Whater
- -एनआईटी राउरकेला के शोधकर्ताओं का महत्वपूर्ण अनुसंधान
- -जिससे होगी मनुष्यों, जलीय जीवों और पक्षियों की स्वास्थ्य सुरक्षा
- -ट्रीटमेंट पर करीब 2.6 रुपये प्रति लीटर का खर्च है जो और कम होगा
Whater : नई दिल्ली। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला के शोधकर्ताओं ने अपशिष्ट जल में फार्मास्यूटिकल के प्रदूषक तत्वों की रोकथाम की एक अनोखी प्रक्रिया विकसित की है। जिससे मनुष्यों से लेकर मछली, सीप जैसे जलीय जीवों और पक्षियों की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। यह प्रक्रिया दो चरणों वाली है, जिसमें प्रदूषक तत्वों की रोकथाम के लिए बायोचार एडजार्प्शन और बायोडिग्रेडेशन को आपस में जोड़ा गया है। जिससे एंटीबायोटिक, गैर-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (एनएसआईडी) जैसे फार्मास्युटिकल कंपाउंड और सिंथेटिक रंगों के प्रदूषक तत्वों से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का समाधान हो सकेगा। एनआईटी राउरकेला ने गुरुवार को बताया कि संस्थान की जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर.अंगना सरकार के मार्गदर्शन में यह शोध किया गया है। जिसे विज्ञान-इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड और कैडिला फार्मास्युटिकल लिमिटेड (अहमदाबाद) द्वारा वित्तीय मदद के अलावा अन्य जरूरी सहायता प्रदान की गई।
यूं काम करती है यह प्रक्रिया
प्रक्रिया के पहले चरण में भुने हुए कोको पीट और चावल के भूसे से लिए गए बायोचार एडजॉर्बेंट का उपयोग कर एंटीबायोटिक्स को पकड़ा जाता है। जिससे एंटीबायोटिक प्रदूषण काफी कम हो जाता है। दूसरे चरण में क्लेबसिएला और स्यूडोमोनास स्ट्रेन के साथ ही एक विशेष बैक्टीरिया समूह का उपयोग करते हुए डिक्लोफेनाक, पेरासिटामोल जैसी दवाओं के कंपाउंड और सिंथेटिक रंगों के अवशिष्ट खंडित किए जाते हैं। इसमें प्रदूषक तत्वों (एंटीबायोटिक्स) का पानी से लगभग पूरी तरह से यानी 99.5 फीसदी निष्कासन हो जाता है।
जैविक पद्धतियों का किया प्रयोग
प्रोफेसर.अंगना सरकार ने इस अनुसंधान का महत्व बताते हुए कहा, हमारी नवीन एकीकृत प्रक्रिया एंटीबायोटिक्स, एनएसआईडी और रंगों सहित विभिन्न फार्मास्युटिकल प्रदूषक तत्वों को बाहर निकालने में सफल रही है। ये पूरी तरह से सुरक्षित है। क्योंकि इसमें जैविक पद्धतियों का उपयोग किया गया है। इसमें बायोडिग्रेडिंग बैक्टीरिया सुरक्षित रहते हैं, विषैले बायप्रोडक्ट कम होते हैं व फार्मास्यूटिकल के प्रदूषक तत्वों के पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में इस ट्रीटमेंट पर करीब 2.6 रुपये प्रति लीटर का खर्च है जो और कम होगा। लेकिन इसके लिए प्रक्रिया का अनुकूलन करना होगा जिसे ट्रीटमेंट की वर्तमान व्यवस्था में तृतीय चरण के रूप में एकीकृत करना होगा।
प्रदूषित जल के दुष्प्रभाव
संस्थान के मुताबिक, अपशिष्ट जल की वजह से एक ओर भारतीय उपमहाद्वीप में मछली की मृत्यु दर और बाज, गिद्धों की आबादी में गिरावट जैसे मामले सामने आए हैं। वहीं, दूसरी ओर इससे मनुष्यों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे किडनी, लीवर, उच्च रक्तचाप और विकास संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। उक्त जल में एंटीबायोटिक की मौजूदगी तो विशेष रूप से चिंताजनक है। मौजूदा दौर में अपशिष्ट जल उपचार की जो विधियां मौजूद हैं। वो इन प्रदूषकों की रोकथाम करने में नाकाम दिखाई पड़ती हैं। इसलिए यह प्रदूषक तत्व नदियों, झीलों और भूजल में अपनी पैठ बना चुके हैं।