America
- अमेरिका में राष्ट्रपति चाहे कमला बने या ट्रंप, भारत पर कोई खास असर नहीं
- अमेरिका में जारी मतदान बाद नए राष्ट्रपति के ऐलान से ठीक पहले विदेश और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ बोले
America : नई दिल्ली। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दो मुख्य उम्मीदवारों डेमोक्रेटिक कमला हैरिस और रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप के राजनीतिक भाग्य के फैसले के लिए मतदान की शुरुआत हो चुकी है। अब नए राष्ट्रपति का नाम सामने आने में करीब 48 घंटे का समय ही शेष बचा है। इन सबके बीच भारत के सामरिक और कूटनीतिक गलियारों में कुछ जरूरी सवालों के साथ यह चर्चा चल पड़ी है कि दोनों में से किसी एक के जीतने पर भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या इससे भारत का व्यापार-अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी? क्या अमेरिका का भारत को देखने का नजरिया बदल जाएगा? क्या व्यापक रक्षा भागीदारी व कूटनीतिक संबंध प्रभावित होंगे? इन सभी सवालों के जवाब में विदेश और रक्षा मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में राष्ट्रपति चाहे किसी भी पार्टी का बने। लेकिन उससे दोनों देशों के रिश्तों पर कोई बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। समय-समय पर हालांकि कुछ चीजें जरूर आएंगी। लेकिन उनका निदान निकाल लिया जाएगा।
कमला हो या ट्रंप, संबंध लगातार बढ़ेंगे
अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत रहे अशोक सज्जनहार ने बताया कि अमेरिका में चाहे कमला हैरिस राष्ट्रपति बनें या डोनाल्ड ट्रंप। भारत के साथ यूएसए के संबंध लगातार आगे बढ़ते रहेंगे। इसके पीछे दोनों देशों में बनी हुई ‘स्ट्रक्चरल कनर्वजेंस’ सबसे बड़ी वजह है। लगभग ढाई दशक के कालखंड से मैं इसे समझाता हुआ कहता हूं कि जब वर्ष 2000 के मध्य में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन थे। वो डेमोक्रेट थे और तब अमेरिका की नीति भारत के लिए नहीं बदली। इसके अगले आठ साल डेमोक्रेट जॉर्ज बुश राष्ट्रपति बने, फिर आठ साल डेमोक्रेट ओबामा ने अमेरिका की कमान संभाली। इसके बाद रिपब्लिकन ट्रंप आए और अब डेमोक्रेट बाइडन राष्ट्रपति हैं। लेकिन इस लंबी समयावधि में भारत पर कोई खास असर देखने को नहीं मिला है। बल्कि हमारा हिंद-प्रशांत सहयोग, रक्षा, सुरक्षा, निवेश, एआई, सेमीकंडक्टर, तकनीक हस्तांतरण को लेकर संबंध और अधिक तेजी से आगे बढ़ते हुए और गहरे होते जा रहे हैं।
पार्टी के मुताबिक बनते नेरेटिव
अशोक सज्जनहार ने कहा, कमला डेमोक्रेटिक के साथ-साथ वामपंथी जुड़ाव वाली विकासवादी सोच की नेता हैं। अगर वो चुनाव जीतती हैं तो इन तथ्यों का उन पर प्रभाव रहेगा। उदाहरण के तौर पर मानवाधिकार उल्लंघन, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के नाम पर भारत पर दबाव बनाया जाएगा। ये एक प्रकार से नेरेटिव बनाने जैसा है। इसी तरह से अगर रिपब्लिकन ट्रंप अमेरिका की कमान संभालते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि उनका मुख्य ध्यान व्यापार और अर्थव्यवस्था पर रहेगा। भारत को दिए जाने वाले ट्रेड टैरिफ का मुद्दा गरमा सकता है। लेकिन यह ऐसे मसले नहीं जिन्हें भारत संभाल न सके।
आज बड़ी-बड़ी बातें नहीं कर सकता अमेरिका
रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (इडसा) में फेलो डॉ.स्वस्ति राव ने बताया कि अगर कमला आएंगी तो निश्चित ही भविष्य में बाइडन प्रशासन की नीतियों को ही वो भारत के साथ आगे बढ़ाएंगी। लेकिन ट्रंप राष्ट्रपति बनें तो वो रिपब्लिकन विचारधारा के कंजर्वेटिव नेता हैं और उनका विचार अमेरिका को फिर से महान बनाने का है। चुनाव अभियान में दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ जमकर बयानबाजी की व आरोप-प्रत्यारोप लगाए। लेकिन चुनाव जीतने, पद पर बैठने के बाद किसी भी नेता के पास उस तरह का फ्री हैंड नहीं होता है जैसा कि चुनावी भाषणों या परिचर्चा में देखने को मिलता है। मैं साफ करना चाहती हूं कि आज के अमेरिका के पास पहले जैसी बड़ी, बड़ी बातें करने की हिम्मत नहीं है। आज का विश्व आपस में जुड़ा हुआ है। इसमें अगर अमेरिका को चीन के खिलाफ कुछ करना है तो उसे अपने भागीदारों में शामिल भारत की बहुत अधिक जरूरत पड़ेगी।
साझा हितों से चलती वैश्विक राजनीति
डॉ.राव ने कहा, अंतरराष्ट्रीय राजनीति साझा हितों से चलती है। वहां विश्वास और भरोसेमंद दोस्ती नाम की कोई चीज नहीं होती है। लेकिन साझा हितों का लेंस साझा वास्तविकता पर आधारित होना चाहिए। यूएस के साथ हमारे कई मुद्दे हैं। लेकिन उन्हें हम निपटा लेंगे। अमेरिका से रक्षा उत्पादों की सप्लाई में देरी के पीछे दुनिया भर में चल रहा युद्ध है। जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय औद्योगिक कॉम्प्लेक्स पर दबाव पड़ रहा है। वर्तमान में अमेरिका की सबसे बड़ी चुनौती चीन है और चीन को लेकर भारत का साथ बेहद जरूरी है। इसलिए अमेरिका बार-बार नियमों वाली बहुध्रुवीय व्यवस्था को बनाए रखने पर जोर दे रहा है। जबकि चीन दुनिया के संदर्भ में तो बहुध्रुवीयता के पक्ष में है, लेकिन एशिया को यूनिपोलर ऑर्डर के साथ लीड करना चाहता है।
अब स्वतंत्र विदेश नीति की बढ़ती मांग
विदेश मामलों के विशेषज्ञ कमर आगा ने कहा कि पहले अकेला अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश था। लेकिन आज बहुत से विकासशील देश तेजी से तरक्की कर रहे हैं। इनकी मांग बहुध्रुवीय दुनिया की है। मैं कहूंगा कि अमेरिका का पराभाव तो नहीं हुआ है, लेकिन इन देशों का उभार बहुत तेजी से हुआ है। जिसके चलते अमेरिका का प्रभाव घटता नजर आ रहा है। बहुत से देश स्वतंत्र विदेश नीति की ओर बढ़ रहे हैं। इसमें सऊदी अरब, ब्रिक्स देश शामिल हैं। इस वैश्विक परिदृश्य में अमेरिका में राष्ट्रपति कोई भी बने भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा।
https://vartahr.com/us-to-vote-for-p…on-on-november-5/