• Wed. Jun 18th, 2025

Caste Census : बिहार चुनाव से पहले केंद्र सरकार का बड़ा फैसला, देश में पहली बार होगी जातिगत गणना

Caste Census

  • बिहार चुनाव से पहले केंद्र सरकार का बड़ा फैसला
  • अगली जनगणना में जातिगत गणना भी शामिल होगी
  • बिहार चुनाव से पहले केंद्र सरकार का बड़ा फैसला
  • तिगत जनगणन के आंकड़े 2026-27 में जारी होंगे
  • द्रीय मंत्री वैष्णव बोले, जातिय जनगणना से सामािजक ढांचे को नुकसान नहीं होगा
  • जातिगत जनगणना से सामािजक और आर्थिक समानता बढ़ेगी
  • हली बार सरकार जातिगत डेटा इकट्ठा कर रही
  • जातिगत जनगणना में हर सख्स की गिनती की जाएगी

Caste Census : नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बिहार चुनाव से पहले बड़ा फैसला लिया है। केंद्र ने कहा कि देश में आजादी के बाद पहली बार जातिगत जनगणना कराई जाएगी। इसके साथ ही केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को जातिगत जनगणना को मंजूरी देकर विपक्ष के हाथ से बड़ा मुद्दा छीन लिया। केंद्र के इस फैसले से कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी को बड़ा झटका लगेगा। लंबे समय से राहुल और विपक्ष जातिगत जनगणना की मांग को लेकर भाजपा पर हमलावर थे, लेकिन अब एनडीए सरकार के इस कदम से सियासी समीकरण तेजी से बदल सकते हैं। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जाति जनगणना की शुरुआत सितंबर में की जा सकती है। हालांकि जनगणना का पूरा प्रोसेस होने में एक साल लगेगा। ऐसे में अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में मिल सकेंगे। देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। इसे हर 10 साल में किया जाता है। 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण इसे टाल दिया गया था।

विपक्ष को आड़े हाथ लिया

वैष्णव ने कहा, आगामी जनगणना में जातिगत गणना को पारदर्शी तरीके से शामिल किया जाएगा। केंद्र ने साथ ही जाति आधारित सर्वेक्षण को ‘राजनीतिक हथियार’ के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए विपक्षी दलों को आड़े हाथों लिया। कांग्रेस सहित विपक्षी दल देशव्यापी जातिगत गणना कराने की मांग कर रहे हैं और इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना रहे हैं। तत्कालीन महागठबंधन सरकार के दौरान बिहार में तथा तेलंगाना और कर्नाटक जैसे कुछ गैर-भाजपाई राज्यों में जाति आधारित सर्वेक्षण भी कराए गए हैं।

पारदर्शी तरीके से होगी जनगणना

वैष्णव ने कहा, इन सभी तथ्यों पर विचार करते हुए तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजनीति के कारण सामाजिक ताना-बाना प्रभावित न हो, सर्वेक्षणों के बजाय जातिगत गणना को पारदर्शी तरीके से जनगणना में शामिल करने का निर्णय लिया गया। इससे हमारे समाज का सामाजिक और आर्थिक ढांचा मजबूत होगा और राष्ट्र भी प्रगति करता रहेगा।

विपक्ष ने बनाया था चुनावी मुद्दा

कांग्रेस और विपक्षी ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) ने पिछले चुनावों में जातिगत गणना को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाया था, जिसमें राहुल ने लोगों को उनकी जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व देने का वादा किया था। वैष्णव ने कहा कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा को आश्वासन दिया था कि जातिगत गणना के मामले पर मंत्रिमंडल में विचार किया जाना चाहिए। ज्यादातर राजनीतिक दलों द्वारा जाति आधारित गणना की सिफारिश किए जाने के बाद इस पर विचार करने के लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था। ‘इसके बावजूद कांग्रेस सरकार ने जाति गणना के बजाय सिर्फ सर्वेक्षण कराने का फैसला किया।

क्या है जातिगत जनगणना

दरअसल, जातिगत जनगणना का मतलब है जब देश में जनगणना की जाए तो इस दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाए। सीधे शब्दों में कहें तो जाति के आधार पर लोगों की गणना करना ही जातीय जनगणना है। राज्य की बात करें तो बिहार में जातिगत जनगणना कराई गई है।

जातिगत जनगणना का इतिहास

-भारत में जातिगत जनगणना का इतिहास औपनिवेशिक काल से जुड़ा है। पहली जनगणना 1872 में हुई थी, और 1881 से नियमित रूप से हर दस साल में यह प्रक्रिया शुरू हुई।
-आजादी के बाद 1951 में यह फैसला लिया गया कि जातिगत डेटा इकट्ठा करना सामाजिक एकता के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके बाद केवल एससी और एसटी का ही डेटा इकट्ठा किया गया।

ये फायदे

-जातिगत जनगणना से विभिन्न समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
-यह पता लगाया जा सकता है कि कौन सी जातियां शिक्षा, रोजगार, और स्वास्थ्य सेवाओं में सबसे ज्यादा वंचित हैं।
-इससे कल्याणकारी योजनाओं को और प्रभावी बनाया जा सकता है।
-ओबीसी और अन्य वंचित समुदायों की सटीक जनसंख्या मिलने पर आरक्षण नीतियों को लागू करना और संसाधनों का उचित वितरण करना आसान होगा।
-मंडल आयोग (1980) ने ओबीसी की आबादी को 52% माना था, लेकिन यह अनुमान पुराने डेटा पर आधारित था। नए आंकड़े आरक्षण की सीमा और वितरण को और

पारदर्शी बना सकते हैं।

-उन समुदायों की पहचान हो सकेगी जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं।
-जातिगत डेटा सामाजिक असमानताओं को उजागर करेगा, जिससे सरकार और समाज को इन मुद्दों को संबोधित करने का अवसर मिलेगा।

ये नुकसान संभव

-यह सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कई चुनौतियां पैदा कर सकता है।
-समाज में पहले से मौजूद जातिगत विभाजन को और गहरा कर सकती है।
-जातिगत आंकड़ों का उपयोग राजनीतिक दलों द्वारा वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जा सकता है। -क्षेत्रीय दल और जातिगत आधार पर संगठित पार्टियां इसका लाभ उठाकर सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकती हैं।
-इससे सामाजिक तनाव और हिंसा की संभावना बढ़ सकती है।
-जातिगत जनगणना से कुछ समुदायों की जनसंख्या अपेक्षा से अधिक हो सकती है, जिससे आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग उठ सकती है, जिससे सामाजिक अशांति बढ़ सकती है।
-यह भारत की राजनीति को भी गहरे रूप से प्रभावित करेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *