Haryana News
- -भाईचारे, भाई-बहन के अटूट प्यार और रिश्ते का प्रतीक पर्व रक्षाबंधन धूमधाम से मनाया
- -बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी सुरक्षा और कल्याण की कामना करती हैं
- -भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है। सबसे पहली राखी इंद्राणी ने इंद्र को बांधी थी
Haryana News : रोहतक। माता दरवाजा स्थित संकट मोचन मंदिर में ब्रह्मलीन गुरुमां गायत्री के सानिध्य में शनिवार को आपसी प्रेम, भाईचारे, भाई-बहन के अटूट प्यार और रिश्ते का प्रतीक पर्व रक्षाबंधन धूमधाम और हर्षोल्लास से मना। परमश्रद्धेया साध्वी मानेश्वरी देवी ने श्रद्धा व भक्तिभाव से भक्तों की कलाई पर राखी बांधकर व तिलक लगाकर उनकी सुख-समृद्धि व दीर्घायु की शुभकामनायें की। भक्तों ने गुरुजी को माथा टेका और आशीर्वाद लिया। साध्वी ने बताया कि 95 साल बाद रक्षा बंधन पर दुर्लभ महासंयोग बना है। यह संयोग वर्ष 1930 के समान है। आसान शब्दों में कहें तो दिन, नक्षत्र, पूर्णिमा संयोग, राखी बाँधने का समय लगभग सामान है। इस योग में लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करने और राखी बाँधने से दोगुना फल मिला है। उन्होंने कहा कि हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राखी को प्रेम और एकता का प्रतीक माना जाता है। कार्यक्रम में पंडित अशोक शर्मा ने प्रसाद वितरित किया। यह जानकारी सचिव गुलशन भाटिया ने दी।
भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है रक्षाबंधन पर्व : साध्वी मानेश्वरी देवी
साध्वी मानेश्वरी देवी ने बताया कि रक्षाबंधन जिसे राखी के नाम से भी जाना जाता है । यह भाई-बहन के प्रेम को समर्पित व भाई-बहन के बीच के बंधन का उत्सव वाला हिंदू त्योहार है, जो भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक है । इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनकी सुरक्षा और कल्याण की कामना करती हैं व भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता है। उन्होंने बताया कि सबसे पहली राखी इंद्राणी ने इंद्र को बांधी थी, और तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
श्री कृष्ण ने की थी द्रौपदी की रक्षा : साध्वी
रक्षा बंधन पर्व की कथा सुनाते हुए साध्वी ने बताया कि द्रोपदी ने एक बार त्रेतायुग में भगवान श्री कृष्ण की उंगली में चोट लग जाने पर अपनी साड़ी से टुकड़ा फाडक़र उनकी उंगली पर बांधा था। उसी चीर बांधने के कारण श्री कृष्ण ने चीरहरण के समय द्रौपदी की रक्षा की थी।