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Gupt Navratri : 6 जुलाई से शुरू होंगे गुप्त नवरात्र और 14 जुलाई तक चलेंगे

Gupt Navratriपंडित कृष्ण गौड़, अंक ज्योतिषी, सोनीपत।

Gupt Navratri

  • -मां दुर्गा से विशेष शक्ति और कृपा प्राप्त करने का यह सही समय
  • -चैत्र व शारदीय नवरात्र की तरह ही मां दुर्गा के स्वरूपों की पूजा का विधान
  • -इन दिनों में शक्ति साधना, तांत्रिक क्रियाएं, मंत्र साधना जैसे कार्य किए जाते हैं

 

Gupt Navratri : आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शुरू होंगे। इस बार गुप्त नवरात्रि 6 जुलाई से शुरू होंगे और नवमी नवरात्रि 14  जुलाई को समाप्त होंगे। सोनीपत के ज्योति शास्त्री और अंक ज्योतिषी पंडित कृष्ण गौड़ ने बताया कि चैत्र और शारदीय नवरात्रि की तरह ही गुप्त नवरात्रि में भी मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। गुप्त नवरात्रि में पूजा का फल जल्दी और दोगुना मिलता है। इन दिनों में मां जल्दी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल देती हैं।

10 महाविद्या की पूजा

प्रत्यक्ष नवरात्रि में देवी के नौ रूप और गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्या की पूजा की जाती है। इस नवरात्रि में विशेषकर शक्ति साधना, तांत्रिक क्रियाएं, मंत्रों को साधने जैसे कार्य किये जाते हैं। इस नवरात्रि में मां दुर्गा के भक्त विशेष नियम के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। मंत्रों, तांत्रिक क्रियाएं और शक्ति साधना से लोग दुर्लभ शक्तियां अर्जित करना चाहते हैं।

मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर आएंगी

 नवरात्रि में आदिशक्ति मां दुर्गा की सवारी का विशेष महत्व होता है। इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 6 जुलाई, शनिवार से शुरू हो रहे हैं। शनिवार के कारण से मां दुर्गा घोड़े पर सवार होकर धरती पर आगमन करेंगी। मां दुर्गा का घोड़े पर आगमन प्राकृतिक आपदा का संकेत देता है।

मां दुर्गा की विशेष पूजा

-गुप्त नवरात्रि में आधी रात को मां दुर्गा की पूजा की जाती हैं।

-मां दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित कर लाल रंग का सिंदूर और चुनरी अर्पित करें।

-मां दुर्गा के चरणों में पूजा सामग्री को अर्पित करें।

-मां दुर्गा को लाल पुष्प चढ़ाना शुभ माना जाता है।

-सनातन धर्म के अनुसार प्रतिदिन सुबह शाम परिवार सहित अपने इष्ट देवी देवता और मां दुर्गा की आरती करने से विशेष आशीर्वाद और घर में सुख शान्ति का वातावरण होता है।

-प्रत्येक प्राणी के जीवन में जीवित और पूर्ण सदगुरु का होना आवश्यक है, जिसके पास आत्म ज्ञान और परमात्मा का अनुभवी ज्ञान हो।

-त्रेतायुग में भगवान राम अपने गुरु वशिष्ठ और गुरु विश्वामित्र के निर्देशन में ही विशेष साधना करते रहे हैं।

-द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण अपने गुरु संदीपनी जी के निर्देशन में ही साधना करते रहे।

-पंडित कृष्ण गौड़, अंक ज्योतिषी, सोनीपत

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