Deepwali
- दीपावली पर सदियों पुरानी है मिट्टी के दीये पूजने और सजाने की परंपरा
- महंगाई और घटते रुझान के चलते दीयों का चलन कम हो गया
Deepwali : बहादुरगढ़। रोशनी और सौभाग्य के महापर्व दीपावली के मौके पर दीयों का अलग ही महत्व है। हालांकि अब महंगाई और घटते रुझान के चलते दीयों का चलन कम हो गया है। बावजूद इसके पिछले कई दिनों से कुम्हार दीये बनाने में जुटे हैं। बाजारों के साथ ही गली-मोहल्लों में फेरी लगा कर दीयों को बेचने के लिए आवाजें लगने लगी हैं। सदियों से हिंदू समाज में प्रकाश के पर्व दीपावली पर मिट्टी के दीये पूजने और सजाने की परंपरा रही है। लेकिन कुछ सालों से त्योहारों पर छाई आधुनिकता ने मिट्टी के दीयों की बिक्री को कम कर दिया है। महंगाई समेत तमाम कारणों के चलते दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाना रस्म बनकर रह गया है। एक समय था जब घरों की छतों व दरवाजों पर दीपावली के दिन शाम होते ही दीयों की कतारें जगमगाने लगती थीं। लेकिन महंगाई के चलते अब दीयों की जगह मोमबत्ती और बिजली की झालरों ने ले ली है।
मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक
पंडित महेंद्र शर्मा का कहना है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को भाग्य का देवता कहा जाता है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा आती है। रोशनी को सुख, समृद्धि, स्फूर्ति का प्रतीक माना जाता है। दीपक जलाने से मनुष्य के सौभाग्य में वृद्धि होती है। श्याम प्रजापत के अनुसार कुछ वर्षों से भारतीय बाजारों में चाइनीज झालरों, रंगीन मोमबत्तियों और टिमटिमाते बिजली के दीयों की खपत बढ़ी है। कुम्हारों के काम को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने भी ठोस कदम नहीं उठाए।
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