Haryana News
- -10 पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश, इनमें 3 आईपीएस
- -गंभीर शिकायतें लटकाने पर अदालत ने दिखाई सख्ती
- -न्यायालय आंखें मूंदकर नहीं बैठ सकता
- -रजिस्ट्रार को आदेश अलग से याचिका दायर करें
Haryana News : चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा पुलिस की कार्यप्रणाली पर सख्त रुख अपनाते हुए 8 माह तक गंभीर शिकायतें (एफआईआर) लंबित रखने पर 10 पुलिस अधिकारियों, जिनमें 3 आईपीएस भी शामिल हैं, के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए हैं। जस्टिस सुमित गोयल ने कहा कि पुलिस का यह रवैया कानून के खिलाफ है। इससे न्यायिक प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर पड़ता है। कोर्ट ने कहा कि न्यायालय आंखें मूंदकर नहीं बैठ सकता कि एक गंभीर शिकायत इतनी लंबी अवधि तक बिना किसी कार्रवाई के पुलिस के पास पड़ी रही।
रिपोर्ट में यह खुलासा
हाईकोर्ट में पेश रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 23 अक्टूबर 2024 से 19 जून 2025 तक पंचकूला पुलिस में कई अधिकारी बदलते रहे, लेकिन शिकायत पर कार्रवाई समय पर नहीं हुई। उप-निरीक्षक प्रकाश चंद लगातार जांच अधिकारी बने रहे। निरीक्षक कमलजीत सिंह 2 जून 2025 तक आर्थिक अपराध शाखा के इंचार्ज रहे। उनके बाद निरीक्षक हितेंद्र सिंह ने 19 जून 2025 तक कार्यभार संभाला। शुरुआत में एसीपी मनप्रीत सिंह, आईपीएस ने 18 फरवरी 2025 तक निगरानी की। इसके बाद एसीपी विक्रम नेहरा, एचपीएस को जिम्मेदारी मिली, लेकिन उनके प्रशिक्षण पर जाने के दौरान (2 अप्रैल से 2 मई 2025 तक) एसीपी सुरेंद्र सिंह, एचपीएसीएस को लिंक अधिकारी बनाया गया। बाद में विक्रम नेहरा ने फिर से कार्यभार संभाला। डीसीपी स्तर पर भी तबादले हुए। डीसीपी हिमाद्री कौशिक, आईपीएस 3 जून 2025 तक पदस्थापित रहीं। इसके बाद डीसीपी सृष्टि गुप्ता, आईपीएस ने जिम्मेदारी संभाली। पुलिस आयुक्त का कार्य भी इस दौरान दो अधिकारियों ने संभाला। पहले सीपी सिबाश कबीराज, आईपीएस ने 1 नवंबर 2024 तक अतिरिक्त प्रभार संभाला। उसके बाद सीपी राकेश कुमार आर्या, आईपीएस 23 अप्रैल 2025 तक पदस्थापित रहे। इसके बाद फिर से सीपी सिबाश कबीराज,आईपीएस को जिम्मेदारी मिली। कोर्ट ने सूची में शामिल पुलिस अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करते हुए केवल पंचकूला की वर्तमान डीसीपी सृष्टि गुप्ता को छोड़ दिया। कोर्ट ने कहा कि उन्होंने 4 जून को पदभार ग्रहण किया और उनके कार्यकाल में 15 दिनों के भीतर ही एफआईआर दर्ज कर दी गई थी। हाई कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इस मामले में अलग से याचिका दर्ज कर इसे चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जाए ताकि संबंधित पुलिस अधिकारियों पर उचित कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके।
शिकायतकर्ता के आरोप
इस मामले में शिकायतकर्ता मलकियत सिंह ने आरोप लगाया था कि 23 जनवरी 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी के बाद मोहाली के एक विधायक कुलवंत सिंह के पीए बताए जाने वाले तरनजीत सिंह और उसके साथी सरवजीत सिंह उनके पास पहुंचे। उन्होंने परिवार को यह झांसा दिया कि यदि वे एक करोड़ रुपये अदा कर दें तो ईडी की कार्रवाई रुक जाएगी। परिवार ने दबाव में आकर 50-50 लाख रुपये अंबाला और मोहाली में आरोपितो को सौंप दिए। इसके बाद दोनों ने परिवार से अतिरिक्त 8 करोड़ रुपये की मांग की और धमकाया कि पैसा न देने पर गिरफ्तारी और जान से मारने तक की साजिश रच दी जाएगी।शिकायत 23 अक्टूबर 2024 को दर्ज करवाई गई थी, लेकिन पुलिस ने इसे करीब आठ माह तक दबाए रखा और आखिरकार 19 जून 2025 को पंचकूला के चंडीमंदिर थाने में एफआईआर दर्ज की गई। इसमें धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात की धाराएं लगाई गईं। इस मामले में आरोपी सरवजीत सिंह उर्फ गैरी और तरनजीत सिंह उर्फ तरुण ने अग्रिम जमानत की याचिकाएं दायर की थीं।
यह कहा बेंच ने
जस्टिस गोयल की बेंच ने माना कि एफआईआर में आरोप स्पष्ट और प्रत्यक्ष हैं। इस तरह के आर्थिक अपराध में कस्टोडियल इंटरोगेशन (हिरासत में पूछताछ) आवश्यक है ताकि पूरे षड्यंत्र का खुलासा हो सके। अदालत ने कहा कि अग्रिम जमानत असाधारण परिस्थिति में ही दी जा सकती है, जबकि यहां आरोपियों की भूमिका प्रथम दृष्टया बेहद गंभीर है।
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