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Organic Farming : ऑर्गेनिक खेती से मालामाल हो रहे फतेहाबाद के दो किसान भाई

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Organic Farming

  • रेतीली जमीन पर कर रहे ऑर्गेनिक फ्रूट ककड़ी और मतीरी की खेती
  • कम लागत में प्राकृतिक फूट की खेती दे रही बढ़िया मुनाफा
  • कम खर्च में पैदा हो रही उन्नत और बढ़िया फसल
  • लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक

Organic Farming वहीं लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है, क्योंकि इस खेती में खतरनाक कैमिकल नहीं होते। इसलिए किसानों को ऑर्गेनिक खेती करने के लिए आगे आना चाहिए। इससे जमीन भी बचेगी, लोगों का स्वास्थ्य भी बचेगा और अच्छा मुनाफा भी मिलेगा। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है। भूना के डलीखुर्द गांव के दो किसानों भाइयों ने। दोनों भाइयों ने तीन साल पहले पांच एकड़ रेतीली बैरानी जमीन पर ऑर्गेनिक फूट, ककड़ी और राजस्थानी मतीरी की खेती शुरू की थी। अब मात्र तीन साल में ही वे इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, जिस भूमि पर फसल उगाने में परेशानी हाेती और मुनाफा भी कम मिलता था। आज वही जमीन सोना उगल रही है। इस जमीन पर कम लागत में प्राकृतिक फूट, ककड़ी और मतीरी पैदा हो रही है। इससे दोनों किसान भाई अच्छा पैसा कमा रहे हैं। डलीखुर्द किसान वजीर सिंह पूनिया और नवीन पूनिया ने बताया कि करीब चार वर्ष पहले पानी के अभाव में इस जमीन पर परंपरागत खेती नहीं हो पाती थी, खर्च भी बहुत ज्यादा होता था। मुनाफे के नाम पर दो चार हजार रुपये ही मिल पाते थे। लेकिन इसके बाद करीब तीन साल पहले उन्होंने इस जमीन पर ऑर्गेनिक तरीके से फूट, ककड़ी और मतीरी की खेती करनी शुरू कर दी। पहले साल कुछ खास मुनाफा नहीं मिला, लेकिन दूसरे साल उन्हें पहले से अधिक बचत हुई। अब तो यह खेती अच्छे दाम दे रही है। दोनों किसान भाइयों का कहना है कि अब उन्हें प्रति एकड़ 70,000 हजार एक लाख के बीच का मुनाफा आसानी से मिल रहा है। क्योंकि इन बेल वाल फसलों में बिजाई के बाद ज्यादा खर्चा नहीं है और पानी की भी कम ही जरूरत पड़ती है। इसलिए नामात्र के खर्च में ही पूरी फसल हो ताजी है और इसके मंडियों में अच्छे दाम मिलते हैं।

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कुछ कीट, पशु, पक्षी पहुंचाते हैं नुकसान

  • फूट, ककड़ी को जंगली छिपकली, गिलहरी, पक्षियों और नील गायों से नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। ऐसे में फसल की रखवाली करना जरूरी होता है। इसके लिए तार से बाड़ेबंदी भी कर सकते हैं।
  • पौधों में लाल व ऐपीलेकना भंग, सफेद, फल मक्खी और रस चूसने वाले कीटों के प्रकोप की आशंका बनी रहती है। इनसे बचाव के लिए नीम की निंबाेलियों से तेल बनाकर उसका उपयोग करते हैं।
  • गोमूत्र में पानी मिलाकर उसका छिड़काव करने से भी कई तरह के कीट खत्म होते हैं।
  • नीम पत्ती चूर्ण को 10 किलोग्राम राख के मिश्रण को टाट की थैली में भरकर सुबह के समय पौधों पर बुरकाव करें।

ऐसे बनाते हैं खाद
खेती के लिए खाद के रूप में गोबर की सड़ी हुई खाद और फसल के सड़े हुए अवशेष डालकर तैयार किया जाता है।

कैच-अप, जैम भी हो सकते हैं तैयार
वजीर ने बताया कि फूट, ककड़ी के पके फलों को ज्यादा दिनों तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। इसलिए इन्हें लंबे समय तक उपयोग में लाने के लिए इनकी प्रोसेसिंग करके कैच-अप, जैम एवं निर्जलीकरण (सुखाना) से खेलड़ा तथा बीजों से गिरी तैयार की जा सकती है।
फूट ककड़ी उत्पादन और प्रोसेसिंग से ताजा फल विपणन, खेलड़ा बनाना, बीज, जैम व कैच-अप से लाखों की आय प्राप्त की जा सकती है।

रेतीली जमीन के लिए उपयुक्त फसल
फतेहाबाद के जिला बागवानी अधिकारी डॉ. श्रवण कुमार ने बताया कि फूट ककड़ी गर्म और शुष्क मौसम की फसल है। रेतीले बैरानी जमीन का वातावरण इसके लिए उपयुक्त है। यह फसल 35-40 डिग्री तापमान में भी उग जाती है। बीजों के अंकुरण के लिए 20-22 डिग्री सेल्सियस और पौधों व फलों के विकास के लिए 32-38 डिग्री तापमान की ज़रूरत होती है। इसकी खेती के लिए रेतीली व बलुई-दोमट मिट्टी उपयुक्त हैं। 6.5-8.5 तक पी.एच. मान वाली कम उपचाऊ मिट्टी में भी फूट ककड़ी की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

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