीत का सपना देख रही कांग्रेस को हार मिली तो सैलजा व रणदीप ने बिरेंद्र को अपने खेमे में मिलाकर हुड्डा के खिलाफ अभियान को और तेज कर दिया। जिसके चलते चुनाव हारने के करीब एक साल तक कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष व नेताप्रतिपक्ष की नियुक्ति अटकी रही। इतना सब होने के बाद भी हुड्डा ने हार नहीं मानी तथा खुद को नेता प्रतिपक्ष व प्रदेशाध्यक्ष का पद पर राव नरेंद्र की ताजपोशी के साथ एसआबि गुट के साथ अभय चौटाला को एक ही वार चित कर एक तीर से कई निशाने साधने में सफल रहे।

https://vartahr.com/haryana-politics…argets-obc-votes/ ‎

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