EPFO News
- विशेषज्ञों और उद्योग जगत ने पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर जताई चिंता
- एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट दस्तावेज़ में एक प्रमुख शर्त यह है कि बोलीदाता ने प्रस्तावित कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) को किसी अनुसूचित कॉर्मसियल बैंक में लागू किया हो।
- पहली नजर में यह एक सामान्य, अनुभव आधारित मानदंड लगता है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह शर्त ईपीएफओ की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है।
EPFO News : देश के 27 करोड़ से अधिक कामगारों की बचत की संरक्षक संस्था के रूप में कार्य कर रही कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने 14 जुलाई 2025 को अपने आईटी सिस्टम (ईपीएफओ प्लेटफार्म) पर व्यापक बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है। स्वभाविक है कि इस बदलाव से लोगों पर व्यापक असर भी दिखाई देगा। कुछ राहत मिलेगी तो कुछ खतरे भी बढ़ सकते हैं। ईपीएफओ के इस बदलाव से जुड़ी हालिया प्रक्रिया विशेषकर एजेंसी के चयन हेतु जारी एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट(ईओआई) को लेकर विशेषज्ञों और उद्योग जगत ने पारदर्शिता, निष्पक्षता और संभावित पक्षपात को लेकर गहरी चिंता जताई है। एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट दस्तावेज़ में एक प्रमुख शर्त यह है कि बोलीदाता ने प्रस्तावित कोर बैंकिंग सोल्यूशन (सीबीएस) को किसी अनुसूचित कॉर्मसियल बैंक में लागू किया हो। पहली नजर में यह एक सामान्य, अनुभव आधारित मानदंड लगता है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार यह शर्त ईपीएफओ की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है।
ईपीएफओ की मुख्य ज़िम्मेदारी
खातों का रख-रखाव, अंशदान प्रबंधन, पेंशन का वितरण आदि है। इसके लिए एक मजबूत, स्केलेबल और यूज़र-फ्रेंडली डिजिटल प्लेटफॉर्म जरूरी है, लेकिन इसके लिए कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस) की अनिवार्यता अप्रासंगिक मानी जा रही है। इसका कारण ये है कि ईपीएफओ का काम कोर बैंकिंग से संबंधित नहीं है। ईओआई की भाषा से यह प्रतीत होता है कि बैंकिंग क्षेत्र को सेवा देने वाली कंपनी को प्राथमिकता दी जा रही है। प्री-बिड मीटिंग में शामिल कंपनियों ने यह भी ये सवाल उठाये किया कि दस्तावेज़ में वर्णित तकनीकी विशिष्टताएँ एक कंपनी विशेष की क्षमताओं से काफी मेल खाती हैं। कम्पनियों ने ई्रपीएफओ पोर्टल पर क्वेरी जेनेरेट कर अपनी चिंता व्यक्त की लेकिन ईपीएफओ ने कंपनियों के सभी आपत्ति को दरकिनार कर दिया।
नवाचार की राह में बाधा
ईओआई की शर्तों से कई प्रतिष्ठित कंपनियां इस काम के लिए बिड की करने की प्रक्रिया से बाहर हो सकती हैं, खासकर जिन्होंने डिजिटल गवर्नेंस और सार्वजनिक सेवाओं के लिए बेहतरीन समाधान विकसित किए हैं लेकिन बैंकिंग सीबीएस पर काम नहीं किया है। ईओआई बैठक में भाग लेने वाली प्रमुख कंपनियां टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, सीआईपीएल, एडब्ल्यूएस, एचसीएल सॉफ्टवेयर और फिन्सिल थीं। जबकि केवल एक-दो कंपनियां ही सीबीएस का अनुभव रखती हैं।
मूल्य निर्धारण भी प्रभावित
माना जा रहा है कि जब प्रतिस्पर्धा सीमित होती हैतो मूल्य निर्धारण पारदर्शी नहीं रह जाता। इससे परियोजना की लागत अनावश्यक रूप से बढ़ने की आशंका रहती है। ईपीएफओ के टेंडर में अगर अधिक से अधिक कंपनी हिस्सा लेगी तो इसका लाभ उन्हें ही होगा और प्रतिस्पर्धा की वजह से ईपीएफओ को कम लागत में एक बेहतर सेवा प्रदाता कंपनी की सेवा मिलेगी।
इस पर क्या है विशेषज्ञों की राय:
ईपीएफओ कोई बैंक नहीं
ईपीएफओ कोई बैंक नहीं है। इसकी कार्यप्रणाली सार्वजनिक सेवा मंच जैसी है। ऐसे में बैंकिंग सीबीएस की अनिवार्यता तकनीकी दृष्टि से गैरज़रूरी और रणनीतिक रूप से भ्रामक है। – -पवन दुग्गल, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर एवं सायबर सुरक्षा विशेषज्ञ
उद्देश्य समाधान ढूंढना नहीं
यह आरएफपी किसी खास उत्पाद के लिए रिवर्स इंजीनिरिड लगती है। ये बहुत ही रिस्ट्रीक्टिव है एवं इसका उद्देश्य समाधान ढूंढना नहीं, बल्कि समाधान में किसी ख़ास बोलीदाता (बिडर) को लाभ पहुंचाना है। -अनूज प्रकाश अवस्थी, टेक्नोलॉजी एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट।
नवाचार-विरोधी भी
डिजिटल एवं आईटी के काम के लिए टेंडर की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाली एक प्रमुख कंपनी एमनेक्स टेक्नॉलाजी का कहना है कि यह सिर्फ खराब खरीद प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह नवाचार-विरोधी भी है। यह सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘ओपन इनोवेशन’ के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ है।
*वहीं वित्त मंत्रालय में वरिष्ठ सलाहकार के पद पर काम कर चुके एक अधिकारी ने बताया कि टेंडर प्रक्रिया में किसी विशेष शर्त को जोड़ना या किसी खास कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए शर्तों का निर्धारण जीएफआऱ एवं सीवीसी के नियमों का उल्लघन है। उनके मुताबिक, अगर प्रतियोगिता का दायरा सीमित होगा, तो बोली की कीमतें बाजार के अनुरूप नहीं होंगी।
ईपीएफओ के लिए क्या होगी अब आगे की राह
ईओआई जमा करने की अंतिम तिथि जैसे-जैसे नज़दीक आ रही है, ईपीएफओ पर यह दबाव बढ़ रहा है कि वह इस प्रक्रिया की समीक्षा करे, और योग्यताओं को कार्य-आधारित और समाधान-उन्मुख तरीके से परिभाषित करे। साथ ही इस प्रक्रिया मेंतकनीकी रिप्रजेंटेशन को प्रमुखता दी जाए। मूल्यांकन की प्रक्रिया में विविध पारदर्शी मानदंड जोड़े जाएं साथ ही पूरी प्रक्रिया में निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाया जाए।