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supreme court जेल में बंद लाखों बंदियों को मिलेगी राहत

कैदियों को मिलेगी राहतकैदियों को मिलेगी राहत

supreme court

  • सजा का एक-तिहाई वक्त हिरासत में काट चुके कैदियों को मिलेगी जमानत
  • केंद्र ने कहा-एक जुलाई से पूर्व दर्ज अपराधों पर बीएनएस की धारा 479 लागू
  • नई धारा ने पुरानी धारा का लिया स्थान जो इसी साल से हुई है देयाभर में लागू

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएस) की धारा 479 को 1 जुलाई से पहले दर्ज किए गए सभी विचाराधीन मामलों में लागू किया जाएगा। जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की बेंच ने देशभर के जेल अधीक्षकों से कहा-वे धारा 479 में दी गई हिरासत की अवधि का एक तिहाई समय पूरा कर चुके कैदियों के आवेदनों पर कार्रवाई करें। इसे 3 महीने के अंदर निपटाएं।

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट

supreme court नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट देश की जेलों में भीड़भाड़ से निपटने के लिए अक्टूबर 2021 से नजर बनाए हुए है। इस मामले पर खुद ही संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ के समक्ष पेश हुए थे। केंद्र की ओर से पीठ को बताया कि बीएनएसएस की धारा 479, जिसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436ए का स्थान लिया है, सभी विचाराधीन कैदियों पर लागू होगी, भले ही अपराध एक जुलाई, 2024 से पहले दर्ज किया गया हो। ये कानून 1 जुलाई से प्रभावी हुए थे, जिन्होंने क्रमशः ब्रिटिश कालीन दंड प्रक्रिया संहिता, भारतीय दंड संहिता और ‘इंडियन एविडेंस एक्ट’ का स्थान लिया।

जेलों में आधे कैदी गैर संगीन अपराध के

गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि देश की जेलों में साढ़े पांच लाख कैदी हैं। कैदियों की कुल संख्या में करीब आधे गैर संगीन अपराधों के कैदी हैं। गैर संगीन अपराध के अंडर ट्रायल वालों की संख्या 2 लाख है। इनमें ज्यादातर तो अधिकतम सजा से ज्यादा समय से जेल में बंद हैं।

1 जुलाई से लागू हुए 3 नए कानून

देश में अंग्रेजों के जमाने से चल रहे कानूनों की जगह 3 नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1 जुलाई से लागू हो गए हैं। इन्हें आईपीसी (1860), सीआरपीसी (1973) और एविडेंस एक्ट (1872) की जगह लाया गया है।

जेल अधीक्षकों को दिया निर्देश

शीर्ष अदालत ने इस अभिवेदन पर गौर किया और देश भर के जेल अधीक्षकों को निर्देश दिया कि वे प्रावधान की उपधारा में उल्लिखित अवधि का एक तिहाई पूरा होने पर संबंधित अदालतों के माध्यम से विचाराधीन कैदियों के आवेदनों पर कार्रवाई करें। न्यायालय ने कहा कि कदम यथाशीघ्र, संभवत: तीन महीने के भीतर उठाए जाने चाहिए।

ओपन जेल का सुझाव दिया था

इसी मामले को लेकर 9 मई को कोर्ट ने कहा था कि ओपन या सेमी ओपन जेल कैदियों को दिनभर जेल परिसर से बाहर काम करने और शाम वापस जेल में लौटने का ऑप्शन देती है। ओपन जेल कैदियों को समाज में घुलने-मिलने और उनके साइकोलॉजिकल प्रेशर को कम करने में भी मदद करेगी। साथ ही कैदियों की आजीविका में भी सुधार करेगा।

जेल में बढ़ रही भीड़ से मिलेगी मुक्ति

मामले में न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने इससे पहले पीठ से कहा था कि विचाराधीन कैदियों को हिरासत में रखने की अधिकतम अवधि से संबंधित धारा 479 को जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए। धारा 479 में प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति, किसी विशेष कानून के तहत किसी अपराध के लिए तय सजा का एक तिहाई वक्त हिरासत में रह चुका है, तो उसे कोर्ट जमानत पर रिहा करे। उन्होंने कहा कि था कि इससे जेलों में भीड़ कम करने में मदद मिलेगी। शीर्ष अदालत अक्टूबर 2021 से जेलों में भीड़भाड़ के मुद्दे पर सक्रिय रूप से निगरानी कर रही है, जब उसने इस समस्या का स्वतः संज्ञान लिया था।

ई-प्रिजन मॉड्यूल की जरूरत पर जोर

मामले में न्यायमित्र के तौर पर काम कर रहे सीनियर वकील विजय हंसारिया ने कैदियों में लॉ अवेयरनेस की कमी का हवाला देते हुए कहा कि दोषियों को बताया नहीं जाता कि वे कानूनी सेवा प्राधिकरण के जरिए अपीलीय अदालतों में जाकर अपने मामले से जुड़ी कमियों को दूर करवा सकते हैं और सजा से बच सकते है। हंसरिया के तर्क पर कोर्ट ने देश में यूनिफॉर्म ई- प्रिजन मॉड्यूल की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि ई प्रिजन मॉड्यूल इस तरह की समस्याओं को आसानी से निपटाया जा सकता है।

https://vartahr.com/supreme-court-la…-will-get-relief/

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