Dhanterash
- करीब 300 साल पुराना महालक्ष्मी जी का मंदिर
- दीप पर्व पर 5 दिन नोटों-आभूषणों से सजा रहेगा, भक्तों ने तिजोरियां भी लाकर रख
- मंदिर में अर्पित नकदी-आभूषण को दीपोत्सव के पांच दिन के बाद समिति प्रसादी के रूप में भक्तों को लौटाएगी
रतलाम। रतलाम में मां महालक्ष्मी का मंदिर सज चुका है। सजावट फूलों से नहीं, हीरे, जवाहरात और नोटों से हुई है। मंदिर की हर लड़ में नोट लगे हैं। किसी में 10 तो किसी में 500 रुपए नजर आ रहे हैं। इस अद्भुत सज्जा के लिए भक्तों ने अपनी तिजोरी खोल दी हैं। मंदिर में अर्पित नकदी-आभूषण को दीपोत्सव के पांच दिन के बाद समिति प्रसादी के रूप में भक्तों को लौटाएगी। मंदिर की सजाने की सालों पुरानी परंपरा के तहत इस साल 2 करोड़ रुपए से मंदिर को सजाया गया है। आज तक यहां से एक रुपया इधर से उधर नहीं हुआ है। धन राशि देने वालों में रतलाम के अलावा प्रदेश समेत अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। दीपोत्सव के पहले दिन यानी आज धनतेरस से मंदिर की सजावट को भक्त निहार सकते हैं। संभवत: यह देश का पहला ऐसा मंदिर है, जो पांच दिनों तक भक्तों द्वारा अर्पित आभूषण और नोटों से सजा रहता है। मंदिर में पूजा कराने वाले अश्विनी पुजारी बताते हैं कि करीब 300 साल पुराना महालक्ष्मी जी का यह मंदिर रियासतकालीन है। रतलाम के महाराजा रतन सिंह राठौर ने जब रतलाम शहर बसाया, तब से यहां दीपावली धूमधाम से मनाई जाने लगी।
बाकायदा होती है ऑनलाइन एंट्री
राजा वैभव, निरोगी काया और प्रजा की खुशहाली के लिए पांच दिन तक अपनी संपदा मंदिर में रखकर आराधना कराते थे। इसके लिए महाराजा शाही खजाने के सोने-चांदी के आभूषण मां लक्ष्मी जी के श्रृंगार के लिए चढ़ाते थे, तभी से ये परंपरा चली आ रही है। धीरे-धीरे व्यवस्था बदलती गई और भक्त मंदिर के लिए चढ़ावा लेकर आने लगे। अभी यह मंदिर सरकारी होकर कोर्ट ऑफ वार्डस में आता है। प्रशासन भी सजावट को लेकर पूरी निगरानी रखता है। ऑनलाइन एंट्री में नकदी व आभूषण देने वाले भक्तों का नाम, पता, पासपोर्ट फोटो और मोबाइल नंबर के साथ क्या धन राशि या आभूषण दी, उसकी डिटेल लिखी गई।