Sansad
- -इधर सदन में मामला उठा, उधर काम हो गया
- -पक्ष, विपक्ष और सभापति के बीच राज्यसभा में हुई तीखी बहस
Sansad : नई दिल्ली। राज्यसभा में एक बार फिर पक्ष, विपक्ष और आसंदी के बीच ठन गई। मामला था संविधान की मूल प्रति से 22 कृतियों को हटाया जाना। सभापति की अनुमति से भाजपा के राधामोहन अग्रवाल ने मामला उच्सदन में उठाया। उन्होंने कहा कि संविधान की जो प्रति बाजार पर नेट पर या अन्य जगहों पर उपलब्ध है, जो संविधान की प्रति विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की जा रही हैं उनमें वो 22 कृतियां शामिल नहीं जो संविधान सभा द्वारा अनुशंसित और हस्ताक्षरित थी। उन्होंने आरोप लगाय कि बिना संसद से पारित कराये संविधान में पूर्ववर्ती सरकार ने संशोधन कर दिये जो सर्वथा गैर संवैधानिक है। राधामोहन अग्रवाल ने कहा कि 26 जनवरी 1949 को संविधान सभा द्वारा नंदलाल बोस को जो संविधान लागू करने को थमाया गया था उसके 22 अध्यायों में देश की हजारों साल की सभ्यता का दर्शन था। जिनमें सिंधु घाटी सभ्यता, मोहन जोदडो, बादशाह अकबर, शिवा जी राव, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी, भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने के समय की चित्र, श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र में अर्जुन को युद्ध मंत्र देते हुए चित्र, भगवान बुद्ध, महावीर जैसे कई महापुरुषों और इतिहास की कृतियां थीं, लेकिन आज जो संविधान विभिन्न जगहों पर उपलबध है उनमें ऐसे कोई कृति दिखायी नहीं देती। इसे अविलंब सुधार की मांग केंद्र सरकार से करता हूं।
मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा
इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज करते हुए विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा कि ये बाबा साहेब का अपमान करने की कोशिश है। जो संविधान उन्होंने दिया उसमें संशोधन की मांग करना ठीक नहीं। उनके इस बात पर सदन में हंगामा मच गया। सभापति जगदीप धनखड जैसे पूरी तैयारी से आंसदी पर थे। उन्होंने तमाम धारायें और संसदीय नियमों की दुहाई देते हुए कहा कि संविधान में किसी तरह का संशोधन करने का अधिकार केवल संसद को है। जूडिशरी को भी संविधान संशोधन में दखल देने का अधिकार नहीं। ऐसे में वो कृतियां जिनका पांच हजार साल पुराना इतिहास है, संविधान की मूल प्रति में शामिल थी, उन्हें शामिल होना ही चाहिए। उन्होंने आसंदी से सदन के नेता जगतप्रकाश नड्डा को निर्देश दिया कि संविधान का मूल स्वरूप वापिस लाया जाए। जो भी प्रकाशक मूल स्वरूप से इतर संविधान की प्रति छापेगा उस पर कानूनी कार्रवाई की जाए। सभापति पर आरोप लगते रहे कि उन्होंने विपक्ष के नेता को बोलने नहीं दिया। सभापति ने कहा कि इस विषय पर राजनीति नहीं करने दी जाएगी।
नड्डा का धन्यवाद
थोडी ही देर बाद राधामोहन अग्रवाल पुन: अपनी सीट से उठे, सदन के नेता जगतप्रकाश नड्डा का धन्यवाद देते हुए कहा, सभापति जी मैं नड्डा जी का धन्यवाद देना चाहता हूं। सदन में मामला उठने के बाद ऑनलाइन संविधान की मूल प्रति, मूल स्वरूप में उपल्बध हो गई है। इस पर सभापति मंद मंद मुस्काये, बोला, कमाल हो गया, करे कोई…। उनका आशय ये था कि आसंदी से दिये गये उनके निर्देश का पालन हुआ तो धन्यवाद तो उनको मिलना चाहिए! भारी हंगामें के बीच उठे इस विषय का अंत हल्केफुल्के अंदाज में कुछ इस तरह हुआ।