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Election : सोनीपत सीट : इस बार पंजाबियत के लिए आवाज बढ़ा रही हलचलें

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Election

  • 15 सालों से नहीं बनी बात, अबकी बार हो सकता है बेड़ा पार
  • 57 साल में केवल एक बार ऐसा हुआ, जब जीतने वाला और हारने वाला दोनों पंजाबी नहीं थे
  • 2009 से लगातार पंजाबी समुदाय के हाथ से फिसल रही सोनीपत विधानसभा सीट

Election : सोनीपत विधानसभा क्षेत्र में 1967 में विधानसभा बनने के बाद से आज तक कुल 13 बार चुनाव हुए हैं। इसमें से केवल 5 बार ही ऐसा हुआ जब सोनीपत जीतने वाला पंजाबी समुदाय से संबंधित नहीं था। वरना लगातार पंजाबी समुदाय से ही चुनाव जीतते आया है। पिछले 15 सालों से यानि की तीन प्लान से सोनीपत विधानसभा पंजाबी समुदाय के हाथों से बाहर है। हालांकि इस बार दबी आवाज में पंजाबी चेहरे के जीतने की चर्चाएं क्षेत्र में हलचलें बढ़ा रही हैं। राजनीतिक दल भी इस पर मंथन कर रहे हैं। 8 बार सोनीपत की कमान पंजाबियों के हाथ में रही है। इन्हीं आंकड़ों पर गौर करते हुए शहर के पंजाबी नेता भी पार्टी नहीं बल्कि पंजाबियत की वकालत करते दिख रहे हैं। बता दें कि 2009 के बाद से अब तक हुए तीन चुनावों में से एक बार भी किसी पंजाबी चेहरे ने जीत दर्ज नहीं की है। दूसरे शब्दों में 15 सालों से पंजाबी सीट माने जाने वाली सोनीपत से पंजाबियों का प्रतिनिधित्व समाप्त सा हो गया है।

आखिरी बार जीते ठक्कर

-आखिरी बार 2005 में पंजाबी समुदाय से आने वाले अनिल ठक्कर विधायक बने थे।
-फिर दो बार विधायक बनने वाली कविता जैन वैश्य समाज से संबंधित रही।
-2019 में चुनाव जीतकर विधायक बने सुरेंद्र पंवार मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं।
-1967 में जीतने वाले मोहन लाल पंजाबी, 1968 में विजेता रहे मुखत्यार सिंह जाट, 1972 के विजेता चिरंजी लाल ब्राह्मण समुदाय से संबंधित रहे हैं।
-13 बार के चुनावों में केवल 5 बार सोनीपत को गैर पंजाबी विधायक मिला।

क्या बोलता है मतदाताओं का आंकड़ा

सोनीपत विधानसभा में 2 अगस्त तक की मतदाता सूची के अनुसार कुल मतदाताओं की संख्या 2,46,394 हैं। इनमें पहले स्थान पर 30 प्रतिशत के साथ पंजाबी। 10 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर जाट समुदाय, तीसरे नंबर पर 9 प्रतिशत मतदाताओं के साथ महाजन समुदाय का नाम आता है। इसके बाद ब्राह्मण, चमार, धानक, सैनी, मुस्लिम समुदाय का नंबर आता है। सोनीपत विधानसभा में सबसे कम आबादी रोड समुदाय की है।

57 सालों का इतिहास

सोनीपत विधानसभा के 57 सालों के इतिहास में सिर्फ 2019 के चुनावों को छोड़कर सोनीपत का ऐसा कोई चुनाव नहीं गुजरा, जिसमें पंजाबी चेहरा विजेता या दूसरे नंबर पर ना रहा हो। जीतने वालों में मुख्तयार सिंह (1968), देवीदास (1977, 1982, 1987), शामदास (1991), देवराज दिवान (1996, 2000), अनिल ठक्कर (2005) के नाम आते हैं। वहीं जिन पांच चुनावों में गैर पंजाबी ने जीत दर्ज की थी, उनमें से चार में उपविजेताओं पंजाबी ही रहे थे। जिनमें मुखत्यार सिंह (1967), वासदेव (1972), अनिल ठक्कर (2009), देवराज दिवान (2014) शामिल हैं। वहीं 2019 के चुनाव में विजेता सुरेंद्र पंवार और दूसरे नंबर पर रहने वाली कविता जैन दोनों ही पंजाबी समुदाय से संबंधित नहीं हैं।

ये बने रिकॉर्ड

सोनीपत विधानसभा के लिए 13 बार चुनाव हुए हैं, जिनमें 9 चेहरे विधानसभा पहुंचे हैं। इसमें से पांच बार कांग्रेस तो चार बार भाजपा ने विजयी पताका फहराई है। वहीं आजाद उम्मीदवार ने दो बार, एक-एक बार जनसंघ व जनता पार्टी के उम्मीदवार सोनीपत जीत चुके हैं। 1967 में कांग्रेस उम्मीदवार मोहन लाल सिर्फ 895 मतों के साथ जीत दर्ज कर सोनीपत के इतिहास में सबसे कम मतों से जीत दर्ज करने वाले विधायक बने थे। वहीं सबसे अधिक मतों से जीत का रिकॉर्ड 1996 में आजाद उम्मीदवार देवराज दीवान ने बनाया था। दीवान ने 37 हजार 140 मतों से जीत दर्ज की थी। देवीदास लगातार तीन बार विधायक बने हैं। वहीं देवराज दीवान व कविता जैन लगातार दो बार विधायक बने हैं। मोहन लाल, मुखत्यार सिंह, चिरंजीलाल, शामदास, अनिल ठक्कर को एक-एक बार विजय हासिल हुई है।

ये हो सकते हैं टिकट के दावेदार

भाजपा और कांग्रेस के दो मुख्य दावेदार ऐसे हैं, जोकि गैर पंजाबी हैं। इसमें पूर्व मंत्री कविता जैन भाजपा से तो मौजूदा विधायक सुरेंद्र पंवार कांग्रेस से टिकट के प्रबल दावेदारों में से एक हैं। हालांकि सुरेंद्र पंवार ईडी के एक केस में फिलहाल जेल में हैं, लेकिन कानून उन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत देता है।
-जजपा और इनेलो की बात करें तो सोनीपत विधानसभा में अभी तक इन दोनों ही पार्टियों से कोई चेहरा मैदान में दिखाई नहीं दे रहा।
-पंजाबी नेताओं में कांग्रेस में मुख्य रूप से देवराज दिवान के पुत्र कमल दिवान और भाजपा में मेयर निखिल मदान, वरिष्ठ नेता ललित बतरा, योगेशपाल अरोड़ा और पूर्व विधायक देवीदास के पौत्र तरुण देवीदास भी टिकट के लिये दौड़भाग कर रहे हैं।

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