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SGTU : युवा मन की भावनात्मक आवश्यकताओं से न हो खिलवाड़

SGTU

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्य बल पर संगोष्ठी आयोजित
  • स्वस्थ वातावरण तैयार करें, तुलना को तलवार न बनाएं

 

गुरुग्राम। एसजीटी इंटरैक्ट सेंटर ने व्यावहारिक विज्ञान संकाय, विधि संकाय और फैकल्टी ऑफ एप्लाइड एंड बेसिक साइंस के सहयोग से अपनी पहली अंतरविषयक संगोष्ठी “संकट से देखभाल तक: राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्य बल क्यों महत्वपूर्ण है? – भारत के सर्वोच्च न्यायालय का एक ऐतिहासिक निर्णय” आयोजित की। इस संगोष्ठी का आयोजन प्रो. (डॉ.) आभा सिंह, प्रो वाइस चांसलर और प्रो. (डॉ.) रेणु मालवीय, डीन –एफबीएससी के प्रभावशाली नेतृत्व में किया गया। मनोविज्ञान, मनोरोग, फोरेंसिक और विधि के विशेषज्ञों ने चर्चा को समृद्ध किया और छात्रों की भलाई और मानसिक लचीलापन बढ़ाने में शैक्षणिक संस्थानों की सामूहिक जिम्मेदारी पर जोर दिया।


विशिष्ट वक्ताओं में ये शामिल
डॉ. रोमा कुमार, वरिष्ठ सलाहकार मनोवैज्ञानिक, गंगा राम अस्पताल

बचपन से ही लचीलापन विकसित करना आवश्यक है ताकि बच्चे संघर्षों और चुनौतियों का सामना मजबूती से कर सकें। आज के डिजिटल युग में ऑनलाइन सामग्री का सावधानी और बुद्धिमानी से उपयोग करना जरूरी है। निरंतर न्याय के डर पर काबू पाना आत्मविश्वास और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए अहम है।

डॉ. विपुल रस्तोगी, क्लिनिकल रीजनल हेड, सुकून हेल्थ

तुलना खुशी की दुश्मन है, फिर भी बच्चों से अक्सर अपेक्षाएं होती हैं कि वे एक निश्चित ढंग से प्रदर्शन करें। सामाजिक स्वीकृति का दबाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है। निरंतर मूल्यांकन बच्चों की व्यक्तिगतता को कमज़ोर करता है, इसलिए आत्म-मूल्य को तुलना से ऊपर रखना आवश्यक है।

डॉ. रंजीत सिंह, संस्थापक एवं सीईओ, एसआईएफएस इंडिया, साइबर फोरेंसिक विशेषज्ञ

आज के बच्चे कम उम्र से ही अकादमिक, सामाजिक और डिजिटल रूप से तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करते हैं। उनके जिज्ञासु मन अक्सर इस दबाव में सही दिशा तलाशते हैं। सहानुभूति, संतुलित सीमाएं और रचनात्मक खोज के अवसर प्रदान करना उनके मार्गदर्शन के लिए महत्वपूर्ण है।

एडवोकेट अनुभुवनचंद्रन, एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड, सर्वोच्च न्यायालय

अब समय आ गया है कि हम घर, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और प्रशिक्षण केंद्रों में युवा मनों (बच्चों, छात्रों) की भावनात्मक आवश्यकताओं के प्रति जागरूक हों और स्वस्थ वातावरण तैयार करें।
यह संगोष्ठी एक ऐतिहासिक क्षण पर आयोजित हुई। 24 मार्च 2025 को, सुकदेव साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य चिंता पर तुरंत कार्रवाई करने की आवश्यकता पर जोर दिया। न्यायालय ने न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) एस रविंद्र भट की अध्यक्षता में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्य बल का गठन किया, जिसका उद्देश्य रोकथाम उपाय सुझाना, समर्थन प्रणाली मजबूत करना और समावेशी व लचीले कैंपस वातावरण को बढ़ावा देना है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालयों में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए सहयोगात्मक ढांचे के महत्व को रेखांकित किया गया, जो सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के अनुरूप है।

संगोष्ठी का उद्देश्य

-राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्य बल के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाना।
-विश्वविद्यालय में एक स्वस्थ, सहायक और प्रोत्साहित वातावरण को बढ़ावा देना।
-विशेषज्ञों के साथ संवाद का अवसर प्रदान करना, ताकि रोकथाम और छात्र कल्याण की रणनीतियों पर चर्चा हो सके।
कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

प्रो. (डॉ.) आभा सिंह, प्रो वाइस चांसलर, एसजीटी यूनिवर्सिटी ने सभी युवा मनों के लिए उर्दू के महान कवि अकबर इलाहाबादी का संदेश साझा किया: हम हैं तो खुदा भी है—ईश्वर हमारे होने से मौजूद हैं।

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